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◼️ हदीसे पाक मे आता है कि शराब से बचो कि शराब उम्मुल खबाइस यानि तमाम बुराइयों की अस्ल यानि मां है।
📕 कशफुल खिफा, जिल्द 1, सफह 459
◻️ तफसीरे अज़ीज़ी में इब्ने जरीर व इब्ने अबी हातिम के हवाले से लिखा है कि हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम के ज़माने में इंसान बहुत बद अमल हो गया तो फरिश्तों ने बारगाहे इलाही में अर्ज़ की कि मौला इंसान बहुत बदकार है जैसा कि तख्लीक़े आदम अलैहिस्सलाम से पहले भी उनका यही मानना था कि इंसान खिलाफत के क़ाबिल नहीं है, अब उसी बात की तरफ इशारह करते हुए वो चाहते थे कि इंसान को खिलाफ़त से माअज़ूल कर दिया जाए या फिर कम अज़ कम हमको वज़ीर कर दिया जाए कि उनके बिगड़े हुए काम हम संभाल लें।
रब तआला इरशाद फरमाता है कि मैंने इंसान को गुस्सा और शहवत दी है तुम्हे नहीं, अगर ये चीज़ें तुम्हे दी जाए तो तुम भी वही करोगे जो वो करते हैं, इस पर फरिश्तों ने अर्ज की कि ऐ मौला हम हरगिज़ तेरी ना फरमानी नहीं कर सकते।
मौला फरमाता है कि जो मैं जानता हूं तुम नहीं जानते अगर तुम्हे इतमिनान नहीं है तो जाओ अपनी जमात में से 2 ऐसे फरिश्ते ले आओ जो तुममे बहुत ज़्यादा परहेज़गार हैं, तब फरिश्तों ने अपनी जमात में से हारूत व मारूत को मुंतखिब किया रब ने उन दोनों को गुस्सा और शहवत दी और फरमाया कि तुमको मैं शहरे बाबुल में उतारता हूं, तुम दोनों लोगों का फैसला क़ाज़ी बन कर करना और शाम को इस्मे आज़म के ज़रिये आसमानों पर आ जाना।
वो दोनों 1 महीने तक लोगों के दरमियान फैसला करते रहे,1 महीने में उनके अदलो इन्साफ का चर्चा पूरे शहर में हो गया, और बहुत सारे मुक़दमे उनके पास आने लगे।
इक रोज़ एक खूबसूरत औरत हाज़िर हुई जिसका नाम बैदखत और लक़ब ज़ोहरा था, वो शहरे फारस की रहने वाली थी और उसने अपने शौहर के खिलाफ मुक़दमा दायर किया था, हारूत व मारूत उसे देखते ही उस पर फिदा हो गए और उससे बद फेली की ख्वाहिश ज़ाहिर की जिसे उसने ये कहकर इंकार कर दिया कि तुम्हारा और मेरा दीन अलग है और मेरा शौहर बड़ा गैरतमंद आदमी है अगर उसे खबर हो गयी तो वो मुझे क़त्ल कर देगा तो या तो तुम पहले अपना दीन छोड़कर बुतों को सज्दा करलो या फिर मेरे शौहर को क़त्ल कर दो, उन्होंने इनकार किया तो वो चली गयी, मगर उन दोनों के दिलों में उसे पाने की चाह भड़क उठी थी।
आखिरकार एक दिन ये दोनों उसके घर पहुंच गए और फिर अपनी आरज़ू ज़ाहिर की, उसने फिर वही शर्त बताई मगर इस बार वो बोली कि अगर तुम्हे इन बातों को मानने में दुश्वारी है तो मुझे इस्मे आज़म ही सिखा दो या फिर चलो शराब ही पी लो, उन दोनों ने सोचा कि बुत परस्ती शिर्क है, और इस्मे आज़म का सिखाना असरारे इलाही को ज़ाहिर करना है जो कि ज़ुल्म है, क़त्ल हुक़ूक़ुल इबाद है हम ये तीनों काम नहीं कर सकते मगर शराब
पी सकते हैं, ये सोचकर उन दोनों ने शराब पी ली और नशे की हालत में उससे ज़िना भी किया, फिर उस औरत ने उसी नशे में उनसे बुतों को सज्दा भी करा लिया अपने शौहर को क़त्ल भी करा दिया और इस्मे आज़म भी पूछ लिया, वो इस्मे आज़म के ज़रिये आसमान पर पहुंच गयी जिसे रब ने ज़ोहरा सितारे से मुत्तसिल कर दिया, इधर जब इन दोनों का नशा उतरा तो ये इस्मे आज़म भूल चुके थे और अपने किये पर नादिम हुए ।
फरिश्तों की जमात में कोहराम मच गया आखिरकार सब रोते गिड़गिड़ाते रब की बारगाह में हाज़िर हुए और उन दोनों के लिए माफी चाही, तब मौला फरमाता है कि इंसान मेरी तजल्ली से दूर रहता है मगर ये दोनों हर रोज़ हाज़िरे बारगाह होते थे जब ये शहवत का ग़ल्बा नहीं बर्दाश्त कर पाए तो अगर इंसानों से गुनाह होता है तो क्या ताज्जुब है, इस पर फरिश्तों ने इंसानो पर लअन तअन करना छोड़ दिया और दुआये मग़फिरत करने लगे।
उधर हारूत व मारूत हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िर होकर रब से माफी की सिफारिश करने लगे तब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने मौला तआला से उनकी बख्शिश चाही, तो मौला फरमाता है कि ऐ इदरीस गुनाह तो इनसे हुआ है और सज़ा तो भुगतनी ही पड़ेगी लिहाज़ा अब इन्हें इख्तियार है कि दुनिया का अज़ाब क़ुबूल करें या आखिरत का, हारूत व मारूत ने कहा कि ऐ नबी अल्लाह बेशक आखिरत का अज़ाब दायमी यानि हमेशा का है तो हमें दुनिया का अज़ाब मंज़ूर है जो कि फानी है, तब मौला ने फरिश्तों को हुक्म दिया कि इन्हें लोहे की ज़ंजीरों में जकड़कर कुंअे में उल्टा लटका दो और नीचे आग लगा दो और फरिश्ते उन्हें बारी बारी से कोड़ा मारते रहते हैं, वो इसी तरह शहरे बाबुल के किसी कुंअे में अज़ाबे इलाही में गिरफ्तार हैं ।
📕 क्या आप जानते हैं, सफह 204
📕 मुक़ाशिफातुल क़ुलूब, सफह 602
जिसने शराब पी ली तो अब उससे नशे की हालत में कुछ भी करवा लो जैसा कि आपने पढ़ ही लिया, और उनका अज़ाब भी पढ़ लिया कि जाने कब से वो अज़ाब में हैं और कब तक रहेंगे ये अल्लाह और उसका महबूब ही जाने, ये भी पता चला कि इंसान से गुनाह होना कोई अजब नहीं मगर उस पर नादिम ना होना ये अजब है, लिहाज़ा अच्छा बंदा वही है जो अपने गुनाहों पर शर्मिंदा हो और सच्ची तौबा करले ।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ नौशाद अहमद ज़ेब रज़वी (ज़ेब न्यूज़)
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◼️ हदीसे पाक मे आता है कि शराब से बचो कि शराब उम्मुल खबाइस यानि तमाम बुराइयों की अस्ल यानि मां है।
📕 कशफुल खिफा, जिल्द 1, सफह 459
◻️ तफसीरे अज़ीज़ी में इब्ने जरीर व इब्ने अबी हातिम के हवाले से लिखा है कि हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम के ज़माने में इंसान बहुत बद अमल हो गया तो फरिश्तों ने बारगाहे इलाही में अर्ज़ की कि मौला इंसान बहुत बदकार है जैसा कि तख्लीक़े आदम अलैहिस्सलाम से पहले भी उनका यही मानना था कि इंसान खिलाफत के क़ाबिल नहीं है, अब उसी बात की तरफ इशारह करते हुए वो चाहते थे कि इंसान को खिलाफ़त से माअज़ूल कर दिया जाए या फिर कम अज़ कम हमको वज़ीर कर दिया जाए कि उनके बिगड़े हुए काम हम संभाल लें।
रब तआला इरशाद फरमाता है कि मैंने इंसान को गुस्सा और शहवत दी है तुम्हे नहीं, अगर ये चीज़ें तुम्हे दी जाए तो तुम भी वही करोगे जो वो करते हैं, इस पर फरिश्तों ने अर्ज की कि ऐ मौला हम हरगिज़ तेरी ना फरमानी नहीं कर सकते।
मौला फरमाता है कि जो मैं जानता हूं तुम नहीं जानते अगर तुम्हे इतमिनान नहीं है तो जाओ अपनी जमात में से 2 ऐसे फरिश्ते ले आओ जो तुममे बहुत ज़्यादा परहेज़गार हैं, तब फरिश्तों ने अपनी जमात में से हारूत व मारूत को मुंतखिब किया रब ने उन दोनों को गुस्सा और शहवत दी और फरमाया कि तुमको मैं शहरे बाबुल में उतारता हूं, तुम दोनों लोगों का फैसला क़ाज़ी बन कर करना और शाम को इस्मे आज़म के ज़रिये आसमानों पर आ जाना।
वो दोनों 1 महीने तक लोगों के दरमियान फैसला करते रहे,1 महीने में उनके अदलो इन्साफ का चर्चा पूरे शहर में हो गया, और बहुत सारे मुक़दमे उनके पास आने लगे।
इक रोज़ एक खूबसूरत औरत हाज़िर हुई जिसका नाम बैदखत और लक़ब ज़ोहरा था, वो शहरे फारस की रहने वाली थी और उसने अपने शौहर के खिलाफ मुक़दमा दायर किया था, हारूत व मारूत उसे देखते ही उस पर फिदा हो गए और उससे बद फेली की ख्वाहिश ज़ाहिर की जिसे उसने ये कहकर इंकार कर दिया कि तुम्हारा और मेरा दीन अलग है और मेरा शौहर बड़ा गैरतमंद आदमी है अगर उसे खबर हो गयी तो वो मुझे क़त्ल कर देगा तो या तो तुम पहले अपना दीन छोड़कर बुतों को सज्दा करलो या फिर मेरे शौहर को क़त्ल कर दो, उन्होंने इनकार किया तो वो चली गयी, मगर उन दोनों के दिलों में उसे पाने की चाह भड़क उठी थी।
आखिरकार एक दिन ये दोनों उसके घर पहुंच गए और फिर अपनी आरज़ू ज़ाहिर की, उसने फिर वही शर्त बताई मगर इस बार वो बोली कि अगर तुम्हे इन बातों को मानने में दुश्वारी है तो मुझे इस्मे आज़म ही सिखा दो या फिर चलो शराब ही पी लो, उन दोनों ने सोचा कि बुत परस्ती शिर्क है, और इस्मे आज़म का सिखाना असरारे इलाही को ज़ाहिर करना है जो कि ज़ुल्म है, क़त्ल हुक़ूक़ुल इबाद है हम ये तीनों काम नहीं कर सकते मगर शराब
पी सकते हैं, ये सोचकर उन दोनों ने शराब पी ली और नशे की हालत में उससे ज़िना भी किया, फिर उस औरत ने उसी नशे में उनसे बुतों को सज्दा भी करा लिया अपने शौहर को क़त्ल भी करा दिया और इस्मे आज़म भी पूछ लिया, वो इस्मे आज़म के ज़रिये आसमान पर पहुंच गयी जिसे रब ने ज़ोहरा सितारे से मुत्तसिल कर दिया, इधर जब इन दोनों का नशा उतरा तो ये इस्मे आज़म भूल चुके थे और अपने किये पर नादिम हुए ।
फरिश्तों की जमात में कोहराम मच गया आखिरकार सब रोते गिड़गिड़ाते रब की बारगाह में हाज़िर हुए और उन दोनों के लिए माफी चाही, तब मौला फरमाता है कि इंसान मेरी तजल्ली से दूर रहता है मगर ये दोनों हर रोज़ हाज़िरे बारगाह होते थे जब ये शहवत का ग़ल्बा नहीं बर्दाश्त कर पाए तो अगर इंसानों से गुनाह होता है तो क्या ताज्जुब है, इस पर फरिश्तों ने इंसानो पर लअन तअन करना छोड़ दिया और दुआये मग़फिरत करने लगे।
उधर हारूत व मारूत हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िर होकर रब से माफी की सिफारिश करने लगे तब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने मौला तआला से उनकी बख्शिश चाही, तो मौला फरमाता है कि ऐ इदरीस गुनाह तो इनसे हुआ है और सज़ा तो भुगतनी ही पड़ेगी लिहाज़ा अब इन्हें इख्तियार है कि दुनिया का अज़ाब क़ुबूल करें या आखिरत का, हारूत व मारूत ने कहा कि ऐ नबी अल्लाह बेशक आखिरत का अज़ाब दायमी यानि हमेशा का है तो हमें दुनिया का अज़ाब मंज़ूर है जो कि फानी है, तब मौला ने फरिश्तों को हुक्म दिया कि इन्हें लोहे की ज़ंजीरों में जकड़कर कुंअे में उल्टा लटका दो और नीचे आग लगा दो और फरिश्ते उन्हें बारी बारी से कोड़ा मारते रहते हैं, वो इसी तरह शहरे बाबुल के किसी कुंअे में अज़ाबे इलाही में गिरफ्तार हैं ।
📕 क्या आप जानते हैं, सफह 204
📕 मुक़ाशिफातुल क़ुलूब, सफह 602
जिसने शराब पी ली तो अब उससे नशे की हालत में कुछ भी करवा लो जैसा कि आपने पढ़ ही लिया, और उनका अज़ाब भी पढ़ लिया कि जाने कब से वो अज़ाब में हैं और कब तक रहेंगे ये अल्लाह और उसका महबूब ही जाने, ये भी पता चला कि इंसान से गुनाह होना कोई अजब नहीं मगर उस पर नादिम ना होना ये अजब है, लिहाज़ा अच्छा बंदा वही है जो अपने गुनाहों पर शर्मिंदा हो और सच्ची तौबा करले ।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ नौशाद अहमद ज़ेब रज़वी (ज़ेब न्यूज़)
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