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दुनिया में रोज़ाना लोग दूल्हा बनते हैं, बारातें रोज़ाना आती और जाती है, लेकिन इधर बारात गयी और सारे इन्तेज़ामात खत्म, फर्श लपेट दिया जाता है, शामियाने खोल दिये जाते हैं, लाईट ऑफ़ कर दी जाती है लेकिन ये कैसी बारात है कि फर्श जो बिछा है वह आज तक बिछा है, आसमान का शामियाना जो तना है वह आज तक तना है इसी से पता चला कि वो आने वाला दुल्हा जो है, जो आया था वो आज भी है।

अगर दुल्हा चला गया होता, अगर दुल्हा मआजल्लाह मरकर मिट्टी में मिल गया होता, तो ज़मीन का फ़र्श लपेट दिया जाता और आसमान का शामियाना बंद कर दिया जाता और ये रोशनियां खत्म कर दी जाती लेकिन मालूम हुआ कि वो दूल्हा आज भी है, और ये बारात सजी हुई है चाँद-सूरज की कंदीलें जो जली हैं, वो जल ही रही है, बड़ी रौशनी के साथ छोटी रौशनी भी हुई, चुनांचे आसमान की दो बड़ी रौशनियों के साथ-साथ छोटे कुमकुमे भी आज तक रौशन हैं और हर आने वाली सुहानी सुब्ह में फूलों की महक के साथ बुलबुलों की चहक, कोयलों की कूक, मुर्गों की अज़ानें और हज़ारहा छोटे-बड़े परिन्दों की दिलकश और मुतरन्निम आवाजें दूल्हा की आमद-आमद की खुशी में सरशार होकर नग़माते तरब आज तक दुनिया के तूलो-अर्ज में सुनी जा रही है। जो परिन्दे अपने-अपने लबो लहजे में गाते हैं और सुनने वालों के लिये अपनी मीठी-मीठी और सुरीली आवाज़ों से फ़रहतो
सुरुर का सामान मुहैया करते हैं और इस तरह हर रोज़ बिला नागा दूल्हा की आमद की याद ताज़ा हो जाती है तो मालूम हुआ कि बारात अभी खत्म नहीं हुई।

जिस सुहानी घड़ी चमका तैबा का चांद।
उस दिल अफरोज साअत पे लाखों सलाम।।

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वीअह्-लिया मोहतरमा

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