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माहे रबीउल अव्वल की बारह तारीख़ को हमारे प्यारे आक़ाﷺ इस दुनिया में तश्ररीफ़ लाये और दुनिया भर के मुसलमान क़दीम ज़माने से आप की विलादत की ख़ुशी मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से मनाते चले आये हैं। माहे रबीउल अव्वल की बारहवीं तारीख़ जश्न मनाना, एक दूसरे को मुबारकबाद देना, चराग़ां करना वगैरा खैर व बरकत के काम हैं उनकी अस्ल कुरआन व हदीस से साबित है। इन बातों की मुखालफ़त करने वाला यक़ीनन राहे हक़ से भटका हुआ है।
लेकिन मौजूदा दौर में ईद मीलादुन्नबीﷺ के मौके पर लोग हद से बढ़ चुके हैं। जुलूसों में डी.जे. और ढोल जैसी आवाज़ों वाली नातें पढ़ी जाती हैं, उन की धुनों पर नौजवान डांस करते, कूदते-थिरकते हैं। कहीं छतों से खाने पीने का सामान फेंक कर रिज़्क़ की बेहुरमती की जाती है। गुम्बदे ख़ज़रा वगैरा के मुजस्समे तो जाने दीजिये अब तो ऐसी चीज़ों के मुजस्समे बनाकर घुमाये जाने लगे हैं जिनका इस्लाम से कोईतअल्लुक़ नहीं।
खुलासा यह कि अब इसमें बहुत सारीगैर शरईबातें दाखिल हो गयीं हैं। ज़रूरत इस बात की है कि हम सब मिलकर इन के ख़ातमे की कोशिश करें और जहां तक हो सके सादगी, अदब व एहतराम के साथ, शरीअत के
माहे रबीउल अव्वल की बारह तारीख़ को हमारे प्यारे आक़ाﷺ इस दुनिया में तश्ररीफ़ लाये और दुनिया भर के मुसलमान क़दीम ज़माने से आप की विलादत की ख़ुशी मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से मनाते चले आये हैं। माहे रबीउल अव्वल की बारहवीं तारीख़ जश्न मनाना, एक दूसरे को मुबारकबाद देना, चराग़ां करना वगैरा खैर व बरकत के काम हैं उनकी अस्ल कुरआन व हदीस से साबित है। इन बातों की मुखालफ़त करने वाला यक़ीनन राहे हक़ से भटका हुआ है।
लेकिन मौजूदा दौर में ईद मीलादुन्नबीﷺ के मौके पर लोग हद से बढ़ चुके हैं। जुलूसों में डी.जे. और ढोल जैसी आवाज़ों वाली नातें पढ़ी जाती हैं, उन की धुनों पर नौजवान डांस करते, कूदते-थिरकते हैं। कहीं छतों से खाने पीने का सामान फेंक कर रिज़्क़ की बेहुरमती की जाती है। गुम्बदे ख़ज़रा वगैरा के मुजस्समे तो जाने दीजिये अब तो ऐसी चीज़ों के मुजस्समे बनाकर घुमाये जाने लगे हैं जिनका इस्लाम से कोईतअल्लुक़ नहीं।
खुलासा यह कि अब इसमें बहुत सारीगैर शरईबातें दाखिल हो गयीं हैं। ज़रूरत इस बात की है कि हम सब मिलकर इन के ख़ातमे की कोशिश करें और जहां तक हो सके सादगी, अदब व एहतराम के साथ, शरीअत के