सय्याहे लामकां, मालिके दो जहाँ सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमदे बा-सआदत से कब्ल मक्का शरीफ में कहत साली छायी हुयी थी। जमीने चटक गयी थीं। पेड़ जल गये थे। कुयें खुश्क हो गये थे, लोग मुसीबतों अफ़लास में गिरफ्तार थे। लेकिन जब गरीबों के आका, फकीरों के मलजा, बेकसों के कस, बेबसों के बस अपनी वालिदा माजिदा रदिअल्लाहु तआला अन्हा के शिकने मुबारक में तशरीफ लाये तो इतनी बारिश हुयी कि जमीन सब्ज व शादाब हो गयी। दरख्तों पर पत्ते, फल व फूल लग गये। सूखे हुये कुएँ पानी से लबरेज हो गये। जिन
जानवरों के थन खुश्क हो गये थे वह दूध से भर गये। हर तरफ खुशियां और शादमानियाँ आ गयीं।

फूलों से बाग महके, शाखों पे मुर्ग चहके।
अहदे बहार आया सुबहे शबे विलादत।।

इसलिये अल्लामा इमाम अहमद बिन मुहम्मद कस्तलानी शारेह बुख़ारी अलैहिर्रमतो बारी मीलादुन्नबीﷺ की बरकतो व फजाइल का तजकिरा करते हुये फरमाते हैं- मीलाद शरीफ के खवास में से आजमाया गया है कि इसकी बरकतों से सारा साल, मुसलमानों के लिये हिफ़्ज़ो अमान रहता है। मीलादुन्नबीﷺ मनाने (इस पर खुशियों का इज़हार करने से) दिली मुरादें पूरी होती हैं। अल्लाह तआला उस शख्स पर रहमतें नाजिल फरमाये जिसने विलादत की रातों को मुसर्रत की ईद बना लिया। #(फजाइले मीलाद)

रिसाला»» सुबहे शबे विलादत, पेज:5
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वीअह्-लिया मोहतरमा

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