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जब कोई बड़ी बारात होती है तो उसमें हर तरह के लोग होते हैं, अमीर-गरीब बच्चे-बूढ़े, जवान मर्द व औरत और यह चूंकि सबसे बड़ी बारात थी इसलिये इस बारात के बाराती भी सबसे ज़्यादा हैं, शाहो गदा, बच्चे-बूढ़े, जवान मर्द व औरत कमज़ोर व नातवां, तन्दुरुस्त व तवाना, अपने-पराये, अगले-पिछले सब शामिले बारात हैं, कभी आपने देखा होगा ? की जब कोई दूल्हा बनता है तो चाहे वो कैसा ही गया-गुज़रा, काला-कलूटा हो, लेकिन उस दिन दूल्हा ही की बात चलती है, उसकी इज्जत होती है, जो वो कहे वही लोग करते हैं, बारातियों का एजाज़ होता है तो उसके सदके में खाना खिलाया जाता है तो उसके तुफैल में।
तो जब मामूली दूल्हे का ये एजाज़ होता है तो जो कायनात का दूल्हा बनकर आया हो, जो हुस्नो खूबसूरती में लाजवाब हो, जिसके रुखे ताबां की ताबानियों से कायनात जगमगा रही हो, चाँद सूरज, सितारे झिलमिला रहे हों। हुस्ने युसूफ जो सारे आलम में मशहूर है, आज भी किसी खूबसूरत आदमी को देखकर लोग कह उठते हैं के ये तो युसूफ सानी मालूम होता है, उस युसूफ का हुस्न भी इसी दूल्हे के हुस्न का एकश्म्मिा है, एक ज़र्रा है, जिसके हुस्न की ये कैफियत कि उसकी सिर्फ मुस्कुराहट से इतनी रौशनी फैली कि अंधेरी रात में हज़रत आयशा ने अपनी गुमी हुई सुई तलाश कर ली हो।
बमज़मूने हदीसे पाक शबे दैजूर में ये दुल्हा जिधर निकल जाता तो दरो दीवार रौशनी के मीनारे बन जाते, ये तो सिर्फ हुस्नो जमाल की बात है वो कौन सी खूबी और कौन सा कमाल है जो इस अनोखे और निराले दुल्हा में न हो। हुस्नो जमाल हो कि जूदो नवाल, फज़लो कमाल, गरज़ कि हर बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी बात जो वजहे फ़ज़ीलत हो सकती हो, वो सब इस दूल्हा की जाते सुतूदा सिफात में बदर्जए अतम मौजूद है और क्यूं न हो कि जिसने आपको दुल्हा बनाया उसका ये बड़ा फ़ज़्ल है, जो ज़मीनो आसमान के खजानों का मालिक है, जो कुछ
अगलों को दिया था, वो सब भी इस दूल्हा को दिया, बल्कि उससे कहीं ज्यादा अता फरमाया-
हुस्ने यूसुफ, दमे ईसा, यदे बैज़ा दारी।
आंचे खूबाँ हमा दारंद, तो तनहा दारी।।
तो जब मामूली दूल्हा की ये शान होती है कि वो जब दूल्हा बनता है तो उसी का कहा होता है, बारातियों का एजाज़ होता है तो उसी की वजह से, बारातियों को खाना मिलता है, तो उसी के तुफैल तो इस सबसे बड़े दूल्हा की शान भी बड़ी है, कि उसका हुक्म चार दांगे आलम में जारी व सारी है, *आला हज़रत ने क्या खूब फ़रमाया-*
वो ज़बां जिसको सब कुन की कुंजी कहे।
उसकी नाफ़िज़ हुकूमत पे लाखों सलाम।।
इसी दुल्हा के सदके कोई सिद्दीके अकबर है, तो कोई फारुके आज़म, कोई उस्माने गनी, तो कोई मौलाये कायनात अली-ए-मुर्तुजा और इसी पर बस नहीं बल्कि तमाम अम्बिया अलैहिमुस्सलाम, औलियाए किराम, अइम्मए किराम, मशाइखे इज़ाम, ओलमा, फोकहा, असफ़िया, अबदाल, अकताब, गौस, अगवास, ज़मीनो आसमां में जिसे जो एजाज़े दीनी हो या दुनियावी एजाज़ इसी दुल्हा से मिला और उस प्यारे निराले दुल्हा ने खुद अपनी ज़बाने मुबारक से एलान फरमाया- अल्लाहु युअतीव इन्नमा अना कासिम। अल्लाह देता है और मैं तकसीम करता हूँ।
आसमां ख्वान, ज़मीं ख्वान, ज़माना मेहमाँ।
साहिबे खाना लकब किसका है तेरा-तेरा।।
ला वरब्बिल अर्श जिसको जो मिला उनसे मिला।
बंटती है कौनैन में नेमत रसूलुल्लाहﷺ की।।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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https://MjrMsg.blogspot.com/p/dulha.html
जब कोई बड़ी बारात होती है तो उसमें हर तरह के लोग होते हैं, अमीर-गरीब बच्चे-बूढ़े, जवान मर्द व औरत और यह चूंकि सबसे बड़ी बारात थी इसलिये इस बारात के बाराती भी सबसे ज़्यादा हैं, शाहो गदा, बच्चे-बूढ़े, जवान मर्द व औरत कमज़ोर व नातवां, तन्दुरुस्त व तवाना, अपने-पराये, अगले-पिछले सब शामिले बारात हैं, कभी आपने देखा होगा ? की जब कोई दूल्हा बनता है तो चाहे वो कैसा ही गया-गुज़रा, काला-कलूटा हो, लेकिन उस दिन दूल्हा ही की बात चलती है, उसकी इज्जत होती है, जो वो कहे वही लोग करते हैं, बारातियों का एजाज़ होता है तो उसके सदके में खाना खिलाया जाता है तो उसके तुफैल में।
तो जब मामूली दूल्हे का ये एजाज़ होता है तो जो कायनात का दूल्हा बनकर आया हो, जो हुस्नो खूबसूरती में लाजवाब हो, जिसके रुखे ताबां की ताबानियों से कायनात जगमगा रही हो, चाँद सूरज, सितारे झिलमिला रहे हों। हुस्ने युसूफ जो सारे आलम में मशहूर है, आज भी किसी खूबसूरत आदमी को देखकर लोग कह उठते हैं के ये तो युसूफ सानी मालूम होता है, उस युसूफ का हुस्न भी इसी दूल्हे के हुस्न का एकश्म्मिा है, एक ज़र्रा है, जिसके हुस्न की ये कैफियत कि उसकी सिर्फ मुस्कुराहट से इतनी रौशनी फैली कि अंधेरी रात में हज़रत आयशा ने अपनी गुमी हुई सुई तलाश कर ली हो।
बमज़मूने हदीसे पाक शबे दैजूर में ये दुल्हा जिधर निकल जाता तो दरो दीवार रौशनी के मीनारे बन जाते, ये तो सिर्फ हुस्नो जमाल की बात है वो कौन सी खूबी और कौन सा कमाल है जो इस अनोखे और निराले दुल्हा में न हो। हुस्नो जमाल हो कि जूदो नवाल, फज़लो कमाल, गरज़ कि हर बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी बात जो वजहे फ़ज़ीलत हो सकती हो, वो सब इस दूल्हा की जाते सुतूदा सिफात में बदर्जए अतम मौजूद है और क्यूं न हो कि जिसने आपको दुल्हा बनाया उसका ये बड़ा फ़ज़्ल है, जो ज़मीनो आसमान के खजानों का मालिक है, जो कुछ
अगलों को दिया था, वो सब भी इस दूल्हा को दिया, बल्कि उससे कहीं ज्यादा अता फरमाया-
हुस्ने यूसुफ, दमे ईसा, यदे बैज़ा दारी।
आंचे खूबाँ हमा दारंद, तो तनहा दारी।।
तो जब मामूली दूल्हा की ये शान होती है कि वो जब दूल्हा बनता है तो उसी का कहा होता है, बारातियों का एजाज़ होता है तो उसी की वजह से, बारातियों को खाना मिलता है, तो उसी के तुफैल तो इस सबसे बड़े दूल्हा की शान भी बड़ी है, कि उसका हुक्म चार दांगे आलम में जारी व सारी है, *आला हज़रत ने क्या खूब फ़रमाया-*
वो ज़बां जिसको सब कुन की कुंजी कहे।
उसकी नाफ़िज़ हुकूमत पे लाखों सलाम।।
इसी दुल्हा के सदके कोई सिद्दीके अकबर है, तो कोई फारुके आज़म, कोई उस्माने गनी, तो कोई मौलाये कायनात अली-ए-मुर्तुजा और इसी पर बस नहीं बल्कि तमाम अम्बिया अलैहिमुस्सलाम, औलियाए किराम, अइम्मए किराम, मशाइखे इज़ाम, ओलमा, फोकहा, असफ़िया, अबदाल, अकताब, गौस, अगवास, ज़मीनो आसमां में जिसे जो एजाज़े दीनी हो या दुनियावी एजाज़ इसी दुल्हा से मिला और उस प्यारे निराले दुल्हा ने खुद अपनी ज़बाने मुबारक से एलान फरमाया- अल्लाहु युअतीव इन्नमा अना कासिम। अल्लाह देता है और मैं तकसीम करता हूँ।
आसमां ख्वान, ज़मीं ख्वान, ज़माना मेहमाँ।
साहिबे खाना लकब किसका है तेरा-तेरा।।
ला वरब्बिल अर्श जिसको जो मिला उनसे मिला।
बंटती है कौनैन में नेमत रसूलुल्लाहﷺ की।।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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