🌀पोस्ट- 53 | ✅ सच्ची हिकायत ✅
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〽️मदीना मुनाव्वरा में एक मर्तबा बारिश नही हुइ थी। कहत का सा आलम था। लोग बड़े परिशान थे। एक जुम्मा के रोज हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) जबकी वअज फरमा रहे थे। एक अरबी उठा और अर्ज करने लगा या रसुलल्लाह! माल हलाक हो गया और औलाद फाका करने लगी, दुआ फरमाइये बारिश हो। हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने उसी वक्त अपने प्यारे-प्यारे हाथ उठाए ।
रावी का ब्यान है की आसमान बिलकुल साफ था अब्र (बादल) का नाम व निशान तक न था। मगर मदनी सरकार के हाथ मुबारक उठे ही थे की पहाड़ो की मानिंद अब्र छा गए और छाते ही मेंह बरसने लगा। हुजुर मिंबर पर ही तशरिफ फरमा थे की मेंह शुरु हो गया इतना बरसा की छत टपकने लगी। हुजुर के रेश अनवर से पानी के कतरे गिरते हमने देखे। फिर यह मेंह बन्द नही हुआ बल्कि हफता को भी बरसता रहा। फिर अगले दिन भी और फिर उससे अगले हफ्ता को भी हत्ता की लगातार अगले जुम्मा तक बरसता ही रहा । हुजुर दुसरे जुम्मा को वअज फरमाने उठे तो वही अरबी जिसने पहले जुम्मा मे बारिश न होने की तकलीफ अर्ज की थी उठा और अर्ज करने लगा या रसुलल्लाह! अब तो माल गर्क होने लगा और मकान गिरने लगे। अब फिर हाथ उठाइये की यह बारिश बंद भी हो।
चुनांचे हुजुर ने फिर उसी वक्त अपने प्यारे-प्यारे नुरानी हाथ उठाए और अपनी उंगली मुबारक से इशारा फरमाकर दुआ फरमाइ की ऐ अल्लाह! हमारे इर्द गिर्द बारिश हो हम पर ना हो। हुजुर का यह इशारा करना ही था की जिस जिस तरफ उंगली गई उस तरफ से बादल फटता गया और मदीना मुनाव्वरा के ऊपर सब आसमान
साफ हो गया।
📜 मिश्कात शरिफ सफा-528
🌹सबक ~
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सहाबा किराम मुश्किल के वक्त हुजुर ही की बारगाह मे फरियाद लेकर आते थे।
उनका यकीन था की हर मुश्किल यहक हल होती है। वकाई वही हल होती रही।
इसी तरह आज भी हम हुजुर के मोहताज है। बेगैर हुजुर के वसीले के हम अल्लाह से कुछ भी नही पा सकते। हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) की हुकुमत बादलो पर भी जारी है।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ मुहम्मद अरमान ग़ौस
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