हमारे सरकार, उम्मत के गम गुसार आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वाल्दा माजिदा हजरते आमिना रदिअल्लाहु तआला अन्हा इरशाद फरमाती हैं-
"विलादते बा सआदत के वक्त मैंने एक नूर देखा, जिसकी रौशनी से मुल्के शाम (सीरिया) के तमाम महल चमक उठे और मैं उनको देख रही थी।"
रहमते दोआलम, नूरे मुजस्सम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब इस दुनिया में तशरीफ लाये तो ऐसा नूर छाया जो मशरिक से मगरिब तक फैल गया और रहमते आलम का काशानये अकदस नूर से मुनव्वर हो गया। आसमान के सितारे झुक गये, ऐसा लग रहा था जैसे वह टूट के गिर पड़ेंगे। #(फताहुल बारी, जिल्द 426)
हमारे सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दादा जान अब्दुल मुत्तलिब फरमाते हैं-
"मैंने देखा कि काबे को वज्द आ गया और वह हजरते आमिना के मकान की जानिब झुका। काबे में जितने बुत
थे, सब के सब सर के बल गिर पड़े और काबे शरीफ से यह सदायें बुलन्द हो गयीं,
विलादत हो गयी मुस्तफा की, जिनके हाथों काफिर हलाक हो जायेंगे और वह बुतों की पूजा से पाक करेंगे और इल्म वाले बादशाह की इबादत का हुक्म देंगे
कैसर व किसरा के महल लरज़ उठे और उसके 14 कंगूरे टूटकर गिर पड़े ,फारस (ईरान) के आतिशकदे की आग खुद-ब-खुद बुझ गयी जो एक हजार साल से जल रही थी और सावह नाम का दरिया खुश्क हो गया।
आशिके आला हजरत जमीले कादरी क्या खूब फरमाते है :-
बुत शिकन आया, कह के सर के बल बुत गिर पड़े।
झूम के कहता था काबा अस्सलातो वस्सलाम।।
रिसाला»» सुबहे शबे विलादत, पेज:3-4
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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