ईदे मीलादुन्नबी पर मुसलमानाने अहले सुन्नत से दो बातें

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माहे रबीउल अव्वल की बारह तारीख़ को हमारे प्यारे आक़ाﷺ इस दुनिया में तश्ररीफ़ लाये और दुनिया भर के मुसलमान क़दीम ज़माने से आप की विलादत की ख़ुशी मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से मनाते चले आये हैं। माहे रबीउल अव्वल की बारहवीं तारीख़ जश्न मनाना, एक दूसरे को मुबारकबाद देना, चराग़ां करना वगैरा खैर व बरकत के काम हैं उनकी अस्ल कुरआन व हदीस से साबित है। इन बातों की मुखालफ़त करने वाला यक़ीनन राहे हक़ से भटका हुआ है।

लेकिन मौजूदा दौर में ईद मीलादुन्नबीﷺ के मौके पर लोग हद से बढ़ चुके हैं। जुलूसों में डी.जे. और ढोल जैसी आवाज़ों वाली नातें पढ़ी जाती हैं, उन की धुनों पर नौजवान डांस करते, कूदते-थिरकते हैं। कहीं छतों से खाने पीने का सामान फेंक कर रिज़्क़ की बेहुरमती की जाती है। गुम्बदे ख़ज़रा वगैरा के मुजस्समे तो जाने दीजिये अब तो ऐसी चीज़ों के मुजस्समे बनाकर घुमाये जाने लगे हैं जिनका इस्लाम से कोईतअल्लुक़ नहीं।

खुलासा यह कि अब इसमें बहुत सारीगैर शरईबातें दाखिल हो गयीं हैं। ज़रूरत इस बात की है कि हम सब मिलकर इन के ख़ातमे की कोशिश करें और जहां तक हो सके सादगी, अदब व एहतराम के साथ, शरीअत के

ईदे मीलादुन्नबी के मुबारक मौके परः-

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    क्या करें ?   

☑️ नातिया महफ़िलें मुनअकिद करें जिसमें हुज़ूरﷺ के फ़ज़ाइल व मनाकिब बयान किये जायें।

☑️ अपने घर मुहल्ले, कूचे व बाजार को सजायें और झण्डे लगायें।

☑️ एक दूसरे को मुबारकबाद दें और दोस्तों को इत्र व दीगर तोहफ़ों से नवाजें। रोज़ा रखें जैसा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुद पीर शरीफ़ के दिन रोज़ा रखा करते थे।

☑️ निहायत अदब व ऐहतराम सुकून व विक़ार के साथ जुलूसे मुहम्मदी में शिरकत करें।

☑️ इस्लामी बुक स्टाल लगायें, और इस्लामी किताबें बिला कीमत या कम कीमत पर तक़सीम करें।

☑️ अपने घरों में चरागां करें और बच्चों को ईदी तक़सीम करें।

☑️ इस दिन कसरत से दुरूदे पाक का विर्द करें।

☑️ सुबह सादिक के वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस्तक़बाल में नज़रानये दुरूदो सलाम पेश करें और फ़ातेहा ख्वानी करें।

☑️ जुलूस के दरमियान नमाज़ का वक्त आने पर नमाज़ पहले अदा करें।


     क्या न करें?    

❎ मीलादुन्नबी के मौके पर खुशी में कोई भी गैर शरई काम हरगिज़ न करें जैसे आतिशबाज़ी, ढोल ताशा वगैरह।

❎ गानों की तर्ज पर नाते न पढ़ें न सुनें न कैसेट वगैरह में बजायें।

❎ खाने पीने की अशिया को हाथों में अदब के साथ दें। लुटाकर बर्बाद न करें कि रिज़्क की बेअदबी अल्लाह को

-: फ़रमाने रसूलल्लाह ﷺ :-

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1). मेरी बातें लोगो तक पहुंचाओ, चाहे एक ही आयत हो।

2). पाकी आधा ईमान है।

3). जन्नत की चाबी नमाज़ है और नमाज़ की चाबी वुजू।

4). एक दौर ऐसा आयेगा कि लोग मस्जिद में बैठकर दुनिया की बातें करेगें अगर तुम ऐसा दौर पाओ तो उनके पास न बैठना।

5). भूखों को खाना खिलाओ, मरीज़ को देखने जाओ और कैदी को कैद से छुड़ाओ।

6). जुमा की नमाज़ के लिये कोई भी शख्स अपने भाई को उठाकर उसकी जगह न बैठे।

7). मोमिन को मौत इस तरह आ जाती है जिस तरह माथे पर पसीना।

8). जिन्दगी में एक दिरहम सदका करना मरते वक्त सौ दिरहम सदक करने से बेहतर है।

9). तीन दुआओं के क़बूल होने में कोई शक नहीं (1) बाप की दुआ औलाद के लिये, (2) मुसाफिर की दुआ, (3) उसकी दुआ जिस पर जुल्म किया जाये।

10). जन्नत में मक्कार, कंजूस और एहसान जताने वाले न जायेंगे।

11). मज़दूर को उसका पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी दे दिया करो।

12). शैतान उस खाने को अपने लिये हलाल समझता है जिस पर अल्लाह का नाम नहीं लिया जाता।

13). अल्लाह तआला छींक को पसन्द फ़रमाता है और जमाही को नापसन्द फरमाता है।

14). वह मोमिन नहीं जो अपना पेट भरे और उसका पड़ोसी भूखा हो।

15). दुनिया मोमिन के लिये कैदखाना है।

16). मैने जन्नत में झांका तो उसमें ज़्यादातर गरीबो को देखा और मैंने दोज़ख़ में झांका तो ज़्यादातर

हुज़ूरﷺ की पूरी ज़िन्दगी एक नज़र में

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आपका नाम-- मोहम्मदﷺ

वालिद का नाम-- हज़रत अब्दुल्लाह

वालिदा का नाम-- हज़रत आमिना

दादा का नाम-- हज़रत अब्दुल मुत्तलिब

नाना का नाम-- वहब

विलादत (पैदाइश)-- 12 रबीउल अव्वल, 20 अप्रैल सन् 571 ई0, दिन पीर सुबह सादिक के वक्त

वालिदा की वफात-- 06 साल की उम्र में

मुल्केशाम (सीरिया) का पहला सफर-- 12 साल की उम्र में

मुल्केशाम (सीरिया) का दूसरा सफर-- 25 साल की उम्र में

वही की शुरूआत-- 40 साल की उम्र में

आम एलान-- 44 साल की उम्र में

चाचा अबु तालिब का इन्तकाल-- 50 साल की उम्र में सन् 10 नबवी

हज़रत ख़दीजा का विसाल-- 50 साल की उम्र में सन् 10 नबवी

मदीना को हिजरत-- 53 साल की उम्र में सन् 13 नबवी

मस्जिदें नबवी का संगे बुनियाद-- 55 साल की उम्र में सन् 01 हिजरी

हुज़ूरﷺ के मोजिज़े

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अल्लाह तआला ने अपने सभी नबियों व रसूलों को मोजिज़े (वह ख़िलाफ़े आदत काम जो नबी से जाहिर हो) अता फरमायें लेकिन सबसे ज्यादा जाहिर और रोशन मोजिज़े हमारे नबीﷺ को अता किये। उन में से कुछ मोजिज़े पेश किये जाते हैं-

▫️एक बार मक्का के मुश्रिकों ने आप से चाँद के दो टुकड़े करने को कहा, आपने फरमाया कि अगर मैं ऐसा कर दूं तो तुम ईमान ले आओगे? उन्होने इकरार कर लिया। हुज़ूरﷺ ने इशारा फरमाया, चाँद के दो टुकड़े हो गये एक टुकड़ा पहाड़ के एक तरफ और दूसरा पहाड़ के दामन में आ गया।

▪️एक आराबी (अरब के देहाती) को आपने इस्लाम पेश किया, उसने निशानी तलब की आपने फरमाया कि अगर मैं उस खजूर के गुच्छे को बुला लूं तो तुम मुसलमान हो जाओगे? उसने इकरार कर लिया, आपने उस गुच्छे को बुलाया तो वह पेड़ से उतरने लगा और जमीन पर गिर पड़ा फिर उछलते हुये, आपकी बारगाह में हाजिर हो गया। आपने उसको इशारा किया वह फिर अपनी जगह लौट गया। यह देखकर वह फौरन मुसलमान हो गया।

▫️एक सहाबी हज़रत क़तादा की आँख जंग में ज़ख़्मी हो गयी और बाहर निकल आयी। वह आपकी बारगाह में हाज़िर हुये। आपने आँख का ढेला पकड़ कर उसकी जगह रख दिया, वह आँख बिल्कुल सही हो गयी, बल्कि

हुज़ूरﷺ का रहम व करम

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हुज़ूरﷺ की पूरी ज़िन्दगी रहम व करम और अमन पसन्दी की आईनादार है। एक मर्तबा आप से अर्ज़ किया गया कि मुशरिकों की हलाकत की दुआ फरमा दें। आप ने फरमाया "मैं लानत करने और हलाकत के लिये नहीं भेजा गया हूँ बल्कि मैं तो सरापा रहमत बनाकर भेजा गया हूँ"।

जब आप लोगों को नमाज़ पढ़ाते और नमाज़ के दौरान किसी बच्चे के रोने की आवाज़ आ जाती तो आप नमाज़ को मुख़्तसर (छोटा) फरमा देते कि बच्चे की माँ परेशान न हो जाये।

मक्का फतह होने का वाक़या किसे याद न होगा। हिजरत से पहले मक्का के काफिरों ने आपको हर तरह से सताने की कोशिश की आप पर कूड़ा करकट फैंका, रास्ते में कांटे विछाये, जुल्म व सितम करने में कोई कसर न छोड़ी लेकिन सन 8 हिजरी में जब मक्का फतह हुआ तो आप ने अपने सख्त से सख्त दुश्मन को बुलवाया और फरमाया "बताओ मैं तुम्हारे साथ क्या सुलूक करूँ?" जवाव मिला कि हम आपसे रहम की उम्मीद करते है। आपने फरमाया "जाओ तुम को आज़ाद किया जाता है आज तुम पर कोई इल्ज़ाम नही"।

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी  अह्-लिया मोहतरमा

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हुज़ूरﷺ की अख़लाक़ व आदतें

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मुस्तफ़ा जाने रहमतﷺ को अल्लाह तआला ने हर तरह की खूबियों से नवाज़ा और हर खूबी सारे इन्सानों से बढ़कर अता की, इस लिये आपका अखलाक (व्यवहार)भी सबसे बेहतर कि अल्लाह तआला ने खुद आपके अच्छे अख़लाक की तारीफ की जैसा कि फरमाया "बेशक आप बुलन्द अखलाक़ पर हैं।" बल्कि अगर यह कहा जाये कि अरब के लोग आपके मोजिज़ों से ज्यादा आपके अख़लाक़ से मुतअस्सिर (प्रभावित) हुये तो गलत न होगा। यही वजह है कि आपके बुलन्द अख़लाक़ को देखकर ही न जाने कितनों को ईमान की दौलत नसीब हो गयी।

हुज़ूरﷺ बच्चों के पास गुज़रते तो उन्हें भी सलाम करते, सलाम में हमेशा पहल फरमाते, हर अच्छे काम की शुरूआत सीधे हाथ से फरमाते, बात करते तो साफ-साफ ठहर-ठहर कर तीन बार दोहराते कि हर शख्स अच्छी तरह समझ लेता, ज्यादा तर मुस्कुराते रहते यानि सिर्फ दाँत मुबारक ज़ाहिर होते पूरी ताकत से कभी न हँसे, खाने से पहले और बाद में हाथ मुबारक धोते लेकिन खाने से पहले धोकर पोछते न थे, गुस्से की हालत में चेहरे मुबारक फेर लेते, अपने काम खुद कर लिया करते बल्कि दूसरों के भी काम फरमा देते, आराम फरमाते तो दाहिनी करबट के बल सीधा हाथ ख़्सार (गाल) मुबारक के नीचे रख लेते, मजलिस में जहाँ जगह मिल जाती वहीं तशरीफ फरमा हो जाते, चलते तो ऐसा लगता जैसे ढलवान से उतर रहे, खुश्बू खूब इस्तेमाल फरमाते, दूध

हुज़ूरﷺ हुलिया शरीफ

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आपका जिस्म चमकता, दमकता, महकता। रंग बहुत ही साफ ऐसा लगता जैसे आप चांदी से बनाये गये हैं। एक सहाबी फरमाते हैं कि मैने हर तरह के रेशम देखे लेकिन जो नरमी और नफासत आपके हाथ पाक में देखी वह कहीं नज़र न आयी।

चेहरा ऐसे चमकता जैसे चौहदवीं का चाँद। जिस्म शरीफ का साया न था। जब सूरज के सामने खड़े होते तो आपके चेहरे की चमक के आगे सूरज की चमक फीकी पड़ जाती।

पेशानी कुशादा और चमकदार, आँखे बहुत खूबसूरत ऐसा लगता जैसे सुर्मा लगाये हुये हैं जबकि आप सुर्मा लगाये हुये न होते। आगे, पीछे, दायें, बायें, ऊपर, नीचे हर तरफ एक सा देखते। नज़रें हमेश झुकी झुकी रहतीं, अबरू लम्बी-लम्बी पहली के चाँद की तरह बारीक। पलके मुबारक लम्बी, रूख़्सार मुबारक भरे हुये, नाक मुबारक ऊँची, दाँत मुबारक बहुत ही चमकदार मोती की तरह, मुस्कुरादें तो रोशनी हो जाये, दाढ़ी मुबारक घनी, गेसू मुबारक लम्बे और घने कभी कानों के नर्म हिस्से तक होते कभी कंधों को चूम लेते।

दोनों कंधो के बीच सुराही दार गर्दन और उसके पीछे नबुव्वत की मोहर, सीना मुबारक चौड़ा, हाथ मुबारक

हुज़ूरﷺ का विसाल

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सन् 11 हिजरी में सफर महीने के आखिरी दिनों में आपकी अलालत की शुरूआत हुई, आपने हज़रत अबू बकर को नमाज़ पढ़ाने हुक्म दिया। हज़रत अबू बकर ने आपके हुक्म के मुताबिक़ नमाजें पढ़ाई।

12 रबीउल अव्वल पीर के दिन फज्र की नमाज के वक़्त आपकी तबीयत कुछ ठीक हुई तो आपने अपने हुजरे से पर्दा हटाकर देखा कि हज़रत अबू बकर नमाज़ पढ़ा रहे है। सबको नमाज़ पढ़ते देखकर खुशी की वजह से आप मुस्कुराने लगे। मुसलमानों की भी खुशी का कोई ठिकाना न रहा, हज़रत अबू बकर ने चाहा कि अपनी जगह से हट जायें लेकिन आप ने इशारा फरमाया कि अपनी जगह पर रहें और नमाज़ पूरी करें और आपने पर्दा गिरा दिया, इसी दिन आपका विसाल हो गया।

विसाल के बाद आपके हुक्म के मुताबिक़ आपके ख़ानदान वालों ने गुस्ल दिया और बगैर जमात के नमाज़ अदा की गयी क्योंकि आप तो अपनी ज़िन्दगी और वफात दोनो में सबके इमाम हैं। जिस जगह पर आपका विसाल हुआ उसी जगह पर बुद्ध की रात सहरी के वक्त आपकी तदफीन की गयी, कब्रे मुबारक के अन्दर आपके होठों पर यह अलफाज थे “ऐ अल्लाह! मेरी उम्मत! मेरी उम्मत !" यानी मेरी उम्मत की बख्शिश फरमा।

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मस्जिदे नबवी की तामीर

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हज़रत अबू अय्यूब के घर में ठहरने के बाद आपने सोचा कि मदीने में एक मस्जिद की तामीर होनी चाहिये, इसके लिये आपने बनू नज्जार के एक बगीचे की ज़मीन पसन्द की और तामीर शुरू हो गयी।

मस्जिदे नबवी की तामीर के बाद हुज़ूरﷺ ने अपने बाकी घर वालों को भी मदीने बुलवा लिया और उनके साथ मदीना शरीफ में ही रहने लगे।

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हुज़ूरﷺ की मदीना में जलवागरी

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मदीना वालों को आपके आने की ख़बर पहले ही मिल चुकी थी यह लोग आपके आने का बड़ी बेसब्री से इन्तेज़ार कर रहे थे। रोजाना ऊँची जगह पर चढ़कर आपका रास्ता देखते। यहां तक कि हुज़ूरﷺ तशरीफ ले आये। सबने एक साथ तकबीर का नारा लगाया और आपके इस्तिकबाल (स्वागत) के लिये निकल पड़े। हर तरफ खुशी का समां था। मदीने की औरतें और बच्चे छतों पर चढ़कर इस नूरानी काफिले को देख रहे थे और मदीने की बच्चियां खुशी में शेर गुनगुना रही थीं।

मदीने में हर एक यही चाहता था कि हुज़ूरﷺ हमारे घर कयाम करें, यह हालत देखकर आपने फरमाया कि मेरी ऊँटनी की मुहार छोड़ दो उसे अल्लाह की तरफ से हुक्म मिल चुका है। ऊँटनी चलते-चलते वहां रूक गयी जहां आज मस्जिदे नबवी है, उसके सामने हज़रत अबु अय्यूब जो अंसारी का मकान था।

उनकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा उन्होनें आपका सारा सामान उतरवाया और आपको अपने घर ले आये उन्होने बहुत ही अदब व एहतराम के साथ आपकी मेज़बानी की। हज़रत अय्यूब के घर हुज़ूरﷺ ने सात महीने

हुज़ूरﷺ की हिजरत

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हुज़ूरﷺ की इजाज़त के बाद तमाम मुसलमान मदीना पहुँच गये सिर्फ वही लोग पीछे रह गये जिन्हें मक्का के काफिरों ने रोक लिया था या जो लोग जाने की ताकत नहीं रखते थे।

हुज़ूरﷺ तमाम मुसलमानों को रूख़्सत फरमाते रहें और खुद मक्के में ही रहे। कुरैश को अब लगा कि कहीं हुज़ूरﷺ भी मदीना न चले जायें और इसका अन्जाम उन्हें अच्छी तरह मालूम था इसलिये उन्होने जमा होकर आपके कत्ल की स्कीम बनाई।

इधर सरकारﷺ को अल्लाह तआला ने हिजरत का हुक्म दे दिया। रात को हुज़ूरﷺ ने अपने बिस्तर पर हज़रत अली को लिटा दिया और घर से बाहर आ गये। एक मुट्ठी मिट्टी ली और कुरआन की कुछ आयतें पढ़कर काफिरों की तरफ फेंक दी। किसी को पता भी न चला और हुज़ूरﷺ उनके बीच से

हुज़ूरﷺ का हज के दिनो में तबलीग़

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हुज़ूरे अक्दसﷺ हज के दिनों में अलग-अलग कबीलों के पास जाते और इस्लाम की तबलीग़ करते जिसके नतीजे में सन् 11 नबवी में मदीने के एक कबीले "खज़रज" के छः (6) लोग मुसलमान हुये।

अगले साल बारह लोगो ने आपके हाथ पर बैअत की उसके अगले साल 72 लोग इक्ट्ठा हुये और आपके हाथ पर इस बात का अहद किया कि वह इस्लाम की ख़ातिर अपनी जान की बाजी लगा देंगे।

जब यह सब लोग मदीना पहुँचे तो सब ने इस्लाम बड़ी तेजी से फैलाना शुरू कर दिया, जिससे मदीने में मुसलमानों की तादाद बढ़ने लगी और मदीना मुसलमानों के लिये एक पनाह बन गया। इसलिए हुज़ूरﷺ ने मुसलमानों को मदीना जाने की इजाज़त दे दी और

अबु तालिब की वफ़ात

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हुज़ूरﷺ और आपके खानदान के बायकाट ख़त्म होने के बाद नबुव्वत के दसवें साल अबु तालिब का इन्तेकाल हो गया, इसके कुछ दिनों के बाद हज़रत खदीज़ा का भी विसाल हो गया।

अबु तालिब के इन्तेकाल के बाद कुरैश ने जुल्म व सितम की सारी हदें पार कर दीं। आप तबलीग़ के इरादे से “ताएफ" तशरीफ़ ले गये वहां भी आपको सताया गया यहां तक कि आपकी जूतियां और मोज़े खून से भर गये।

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हज़रत उमर व हज़रत हमज़ा का मुसलमान होना

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नबुव्वत के पांचवे या छठे साल हुज़ूरﷺ के चाचा हज़रत हमज़ा ने इस्लाम कबूल कर लिया, वह इस तरह कि जब आपको मालूम हुआ कि रसूलﷺ का दुश्मन अबु जहल ने हुज़ूरﷺ को गालियां दी हैं, उस वक्त आपके हाथ में एक तीर कमान था उसको अबु जहल के सर पर इतनी ज़ोर से मारा कि उसका सर फट गया और हज़रत हमज़ा खुद मुसलमान हो गये।

हज़रत हमज़ा के मुसलमान होने का गम मक्का के काफिरों के दिलों से अभी दूर भी न हुआ था कि आपके मुसलमान होने के तीसरे दिन हज़रत उमर बिन खत्ताब भी मुसलमान हो गये। मुसलमानों ने खुशी से तकबीर का नारा लगाया जो पूरे मक्के में गूंज गया हज़रत उमर फारूक-ए-आजम ने अर्ज़ किया "या रसूलल्लाह! क्या हम हक़ पर और काफिर बातिल पर नहीं?" हुज़ूरﷺ ने इरशाद फरमाया- "खुदा की कसम तुम हक़ पर हो"अर्ज किया "तो फिर हम छिपते क्यों हैं?" इसके बाद मुसलमान दो सफों मे निकले एक सफ में हज़रत हमज़ा और दूसरी सफ में हज़रत उमर फारूक-ए-आज़म थे और सारे मुसलमानों ने हरमे पाक के अन्दर जाकर नमाज़ अदा की।

बायकाट:-

इन दोनो हज़रात के मुसलमान हो जाने के बाद मक्का के काफिरों के गुस्से की आग और भड़क उठी। उन्होने

हुज़ूर ﷺ का आम एलान

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नबुव्वत को जब तीन साल हो गये तो अल्लाह तआला ने एक आयत नाज़िल की जिसमें आपको इस बात का हुक्म दिया गया कि आप खुल्लम खुल्ला इस्लाम की तबलीग़ करें।

आप कुफ्र व शिर्क और बुत परसती की खुल्लम खुल्ला बुराई बयान फ़रमाने लगे जब काफिरों ने अपने बुतों की खुल्लम खुल्ला बुराई सुनी तो वह आपके और मुसलमानों के जानी दुश्मन हो गये और हर तरह से मुसलमानों को सताने लगे।

जब काफिरों का जुल्म व सितम हद से बढ़ गया तो आपने मुसलमानों को "हब्शा'' हिजरत करने का हुक्म दिया वहाँ “नजाशी'' नाम का एक ईसाई बादशाह बहुत रहम दिल और इन्साफ पसन्द था उसने मुसलमानों को

हुज़ूरﷺ पर वही की शुरूआत

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जब आपकी उम्र शरीफ लगभग 40 वर्ष हो गयी तो आपकी तबीयत में कई बदलाव आये। आप सबसे अलग-थलग रहने लगे आप बस्ती से निकल कर एक पहाड़ की तरफ निकल जाते उसमें “हिरा" नाम की एक गार में अल्लाह की इबादत व मुजाहदे में मशगूल रहते। खाने पीने का सामान अपने साथ ले जाते और कभी हज़रत ख़दीजा दे आतीं कई-कई दिन तक आप उसी गार में रहते।

एक रात आप इसी गार में थे कि हज़रत जिबरील आये और अर्ज किया- "पढ़िये" आपने कहा “मैं नहीं पढ़ा" हज़रत जिबरील ने तीन बार इसी तरह कहा और तीनों बार आपने भी यही फरमाया चौथी बार हज़रत जिबरील ने कहा ''अपने रब के नाम से पढ़िये जिसने पैदा किया"*और सूरह इकरा की पांच आयतें पढ़कर सुनायीं यह "वही की शुरूआत" थी।

आप इन आयतों को लेकर घर तशरीफ लाये और हज़रत खदीजा से फरमाया- "मुझे चादर उढ़ाओ चादर उढ़ाओ।" आपने हज़रत खदीजा को पूरा वाक्या सुनाया और फरमाया मुझे अपनी जान का ख़तरा है। हज़रत खदीज़ा ने अर्ज़ किया “अल्लाह आपको कभी शर्मिन्दा न करेगा। आप तो रिश्तेदारों का पूरा हक़ अदा करते हैं, सच बोलते हैं बेसहारों की मदद करते हैं जरूरत वालो की जरूरत पूरी करते हैं।" हज़रत खदीज़ा की इन बातों से आपको काफी सुकून हासिल हुआ और ख़ौफ जाता रहा।

पहले हुज़ूर ﷺ छुपकर इस्लाम की दावत देते रहे जब आयते करीमा (अपने करीबी रिश्तेदारों को डराओ) नाज़िल हुई तो इस आयत के बाद आप 'सफा' पहाड़ पर चढ़ गये और सारे कबीलों को पुकारा लोग जमा हुये तो आप ने फरमाया कि अगर मैं कहूं कि इस पहाड़ के पीछे एक लश्कर है और तुम्हें कत्ल करना चाहता है तो

हुज़ूरﷺ की जवानी मुबारक

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जब आपने जवानी की मंज़िल में कदम रखा तो उन तमाम बुरे कामों से दूर रहे जो आम तौर से नौजावानों में पाये जाते हैं। सच्चाई, अमानत, दयानत और तमाम अच्छी बातें और बेहतरीन आदतें आपके अन्दर पायी जाती थीं। नौजवान आपको खेल कूद की तरफ बुलाते लेकिन आप उनके साथ कभी न जाते। कुरैश आपकी सच्चाई और अमानत को मानते थे। तिजारत (व्यापार) में आप अपना मामला बहुत साफ रखते झूठ कभी न बोलते हमेशा सच बोलते। इसी लिये लोग आपको "सादिक" यानि सच्चा और "अमीन" यानि अमानतदार कहने लगे।

मक्का की एक खातून हज़रत खदीजा बहुत मालदार और बहुत ही शरीफ और पाक दामन ख़ातून थीं उनकी दरख्वास्त पर आपने तिजारत के इरादे से मुल्के शाम (सीरिया) का दूसरा सफर किया और बहुत जल्द सारा सामान बेच कर मक्का वापस आ गये। आपकी अच्छी बातें और बेहतरीन आदतों को देखकर हज़रत खदीजा ने आपके पास निकाह का पैगाम भेजा आपने मंजूर कर लिया और हज़रत ख़दीजा का निकाह आपसे हो गया उस

हुज़ूरﷺ के बचपन के हालात

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दूसरे अह्वाल की तरह हुज़ूरﷺ का बचपन भी सबसे निराला और अनोखा था बचपन में आपने कभी कपड़ों में पाखाना पेशाब न किया और न कभी बर्हना हुये और अगर कभी अचानक कपड़ा उठ भी गया तो फरिश्ते सतर छुपा देते थे। आपके इशारे पर चाँद झुक जाता और आपको रोने से बहलाता था।

एक बार आप चारागाह में थे कि फरिश्तों के सरदार हज़रत जिबरील आये, आपके सीना-ए-मुबारक को चाक किया और कल्ब मुबारक (दिल) को धोकर इल्म व इरफान से भर दिया फिर आपके सीना-ए-मुबारक को सी दिया।

जब आप 6 वर्ष के हो गये तो आपकी वालिदा अपनी एक बांदी 'उम्मे एमन' को साथ लेकर आपको मदीना शरीफ ले आयी कुछ दिन वहां गुज़ार कर आपको लेकर मक्का शरीफ वापस आ रही थीं कि *'आबवा'* नामी जगह पर वालिदा का विसाल हो गया। वहां से उम्मे एमन आपको मक्का शरीफ ले आयीं।

हज़रत आमिना के इन्तेकाल के बाद आपके दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने आपको अपनी ज़िम्मेदारी में ले लिया और अपनी औलाद से बढ़कर चाहा लेकिन दादा की गोद में रहते हुये दो वर्ष ही गुज़रे थे कि उनका भी इन्तेकाल हो गया।

दादा की वफात के बाद आप अपने चाचा अबु तालिब के यहां परवरिश पाने लगे, अबु तालिब ने भी किफालत

विलादत-ए-मुस्तफ़ाﷺ

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हर तरफ अंधेरा था! सिर्फ अंधेरा!! कैसा अंधेरा? कुफ्र व शिर्क का अंधेरा! बुत परस्ती का अंधेरा! जुल्म व सितम का अंधेरा ! लोग इंसानियत, शराफत, हमदर्दी, अमानत व दयानत जैसे अल्फाज़ को जानते न थे। इंसानी खून की कोई कीमत न थी, ज़रा सी बात पर तलवारें निकल आतीं और खून की होली खेली जाती, फिर यह जंग नस्लों तक चलती रहती और खून के दरिया बहते रहते। कमज़ोरों को दबाना, गरीबों को सताना, जिनाकारी, बदकारी और शराबनोशी आम थी। औरत की हालत सबसे ज्यादा बुरी थी, उसके साथ जानवरों से बदतर सुलूक किया जाता था। एक खुदा को छोड़कर सैकड़ों अपने बनाये हुए खुदाओं की इबादत की जाती थी। यहां तक कि खुद काबा शरीफ के अन्दर 360 बुत रख दिये गये थे।

ऐसे संगीन और होश उड़ाने वाले हालात में 12 रबीउल अव्वल, 20 अप्रैल सन् 571 ई0 बरोज़ पीर सुबह सादिक के वक़्त एक नूर चमका और उसकी रोशनी बढ़ती गयी। देखते ही देखते उसकी किरणें पूरी दुनिया में फैल गयीं, यानि मुस्तफ़ा जाने रहमत शम्ए बज़्मे हिदायत जनाबे मोहम्मदुर्रसूलुल्लाह ﷺ इस दुनिया में तशरीफ ले आये।

जब आपकी विलादत हुई तो एक हज़ार साल से रौशन फारसियों के आतिश कदे की आग बुझ गई। काबे में रखे हुए बुत औंधे हो गये। किसरा के महल के 14 कंगूरे ढह गये। शैतान रंज व गम में मारा-मारा फिरा।

हज़रते जिबरील तीन झण्डे लेकर आये एक पूरब दूसरा पश्चिम तीसरा काबे की छत पर लगा दिया तमाम फरिश्तों ने एक दूसरे को मुबारक बाद दी और सूरज को बड़ी रोशनी अता की गयी। #(शिफा शरीफ)

आपकी विलादत के वक्त एक नूर ज़ाहिर हुआ जिससे आपकी वालिदा हज़रत आमिना ने शाम के महल देख लिये हज़रत आमना के पास हज़राते अम्बिया (अलैहिमुस्सलाम) तशरीफ लाये और फरमाया जब हुज़ूर ﷺकी

▫पार्ट--05 | कायनात का दूल्हा

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ये जलसे, जुलूस हम और आप हर बरस दूल्हा की अकीदतो मोहब्बत में मनाते हैं, चरागाँ करते हैं, खुशियां मनाते हैं, हालांकि इस पर शिर्क और बिदअत का फ़तवा लगाने वालों ने रोक लगाने की हर चंद कोशिशें कीं और कर रहे हैं।

तू घटाए से किसी के न घटा है न घटे।
जब बढाए तुझे अल्लाह तआला तेरा।।

ये सिलसिला ता कयामत इन्शा अल्लाह यूं ही जारी रहेगा।

रहेगा यूं ही उनका चर्चा रहेगा।
पड़े खाक हो जाएं जल जाने वाले।।

इन जल्से जुलूसों के एखतेताम पर एक और बहुत बड़ा जलसए आम होगा। इतना बड़ा इज़्लास, इतना बड़ा इजतेमाअ जो चश्मे फलक ने अब तक देखा ही नहीं न सुनने में आया न उसका तसव्वुर ही किया जा सकता है जिसमें अव्वलीनो आखेरीन अपने और पराये दोस्तो दुश्मन, काले-गोरे, हर मुल्को मिल्लत के लोग जमा होंगे, आखीर में जो इजलास में शरीक न होना चाहेंगे वो भी घसीट कर लाये जाएंगे और इस इजलास की गरज़ो गायत भी उसी दूल्हा की शानो शौकत का इज़हार है, क्या ही खूब फरमाया है हमारे जद्दे अमजद उस्तादे ज़मन ने -

फकत इतना सबब है इनइकादे बज़्मे महशहर का।
कि उनकी शाने महबूबी दिखाई जाने वाली है।।

आज जो उन्हें नहीं मान रहे हैं, वो भी मान लें जो अब तक नहीं पहचान रहे हैं, तो पहचान लें कि उस रोज का मानना काम नहीं आएगा।

आज ले उनकी पनाह, आज मदद मांग उनसे।
फिर न मानेंगे कयामत में अगर मान गया।।

ज्यादा तफ़सील में न जाते हुए मुख्तसरन अर्ज करूं कि जलसा खतम होते ही अपने बेगाने सब अपने-अपने घरों की राह लेते हैं, वहां भी यही होगा कि इस इजलासे अज़ीम के खतम होने पर दुल्हा से सच्ची मोहब्बत रखने वाले अपने दिलो जान से चाहने वाले, उनके नक्शे कदम पर चलने वाले, उनकी इत्तेबाअ व पैरवी करने वाले उनकी बारगाह में अकीदतो महब्बत के नज़राने पेश करने वाले उसके हर हुक्म की तामील करने वाले अपने उस घर में दाखिल हो जायेंगे, जो बहुत पहले से उनके लिये तैयार है, जो अबदी राहत व आराम का घर है और इतनी खूबसूरत व हसीन है कि दुनिया में उसकी मिसाल नहीं पेश की जा सकती है जिसका नाम जन्नत है। जहां की

▫पार्ट--04 | कायनात का दूल्हा

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दुनिया में रोज़ाना लोग दूल्हा बनते हैं, बारातें रोज़ाना आती और जाती है, लेकिन इधर बारात गयी और सारे इन्तेज़ामात खत्म, फर्श लपेट दिया जाता है, शामियाने खोल दिये जाते हैं, लाईट ऑफ़ कर दी जाती है लेकिन ये कैसी बारात है कि फर्श जो बिछा है वह आज तक बिछा है, आसमान का शामियाना जो तना है वह आज तक तना है इसी से पता चला कि वो आने वाला दुल्हा जो है, जो आया था वो आज भी है।

अगर दुल्हा चला गया होता, अगर दुल्हा मआजल्लाह मरकर मिट्टी में मिल गया होता, तो ज़मीन का फ़र्श लपेट दिया जाता और आसमान का शामियाना बंद कर दिया जाता और ये रोशनियां खत्म कर दी जाती लेकिन मालूम हुआ कि वो दूल्हा आज भी है, और ये बारात सजी हुई है चाँद-सूरज की कंदीलें जो जली हैं, वो जल ही रही है, बड़ी रौशनी के साथ छोटी रौशनी भी हुई, चुनांचे आसमान की दो बड़ी रौशनियों के साथ-साथ छोटे कुमकुमे भी आज तक रौशन हैं और हर आने वाली सुहानी सुब्ह में फूलों की महक के साथ बुलबुलों की चहक, कोयलों की कूक, मुर्गों की अज़ानें और हज़ारहा छोटे-बड़े परिन्दों की दिलकश और मुतरन्निम आवाजें दूल्हा की आमद-आमद की खुशी में सरशार होकर नग़माते तरब आज तक दुनिया के तूलो-अर्ज में सुनी जा रही है। जो परिन्दे अपने-अपने लबो लहजे में गाते हैं और सुनने वालों के लिये अपनी मीठी-मीठी और सुरीली आवाज़ों से फ़रहतो

▫पार्ट--03 | कायनात का दूल्हा

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जब कोई बड़ी बारात होती है तो उसमें हर तरह के लोग होते हैं, अमीर-गरीब बच्चे-बूढ़े, जवान मर्द व औरत और यह चूंकि सबसे बड़ी बारात थी इसलिये इस बारात के बाराती भी सबसे ज़्यादा हैं, शाहो गदा, बच्चे-बूढ़े, जवान मर्द व औरत कमज़ोर व नातवां, तन्दुरुस्त व तवाना, अपने-पराये, अगले-पिछले सब शामिले बारात हैं, कभी आपने देखा होगा ? की जब कोई दूल्हा बनता है तो चाहे वो कैसा ही गया-गुज़रा, काला-कलूटा हो, लेकिन उस दिन दूल्हा ही की बात चलती है, उसकी इज्जत होती है, जो वो कहे वही लोग करते हैं, बारातियों का एजाज़ होता है तो उसके सदके में खाना खिलाया जाता है तो उसके तुफैल में।

तो जब मामूली दूल्हे का ये एजाज़ होता है तो जो कायनात का दूल्हा बनकर आया हो, जो हुस्नो खूबसूरती में लाजवाब हो, जिसके रुखे ताबां की ताबानियों से कायनात जगमगा रही हो, चाँद सूरज, सितारे झिलमिला रहे हों। हुस्ने युसूफ जो सारे आलम में मशहूर है, आज भी किसी खूबसूरत आदमी को देखकर लोग कह उठते हैं के ये तो युसूफ सानी मालूम होता है, उस युसूफ का हुस्न भी इसी दूल्हे के हुस्न का एकश्म्मिा है, एक ज़र्रा है, जिसके हुस्न की ये कैफियत कि उसकी सिर्फ मुस्कुराहट से इतनी रौशनी फैली कि अंधेरी रात में हज़रत आयशा ने अपनी गुमी हुई सुई तलाश कर ली हो।

बमज़मूने हदीसे पाक शबे दैजूर में ये दुल्हा जिधर निकल जाता तो दरो दीवार रौशनी के मीनारे बन जाते, ये तो सिर्फ हुस्नो जमाल की बात है वो कौन सी खूबी और कौन सा कमाल है जो इस अनोखे और निराले दुल्हा में न हो। हुस्नो जमाल हो कि जूदो नवाल, फज़लो कमाल, गरज़ कि हर बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी बात जो वजहे फ़ज़ीलत हो सकती हो, वो सब इस दूल्हा की जाते सुतूदा सिफात में बदर्जए अतम मौजूद है और क्यूं न हो कि जिसने आपको दुल्हा बनाया उसका ये बड़ा फ़ज़्ल है, जो ज़मीनो आसमान के खजानों का मालिक है, जो कुछ

▫पार्ट--02 | कायनात का दूल्हा

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कायदे की बात है के जब कहीं दूल्हा आता है तो दूल्हे की आमद पर उसकी हस्बे हैसियत इन्तेज़ामात होते हैं, अगर दूल्हा मामूली होता है तो इन्तेज़ामात भी मामूली होते हैं। अगर दूल्हा औसत दर्जे का होता है, तो इन्तेज़ामात भी दरमियानी, अगर दूल्हा आला दर्जे का होता है, तो इन्तेज़ामात भी आला, लेकिन ये दूल्हा तो इस शान का मालिक है, कि बकौल आला हज़रत फ़ाज़िले बरेलवी

सबसे आला वो औला हमारा नबी, सबसे बाला वो वाला हमारा नबी।
सारे ऊँचों से ऊँचा समझीये जिसे, है उस ऊँचे से ऊँचा हमारा नबी।।

तो जब दूल्हा इतना अर्फओ आला बलंदो बाला तो उसकी शायाने शान ही इन्तेज़ामात भी हुये कि दूल्हा की आमद से सदियों बरस पहले ज़मीन का फर्श बिछाया गया, आसमान का शामियाना ताना गया, चाँद-सूरज के हण्डे जलाये गये, सितारों के कुमकुमे रौशन किये गये और उसकी आमद-आमद के ऐलानात बरसहा बरस पहले कर दिये गये और ऐलान करने वाले भी मामूली इन्सान न थे बल्कि कायनाते इन्सान में सबसे अशरफ़ो आला गिरोह अंबिया अलैहिस्सलातो वत्तसलीम को इस काम के लिये मुकर्रर किया गया कि इन्हीं में हज़रत आदम अबुल बशर भी हैं, आदमे सानी हज़रत नूह अलैहिस्सलम भी हैं, हज़रत इब्राहीमे खलीलुल्लाह अलैहिस्सलाम भी हैं, हज़रत इस्माईल ज़बीहुल्लाह अलैहिस्सलाम भी हैं, हज़रत याकूब व युसूफ, हज़रत यहया व जकरिया, हजरत सुलेमान, हज़रत दाऊद, हज़रत मूसा व ईसा भी हैं। बल्के अज़ अव्वल ताआखिर कमोबेश एक लाख चौबीस

▫पार्ट--01 | कायनात का दूल्हा

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तहकीक आया तुम्हारे पास अल्लाह की जानिब से एक नूर और रौशन किताब। #(कुरान-ए-पाक)

वो सिर्फ नूर ही नहीं बल्कि वो मुजम्मिल भी है, मुदस्सिर भी है, ताहा व यासीन भी है, वो रहमतुल्लिल आलमीन खातेमुन नबीय्यीन शफीउल मुज़नबीन भी है वगैरह- वगैरह और इन सबके साथ-साथ उरुसे ममलेकते इलाहिया भी हैं, कायनात का दूल्हा बनकर तशरीफ़ ला रहे हैं और ऐसा अनोखा और निराला दूल्हा कि चश्मे फलक ने इनके अलावा न देखा न देख सकेगा और सैय्यदना हज़रत आदम से लेकर हज़रते ईसा तक न कोई आया और न सुबहे कयामत तक कोई आ सकेगा।

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फ़ाज़िले बरेलवी रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने खूब फ़रमाया:-

तेरे खुल्क को हक ने अज़ीम कहा, तेरी खल्क को हक ने जमील किया।
कोई तुझसा हुआ है न होगा शहा, तेरे खालिके हुस्नो अदा की कसम।।

वो खुदा ने है मर्तबा तुझको दिया न किसी को मिले, न किसी को मिला।
कि कलामे मजीद ने खाई शहा तेरे शहरो कलामो बक़ा की कसम।।

वो ऐसा दूल्हा है कि अगर वो दूल्हा बनकर न आता तो कोई दूल्हा ही न बनता, दूल्हा बनना तो दरकिनार दुनिया

मुसलमानों पर खुसूसी करम

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इब्ने जौज़ी अलैहिर्रहमतु रिज़वान फरमाते हैं-

वह अबू लहब जिसकी मज़म्मत पर कुरआन उतरा है उसे नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्ल की विलादत पर खुशी करने के सबब से जहन्नम में बदला दिया गया, तो फिर उस मुसलमान का क्या हाल होगा जो मीलादुन्नबी के मौके पर खुशियाँ मनाता है। ऐसे (आशिके रसूल) शख्स को अल्लाह तआला अपने फ़ज़्लों करम से जन्नतुन नईम में दाखिल फरमायेगा।

मज़ीद फरमाते हैं- "महफिले मीलाद की बरकत से सारा साल अम्न व अमान रहता है और तमाम जाइज़ ख्वाहिशात पूरी होने की जल्द बिशारत मिलती है।'' #(मा सबता बिस्सुन्नह)

प्यारे प्यारे सुन्नी भाइयों, ईदे मीलादुन्नबी की खुशी में घरों में चरागाँ करने व सजाने और मुसलमानों को खाना खिलाने, अल्लाह रसूल की राह में दिल खोलकर खर्च करने की सआदत सिर्फ उनको ही नसीब होती है जिनपर अल्लाह जल्ला शानहू का खुसूसी करम होता है।

बन्दों को ऐश-ए-शादी, अअदा को नामुरादी।
कुड़कीत का कड़का, सुहे शबे विलादत।।

रिसाला»» सुबहे शबे विलादत, पेज:11-12
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इज़्हारे खुशी से हुयी अज़ाब में कमी

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हज़रत अब्बास रदिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जब अबू लहब मर गया तो मैंने एक साल बाद उसे ख्वाब में देखा कि वह बहुत बुरे हाल में है और कहा कि तुम से जुदा होने के बाद (यानि मोमिनों से) मुझे कोई राहत नहीं मिली।

हां इतनी बात जरूर है कि हर पीर के दिन मेरे अज़ाब में कमी की जाती है ।

हजरत अब्बास रदिअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि इस अज़ाब में कमी की वजह यह है कि हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की विलादत पीर शरीफ के दिन हुयी और सोबिया ने अबू लहब को आपकी विलादत की खुशखबरी सुनाई तो अबू लहब ने उसको इस खुशी में आज़ाद कर दिया। #(फतहुल बारी जिल्द 9)

रिसाला»» सुबहे शबे विलादत, पेज:10-11
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अल्लाह की रहमतों का नुजूल

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प्यारे प्यारे सुन्नी भाइयों, जान-ए-ईमान हबीबे रहमान सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाइश के मौके पर खुशी का इज़्हार करना आपकी मीलाद बयान करना ख्वाह वह नज़्म में हो या नस्र में हो। इस मौके पर लंगर खिलाना बाइसे खैर व बरकत है, गुनाहगार उम्मत की बख़्शिश का सामान है और यही राहे निजात है।

अज़ीम मुहक्किक हज़रत अल्लामा शैख अब्दुलर हक मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैहि अपने मलफूज में फ़रमाते हैं- "हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शबे विलादत में खुशियां मनाने वालों की जज़ा यह है कि रब तबारक व तआला अपने फ़ज़्लों करम से जन्नतुन नईम में दाखिल फरमायेगा। जो मुसलमान सरकारे दोआलम की विलादत शरीफ की खुशी में आपके जिक्र का एहतमाम करते हैं, मकानों को सजाते हैं, खाने पकवाते हैं, दिल खोलकर खर्च करते हैं, इन तमाम कामों की बरकत से उन पर रहमते खुदावन्दी का नुज़ूल होता है।

रिसाला»» सुबहे शबे विलादत, पेज:9-10
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शैतान का मातम

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प्यारे प्यारे सुन्नी भाइयों, मालूम होना चाहिये, जिस सुहानी घड़ी मक्का में तैबा का चांद चमका और तमाम आलम पर नूर छाया, और हर तरफ बहार आई, व बहरो बर, बर्गो समर, शजर व हजर खुशी से झूमने लगे, ऐसे मुबारक दिन जान-ए-शैतान पर कयामत टूट पड़ी और वह बदबख़्त जलन व हसद में मातम करके खूब रोया ।

इससे यह साबित हो गया, सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की यौमे विलादत पर खुशी का इजहार न करना और मातम करना, और जल-जल कर ऐतराज करना, शैतान की पैरवी करना है।

निसार तेरी चहलपहल पर हजारों ईदें रबीयुल अव्वल ।
सिवाये इब्लीस के जहां में सभी तो खुशियां मना रहे हैं ।।

रिसाला»» सुबहे शबे विलादत, पेज:9
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मोमिन की पहचान

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अल्लाह तआला ने हमको बेशुमार नेमतों से नवाजा जैसे रिज़्क, पानी, हवा, आंख, कान, माँ बाप वगैरह, मगर किसी नेमत को देकर अहसान नहीं जताया लेकिन जब अपने महबूब को अता किया तो अपने बन्दों से फ़रमाया, बड़ा अहसान है कि तुम को अपना हबीब दिया।

لقد من اللہ علی المومین از بعث فہیم رسولا

तर्जुमाः- बेशक बड़ा अहसान है मुसलमानों पर कि उनमें उन ही मे से एक रसूल भेजा। #(कन्जुल ईमान)

सिर्फ़ अहसान ही नहीं जताया बल्कि अपने बन्दों को हुक्म फरमाया कि मेरी नेमत का खूब खूब चर्चा करो।
وا ما بنعمت ربک فحدث

प्यारे प्यारे सुन्नी भाइयों, इन्सान को अल्लाह तआला की जितनी बड़ी नेमत मिलती है वह उतना ही ज़्यादा खुश होता है और शुक्र अदा करता है । अल्लाह तआला की तमाम नेमतों और रहमतों में सबसे बड़ी नेमत हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं। इसलिये आपकी विलादते पाक पर खुशी का इजहार करना और आपकी मीलाद बयान करना (यानि पैदाइश का जिक्र) इस खुशी में जलसे मुनअकिद करना, जुलूस निकालना, लंगर खिलाना, अल्लाह के हुक्म की पैरवी है और हुक्मे रब्बी को पूरा करना मोमिन की पहचान है।

खाक हो जायें अदू जलकर मगर हम तो 'रजा' ।
दम में जब तक दम है जिक्र उनका सुनाते जायेंगे ।।

रिसाला»» सुबहे शबे विलादत, पेज:8-9
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रबियुन्नूर शरीफ की शान

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प्यारे प्यारे सुन्नी भाइयों! उल्माये मुहिक्किीन ने तहकीक की है व सराहत फ़रमाई है कि रबियुन्नूर शरीफ का महीना तमाम महीनों से अफजल है, हत्ता कि रमाजानुल मुबारक की शान भी इससे कम है क्योंकि रमाजानुल मुबारक में कुरआन आया और रबियुन्नूर शरीफ में साहिबे कुरआन हबीबे रहमान आया।

अल्लामा इमाम कस्तलानी शारेह बुखारी कुद्स सिर्रहुल अजीज मवाहिबे लदानियह में फरमाते हैं कि वह मुबारक साअत जिसमें बाइसे तख़्लीके कायनात मुख़्तारे कुल जलवा अफरोज हुये वह साअत और वह शब शबे कद्र से भी अफजल है।

लैइलतुल कद्र की बरकतों से मोमिनीन फैजयाब होते हैं मगर शबे विलादत में तमाम मखलूक पर रहमते खुदावन्दी नाजिल होती है।

वमा अर्सलनाक इल्ला रहमतल-लील-आलमीन  #(अलकुरआन 107/21)

रिसाला»» सुबहे शबे विलादत, पेज:7-8
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ईदे मीलादुन्नबी ईदों की ईद

ईदे मीलादुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मोमिनों यानि आशिकाने रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिये हजार ईदों से बढ़कर ईद है, क्योंकि इसी दिन और इसी साअते सईद में खातिमुल अम्बिया, नूरे खुदा मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दुनिया में तशरीफ लाये।

वह रसूल तशरीफ लाये जिनके खातिर जमीन व जमाँ, मकीन व मकाँ पैदा किये गये और जिनके सदके में अल्लाह तआला ने हमें दुनिया की तमाम नेमतें अता फरमाई।

लिहाजा इसी ईद के सदके मुसलमानों को ईदुल फित्र मिली और इसी ईद के सदके ईदुल अजहा मिली, बिला शुबह ईदे मीलादुन्नबी ही ईदों की ईद और आशिकों के लिये हकीकी ईद है।

विलादते शहे दीं हर खुशी की बाइस है।
हज़ार ईद से भारी है बारहवीं तारीख।। #(जौके नात)

रिसाला»» सुबहे शबे विलादत, पेज:6-7
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फज़ाइलो कमालाते मुस्तफाﷺ



हमारे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिस शान से दुनिया में तशरीफ लाये उस शान से न कोई आया है और न ही आयेगा।

हमारे प्यारे प्यारे आका ताजदारे हरम, शहरयारे इरम ! सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नाफ बरीदा और खत्ना शुदा पैदा हुये ।

आपकी आंखों में कुदरती सुर्मा लगा हुआ था और जुबान पे यह अल्फाज जारी थे, "रब्बे हब्ली उम्मती" (ऐ रब मेरी उम्मत मेरे हवाले कर दे)

रब्बे हबली उम्मती कहते हुये पैदा हुये।
हक ने फरमाया कि बख़्शा अस्सलातो वस्सलाम।।

सरकारे दोआलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब रूये जमीन पर तशरीफ लाये तो आपके दोनों दस्ते करम

मीलादुन्नबी ﷺ की बरकतें



सय्याहे लामकां, मालिके दो जहाँ सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमदे बा-सआदत से कब्ल मक्का शरीफ में कहत साली छायी हुयी थी। जमीने चटक गयी थीं। पेड़ जल गये थे। कुयें खुश्क हो गये थे, लोग मुसीबतों अफ़लास में गिरफ्तार थे। लेकिन जब गरीबों के आका, फकीरों के मलजा, बेकसों के कस, बेबसों के बस अपनी वालिदा माजिदा रदिअल्लाहु तआला अन्हा के शिकने मुबारक में तशरीफ लाये तो इतनी बारिश हुयी कि जमीन सब्ज व शादाब हो गयी। दरख्तों पर पत्ते, फल व फूल लग गये। सूखे हुये कुएँ पानी से लबरेज हो गये। जिन

वक्ते मौलूद मोजज़ाते सरकार ﷺ



हमारे सरकार, उम्मत के गम गुसार आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वाल्दा माजिदा हजरते आमिना रदिअल्लाहु तआला अन्हा इरशाद फरमाती हैं-

"विलादते बा सआदत के वक्त मैंने एक नूर देखा, जिसकी रौशनी से मुल्के शाम (सीरिया) के तमाम महल चमक उठे और मैं उनको देख रही थी।"

रहमते दोआलम, नूरे मुजस्सम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब इस दुनिया में तशरीफ लाये तो ऐसा नूर छाया जो मशरिक से मगरिब तक फैल गया और रहमते आलम का काशानये अकदस नूर से मुनव्वर हो गया। आसमान के सितारे झुक गये, ऐसा लग रहा था जैसे वह टूट के गिर पड़ेंगे #(फताहुल बारी, जिल्द 426)


हमारे सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दादा जान अब्दुल मुत्तलिब फरमाते हैं-

"मैंने देखा कि काबे को वज्द आ गया और वह हजरते आमिना के मकान की जानिब झुका। काबे में जितने बुत

सुबहे शबे विलादत



पुरनूर है जमाना सुबहे शबे विलादत।
पर्दा उठा है किसका सुबहे शबे विलादत।।
अर्शे अजीम झूमे, काबा जमीन चूमे।
आता है अर्श वाला, सुबहे शबे विलादत।।

✍️(हजरत हसन रजा बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह)

आज सरजमीने अरब पर अजीब सी रौनक है, हर तरफ चहल पहल है। आसमान और जमीन में फरिश्ते उनकी

नमाज़ में बारीक कपड़ा पहनना



मस्अला:- ऐसा बारीक कपड़ा तहेबन्द (लुंगी) बांधकर नमाज़ पढ़ना कि बदन की सुर्खी (त्वचा Skin की रंगत) झलके और या उस बारीक कपड़े से सतर का है कोई अज्व (अंग) उस हैसियत (तरीके से नज़र आ जाएगा तो नमाज़ फासिद हो जाएगी।

इसी तरह औरतों (स्त्रियों) का वोह दुपट्टा (Scarf) कि जिस से सर के बालों की सियाही चमके, मुफसिदे-नमाज़ है।

#(रदुल मोहतार; फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-1)
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नमाज़ में सतरे-औरत (गुप्त अंग / जिस्म के छुपे हिस्से) खुले होने पर



मस्अला:- एक रूक्न अदा करने की मिकदार तक या तीन तस्बीह (या'नी तीन मरतबा ‘सुब्हानल्लाह' कहने) के वक्त की मिकदार तक सतरे-औरत (गुप्त अंग / जिस्म के छुपे हिस्से) खोले हुए या बक़दरे-माने (इतनी मात्रा के साथ जो मना है) नजासत या'नी नापाक पदार्थ के साथ नमाज़ पढ़ी, तो नमाज़ फासिद हो जाएगी। येह उस सूरत में है कि बिला कस्द हो और अगर कस्दन (अपने इरादे से) सतर खोला तो फौरन नमाज़ फासिद हो जाएगी। अगरचे फौरन ढांक ले, इसमें वक़फा की भी हाजत नहीं, बल्कि सतर खोलते ही फौरन नमाज़ फासिद हो जाएगी।

#(रदुल मोहतार; बहारे शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-153; फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-1)
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नमाज़ की हालत में दाँतों से खून निकला



मस्अला:- दांतों से खून निकला और हालते-नमाज़ में उसे निगल लिया, तो अगर थूक (Spit) गालिब (ज़्यादा, विशेष मात्र में-Exceeding) है, तो निगलने से नमाज़ फासिद नहीं होगी और अगर खून (रक्त-Blood) गालिब है तो निगलने से नमाज़ फासिद हो जाएगी।

ग़लबा की अलामत (पहचान) येह है कि, खून का मज़ा (स्वाद) महसूस हो।

नमाज़ और रोजा तोड़ने में मजा का ए'तबार (विश्वास-Reliance) है और वुजू तोड़ने में रंग (Colour) का ए'तबार।

#(दुर्रे मुख़्तार; आलमगीरी; फतावा रिज़वीया जिल्द-1 सफ़ा-32/522)
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मुँह के अंदर कोई चीज़ थी नमाज़ की हालात में उसे निगल गया



मस्अला:- दांतों के अंदर खाने (अन्न) की कोई चीज़ रहे गई थी और हालते-नमाज़ में उसको निगल गया, तो अगर वोह चीज़ चने (चणा) की मिकदर (मात्रा) से कम है, तो नमाज़ फासिद नहीं होगी, अलबत्ता नमाज़ मकरूह होगी और अगर चने के बराबर या ज्यादा है, तो नमाज फासिद हो जाएगी।
#(दुर्रे मुख्तार; आलमगीरी)
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नमाज़ में खाना-पीना




मस्अला:- नमाज़ की हालत में खाना-पीना मुत्लकन (साहजिक) नमाज़ फासिद कर देता है। कस्दन हो या भूल कर हो, थोड़ा हो या ज़्यादा हो।
यहां तक कि अगर एक तिल भी बगैर चबाए भी निगल गया या कोई कतरा (बूंद--Drop) चाहे वोह पानी का ही कतरा हो, उस के हल्क (गले-Throat) या मुंह में गया, और उसने निगल लिया (हल्क के नीचे उतार लिया) तो नमाज़ फासिद हो जाएगी।

#(दुर्रे मुख़्तार; रद्दुल मोहतार)
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नमाज़ में धीमी आवाज़ से हँसना




मस्अला:- अगर नमाज़ में इतनी पस्त (धीमी-Slow) आवाज़ से हंसा कि खुद ने सुना और करीब वाला नहीं सुन सका, तो भी नमाज़ फासिद हो गई। अलबत्ता इस सूरत में वुजु नहीं टूटेगा

#(बहारे शरीअत हिस्सा-2 सफ़ा-25)
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नमाज़ में तेज़ आवाज़ से हँसना



मस्अला:- नमाज में कहकहा (अट्टहास्य-Giggling) लगाना या'नी इतनी आवाज़ से हंसना कि करीब वाला सुन सके, तो नमाज़ फासिद हो जाएगी और नमाज़ फासिद होने के साथ वुजू भी टूट जाएगा।

#(दुर्रे मुख़्तार; फतावा रिज़विया जिल्द-1 सफ़ा-92)
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नमाज़ में चलना



मस्अला:- नमाज़ की हालत में दो (2) सफ जितना चलने से नमाज़ फासिद हो जाएगी।
#(दुर्रे मुख़्तार; बहारे शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-154)
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मुक्तदी का इमाम से पहले सज्दा वैगरह करना



मस्अला:- मुक्तदी इमाम से आगे खड़ा हो गया या मुक्तदी ने इमाम से पहले नमाज़ का कोई रूकन (सजदा, रूकूअ वगैरह) अदा कर लिया और पूरा रूक्न इमाम से पहले अदा कर लिया, तो मुक्तदी की नमाज फासिद हो जाएगी।

#(दुर्रे मुख़्तार; रद्दुल मोहतार)
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नमाज़ में देख कर क़ुरान पढ़ना




मस्अला:- नमाज़ में देखकर कुरआन शरीफ पढ़ने से नमाज़ फासिद हो जाएगी।

#(दुर्रे मुख़्तार; बहारे-शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-153)
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उज़्र और बग़ैर उज़्र खखारने पर नमाज़



मस्अला:-  खखारने (खोखारो-Hem) में अगर दो (2) हर्फ जाहिर हो, जैसे 'आह' या 'अख' या 'हख' तो अगर कोई उज्र (कारण) नहीं, तो अबस (व्यर्थ, बिला वजह) खंखारने से नमाज़ फासिद हो जाएगी. और अगर सहीह गरज़ (योग्य हेतू-Right Intention) और सहीह उज्र की वजह से खंखारा मस्लन गले में कुछ फंस गया है या बलगम (कफ-Cough) आ गया है, या आवाज़ साफ करने के लिये या इमाम की गलती पर उसे मुतनब्बेह (सावधान-Circumspect) करने के लिये खंखारा, तो नमाज फासिद नहीं होगी।

#(दुर्रे मुख़्तार; बहारे शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-152; फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-102)
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नमाज़ के दौरान फूंकने में उफ, हुफ वैगरह हर्फ़ पैदा हो



मस्अला:- फूंकने में अगर आवाज़ पैदा न हो तो वोह मिस्ल सांस के है और उससे नमाज़ फासिद नहीं होगी, मगर कस्दन (जान-बूझकर) फूंकना मकरूह है और अगर फूंकने में दो (2) हर्फ पैदा हुए मस्लन 'उफ' या 'हूफ' या 'तुफ' या 'हुश' तो नमाज़ फासिद हो जाएगी।

#(गुन्या शरहे मुन्या)
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