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तहकीक आया तुम्हारे पास अल्लाह की जानिब से एक नूर और रौशन किताब। #(कुरान-ए-पाक)
वो सिर्फ नूर ही नहीं बल्कि वो मुजम्मिल भी है, मुदस्सिर भी है, ताहा व यासीन भी है, वो रहमतुल्लिल आलमीन खातेमुन नबीय्यीन शफीउल मुज़नबीन भी है वगैरह- वगैरह और इन सबके साथ-साथ उरुसे ममलेकते इलाहिया भी हैं, कायनात का दूल्हा बनकर तशरीफ़ ला रहे हैं और ऐसा अनोखा और निराला दूल्हा कि चश्मे फलक ने इनके अलावा न देखा न देख सकेगा और सैय्यदना हज़रत आदम से लेकर हज़रते ईसा तक न कोई आया और न सुबहे कयामत तक कोई आ सकेगा।
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फ़ाज़िले बरेलवी रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने खूब फ़रमाया:-
तेरे खुल्क को हक ने अज़ीम कहा, तेरी खल्क को हक ने जमील किया।
कोई तुझसा हुआ है न होगा शहा, तेरे खालिके हुस्नो अदा की कसम।।
वो खुदा ने है मर्तबा तुझको दिया न किसी को मिले, न किसी को मिला।
कि कलामे मजीद ने खाई शहा तेरे शहरो कलामो बक़ा की कसम।।
वो ऐसा दूल्हा है कि अगर वो दूल्हा बनकर न आता तो कोई दूल्हा ही न बनता, दूल्हा बनना तो दरकिनार दुनिया
ही न बनती । लौ ला कलमा खलक्तुद्दुनियां, न मशरीक होता न मगरिब, न शुमाल होता, न जुनूब, न ज़मीन व आसमाँ होते, न चाँद तारे न कहकशां होती, न ये आबादियां होती, न वीराने होते, न जंगल, न पहाड़ होते, न आबशार होते, न दरिया होते, न समंदर, न समंदर की रवानी होती, न दरियाओं की तुगियानी, न ये बागात होते, न फूल होते, न फूलों की महक, न बुलबुल होते, न बुलबुलों की चहक, न हवायें चलती, न नसीमे सहरी सनकती।
इसीलिये तो मेरे आला हज़रत ने फ़रमाया-
ये सबा सनक, वो कली चटक, ये जबां चहक, लबे-जू छलक।
ये महक झलक, ये चमक-दमक सब उसी के दम की बहार है।।
वही जलवा, शहर ब-शहर है, वही अस्ले आलमो दहर है।
वही बहर है, वही लहर है, वही पाट है, वही धार है।।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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तहकीक आया तुम्हारे पास अल्लाह की जानिब से एक नूर और रौशन किताब। #(कुरान-ए-पाक)
वो सिर्फ नूर ही नहीं बल्कि वो मुजम्मिल भी है, मुदस्सिर भी है, ताहा व यासीन भी है, वो रहमतुल्लिल आलमीन खातेमुन नबीय्यीन शफीउल मुज़नबीन भी है वगैरह- वगैरह और इन सबके साथ-साथ उरुसे ममलेकते इलाहिया भी हैं, कायनात का दूल्हा बनकर तशरीफ़ ला रहे हैं और ऐसा अनोखा और निराला दूल्हा कि चश्मे फलक ने इनके अलावा न देखा न देख सकेगा और सैय्यदना हज़रत आदम से लेकर हज़रते ईसा तक न कोई आया और न सुबहे कयामत तक कोई आ सकेगा।
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फ़ाज़िले बरेलवी रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने खूब फ़रमाया:-
तेरे खुल्क को हक ने अज़ीम कहा, तेरी खल्क को हक ने जमील किया।
कोई तुझसा हुआ है न होगा शहा, तेरे खालिके हुस्नो अदा की कसम।।
वो खुदा ने है मर्तबा तुझको दिया न किसी को मिले, न किसी को मिला।
कि कलामे मजीद ने खाई शहा तेरे शहरो कलामो बक़ा की कसम।।
वो ऐसा दूल्हा है कि अगर वो दूल्हा बनकर न आता तो कोई दूल्हा ही न बनता, दूल्हा बनना तो दरकिनार दुनिया
ही न बनती । लौ ला कलमा खलक्तुद्दुनियां, न मशरीक होता न मगरिब, न शुमाल होता, न जुनूब, न ज़मीन व आसमाँ होते, न चाँद तारे न कहकशां होती, न ये आबादियां होती, न वीराने होते, न जंगल, न पहाड़ होते, न आबशार होते, न दरिया होते, न समंदर, न समंदर की रवानी होती, न दरियाओं की तुगियानी, न ये बागात होते, न फूल होते, न फूलों की महक, न बुलबुल होते, न बुलबुलों की चहक, न हवायें चलती, न नसीमे सहरी सनकती।
इसीलिये तो मेरे आला हज़रत ने फ़रमाया-
ये सबा सनक, वो कली चटक, ये जबां चहक, लबे-जू छलक।
ये महक झलक, ये चमक-दमक सब उसी के दम की बहार है।।
वही जलवा, शहर ब-शहर है, वही अस्ले आलमो दहर है।
वही बहर है, वही लहर है, वही पाट है, वही धार है।।
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