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ये जलसे, जुलूस हम और आप हर बरस दूल्हा की अकीदतो मोहब्बत में मनाते हैं, चरागाँ करते हैं, खुशियां मनाते हैं, हालांकि इस पर शिर्क और बिदअत का फ़तवा लगाने वालों ने रोक लगाने की हर चंद कोशिशें कीं और कर रहे हैं।
तू घटाए से किसी के न घटा है न घटे।
जब बढाए तुझे अल्लाह तआला तेरा।।
ये सिलसिला ता कयामत इन्शा अल्लाह यूं ही जारी रहेगा।
रहेगा यूं ही उनका चर्चा रहेगा।
पड़े खाक हो जाएं जल जाने वाले।।
इन जल्से जुलूसों के एखतेताम पर एक और बहुत बड़ा जलसए आम होगा। इतना बड़ा इज़्लास, इतना बड़ा इजतेमाअ जो चश्मे फलक ने अब तक देखा ही नहीं न सुनने में आया न उसका तसव्वुर ही किया जा सकता है जिसमें अव्वलीनो आखेरीन अपने और पराये दोस्तो दुश्मन, काले-गोरे, हर मुल्को मिल्लत के लोग जमा होंगे, आखीर में जो इजलास में शरीक न होना चाहेंगे वो भी घसीट कर लाये जाएंगे और इस इजलास की गरज़ो गायत भी उसी दूल्हा की शानो शौकत का इज़हार है, क्या ही खूब फरमाया है हमारे जद्दे अमजद उस्तादे ज़मन ने -
फकत इतना सबब है इनइकादे बज़्मे महशहर का।
कि उनकी शाने महबूबी दिखाई जाने वाली है।।
आज जो उन्हें नहीं मान रहे हैं, वो भी मान लें जो अब तक नहीं पहचान रहे हैं, तो पहचान लें कि उस रोज का मानना काम नहीं आएगा।
आज ले उनकी पनाह, आज मदद मांग उनसे।
फिर न मानेंगे कयामत में अगर मान गया।।
ज्यादा तफ़सील में न जाते हुए मुख्तसरन अर्ज करूं कि जलसा खतम होते ही अपने बेगाने सब अपने-अपने घरों की राह लेते हैं, वहां भी यही होगा कि इस इजलासे अज़ीम के खतम होने पर दुल्हा से सच्ची मोहब्बत रखने वाले अपने दिलो जान से चाहने वाले, उनके नक्शे कदम पर चलने वाले, उनकी इत्तेबाअ व पैरवी करने वाले उनकी बारगाह में अकीदतो महब्बत के नज़राने पेश करने वाले उसके हर हुक्म की तामील करने वाले अपने उस घर में दाखिल हो जायेंगे, जो बहुत पहले से उनके लिये तैयार है, जो अबदी राहत व आराम का घर है और इतनी खूबसूरत व हसीन है कि दुनिया में उसकी मिसाल नहीं पेश की जा सकती है जिसका नाम जन्नत है। जहां की
नेअमत का जिक्र करते हुए कायनात के दुल्हा ने इरशाद फरमाया था। (तर्जुमा हदीस शरीफ) जन्नत में वह अनोखी व निराली नेअमतें है जो न किसी आंख ने देखीं, न किसी कान ने सुनीं और न उनके लुत्फ लज़्ज़त का खतरा किसी के दिल में गुज़रा, इसमें मुखतलिफ़ तबकात के बरातियों के लिये आलीशान मकानात हैं महलात हैं, जिसमें बागात हैं, दूध और शहद की नहरें हैं, खिदमत के लिये हूरो गिलमान है । गरज़ कि ज़रुरत की हर बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी चीज़ मौजूद है, जिसमें ये बाराती हमेशा-हमेशा ऐशो आराम में रहेंगे, और जो बाराती हैं, हैं तो ऐसी बारात के बाराती उनमें से बाज़ वो हैं जिन्होंने सिरे से दूल्हा को माना ही नहीं और न इन पर ईमान लाये, और बाज़ वो हैं जिन्होंने बज़ाहिर माना तो लेकिन दिल से न माना और उनकी कद्रो मनज़िलत न की, उनकी शाने अकदस में गुस्ताखियां की। अपना बड़ा भाई बताया या अपना जैसा बशर कहा, इस दूल्हे के इल्मो इख़्तियार का इनकार किया, उनकी हयात का इनकार किया और उनके लिये मर कर मिट्टी में मिल गये वगैरह-वगैरह बकवास की उनके लिये एक दूसरा घर है जिसका नाम जहन्नम है वो भी उनके लिये तैयार है उसमें आग है, अज़ाब ही अज़ाब है, खौलता हुआ पानी है, डसने वाले सांप है, डंक मारने वाले बिच्छू हैं, उसमें वो हमेशा-हमेशा रहेंगे।
अब जिसको जो घर पसन्द हो वो उसी का रास्ता इखतियार करे।
हमारा काम समझाना है यारो, तुम्हारा काम है मानो न मानो॥
वस्सलामो अला-मनित्तबअल हुदा
✍️सिब्तैन रज़ा खान
🗓️तारीख : 11.04.2005
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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ये जलसे, जुलूस हम और आप हर बरस दूल्हा की अकीदतो मोहब्बत में मनाते हैं, चरागाँ करते हैं, खुशियां मनाते हैं, हालांकि इस पर शिर्क और बिदअत का फ़तवा लगाने वालों ने रोक लगाने की हर चंद कोशिशें कीं और कर रहे हैं।
तू घटाए से किसी के न घटा है न घटे।
जब बढाए तुझे अल्लाह तआला तेरा।।
ये सिलसिला ता कयामत इन्शा अल्लाह यूं ही जारी रहेगा।
रहेगा यूं ही उनका चर्चा रहेगा।
पड़े खाक हो जाएं जल जाने वाले।।
इन जल्से जुलूसों के एखतेताम पर एक और बहुत बड़ा जलसए आम होगा। इतना बड़ा इज़्लास, इतना बड़ा इजतेमाअ जो चश्मे फलक ने अब तक देखा ही नहीं न सुनने में आया न उसका तसव्वुर ही किया जा सकता है जिसमें अव्वलीनो आखेरीन अपने और पराये दोस्तो दुश्मन, काले-गोरे, हर मुल्को मिल्लत के लोग जमा होंगे, आखीर में जो इजलास में शरीक न होना चाहेंगे वो भी घसीट कर लाये जाएंगे और इस इजलास की गरज़ो गायत भी उसी दूल्हा की शानो शौकत का इज़हार है, क्या ही खूब फरमाया है हमारे जद्दे अमजद उस्तादे ज़मन ने -
फकत इतना सबब है इनइकादे बज़्मे महशहर का।
कि उनकी शाने महबूबी दिखाई जाने वाली है।।
आज जो उन्हें नहीं मान रहे हैं, वो भी मान लें जो अब तक नहीं पहचान रहे हैं, तो पहचान लें कि उस रोज का मानना काम नहीं आएगा।
आज ले उनकी पनाह, आज मदद मांग उनसे।
फिर न मानेंगे कयामत में अगर मान गया।।
ज्यादा तफ़सील में न जाते हुए मुख्तसरन अर्ज करूं कि जलसा खतम होते ही अपने बेगाने सब अपने-अपने घरों की राह लेते हैं, वहां भी यही होगा कि इस इजलासे अज़ीम के खतम होने पर दुल्हा से सच्ची मोहब्बत रखने वाले अपने दिलो जान से चाहने वाले, उनके नक्शे कदम पर चलने वाले, उनकी इत्तेबाअ व पैरवी करने वाले उनकी बारगाह में अकीदतो महब्बत के नज़राने पेश करने वाले उसके हर हुक्म की तामील करने वाले अपने उस घर में दाखिल हो जायेंगे, जो बहुत पहले से उनके लिये तैयार है, जो अबदी राहत व आराम का घर है और इतनी खूबसूरत व हसीन है कि दुनिया में उसकी मिसाल नहीं पेश की जा सकती है जिसका नाम जन्नत है। जहां की
नेअमत का जिक्र करते हुए कायनात के दुल्हा ने इरशाद फरमाया था। (तर्जुमा हदीस शरीफ) जन्नत में वह अनोखी व निराली नेअमतें है जो न किसी आंख ने देखीं, न किसी कान ने सुनीं और न उनके लुत्फ लज़्ज़त का खतरा किसी के दिल में गुज़रा, इसमें मुखतलिफ़ तबकात के बरातियों के लिये आलीशान मकानात हैं महलात हैं, जिसमें बागात हैं, दूध और शहद की नहरें हैं, खिदमत के लिये हूरो गिलमान है । गरज़ कि ज़रुरत की हर बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी चीज़ मौजूद है, जिसमें ये बाराती हमेशा-हमेशा ऐशो आराम में रहेंगे, और जो बाराती हैं, हैं तो ऐसी बारात के बाराती उनमें से बाज़ वो हैं जिन्होंने सिरे से दूल्हा को माना ही नहीं और न इन पर ईमान लाये, और बाज़ वो हैं जिन्होंने बज़ाहिर माना तो लेकिन दिल से न माना और उनकी कद्रो मनज़िलत न की, उनकी शाने अकदस में गुस्ताखियां की। अपना बड़ा भाई बताया या अपना जैसा बशर कहा, इस दूल्हे के इल्मो इख़्तियार का इनकार किया, उनकी हयात का इनकार किया और उनके लिये मर कर मिट्टी में मिल गये वगैरह-वगैरह बकवास की उनके लिये एक दूसरा घर है जिसका नाम जहन्नम है वो भी उनके लिये तैयार है उसमें आग है, अज़ाब ही अज़ाब है, खौलता हुआ पानी है, डसने वाले सांप है, डंक मारने वाले बिच्छू हैं, उसमें वो हमेशा-हमेशा रहेंगे।
अब जिसको जो घर पसन्द हो वो उसी का रास्ता इखतियार करे।
हमारा काम समझाना है यारो, तुम्हारा काम है मानो न मानो॥
वस्सलामो अला-मनित्तबअल हुदा
✍️सिब्तैन रज़ा खान
🗓️तारीख : 11.04.2005
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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