🌀पोस्ट- 57 | ✅ सच्ची हिकायत ✅
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〽️ एक मर्तबा एक आराबी हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) से कहा-
ऐ मुहम्मद! अगर आप अल्लाह का रसुल है तो कोई निशानी दिखाइये। हुजुर ने फरमाया:- अच्छा तो देखो! वह जो सामने दरख्त खड़ा है उसे जाकर इतना कह दो की तुम्हे अल्लाह के रसुल बुलाते हैं।
चुनांचे:-
वह आराबी उस दरख्त के पास गया और उससे कहा- तुम्हे अल्लाह का रसुल बुलाता है। वह दरख्त यह बात सुनकर अपने आगे पिछे दायें बायें पिछे गिरा और अपनी जड़े जमीन से उखाड़कर जमीन पर चलते हुवे हुजुर की खिदमत मे हाजीर हो गया और कहने लगा अस्सालामु अलैकुम या रसुलल्लाह! वह आराबी हुजुर से कहने लगा अब इसे हुक्म दिजीए की यह फिर अपनी जगह पर चला जाए।
चुनांचे:-
हुजुर ने उससे फरमाया की जाओ। वापस चले जाओ वह दरख्त यह सुनकर पिछे मुड़ गया और अपनी जगह जाकर कायम हो गया। आराबी यह मुजीजा देखकर मुस्लमान हो गया और हुजुर को सज्दा करने की इजाजत चाही। हुजुर ने फरमाया सज्दा करना जाएज नही। फिर उसने हुजुर के हाथ पैर मुबारक चुमने की इजाजत
चाही तो हुजुर ने फरमाया हां, यह बात जायज है। उसने हुजुर के हाथ और पैर मुबारक चुम लिए।
📜 हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन, सफा-441
🌹सबक ~
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हमारे हुजुर का हुक्म दरख्तो पर भी जारी है।
यह भी मालुम हुआ की बुजुर्गो के हाथ पैर चुमना जाएज है। हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने इससे माना नही फरमाया।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ मुहम्मद अरमान ग़ौस
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