🌀 पोस्ट- 36 | ✅ सच्ची हिकायत ✅
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〽️ एक मर्तबा हुजूर ﷺ ने सिद्दिके अकबर (रजी अल्लाहु अन्हु) को अपनी अंगूठी मुबारक दी और फरमाया की इस पर "ला इला ह इल्लल्लाह" लिखवा लाओ। सिद्दिके अकबर (रजी अल्लाहु अन्हु) गये और अंगुठी पर "ला इला ह इल्लल्लाह" लिखवा लाये।
जब अंगुठी हुजर की खिदमत मे पेश की तो उस पर लिखा था "ला इला ह इल्लल्लाहु मुहम्मदुर्ररसुलुल्लाह" और उसके साथ ही सिद्दिक अकबर का अपना नाम भी लिखा था।
हुजुर ﷺ ने दर्याफ्त फरमाया : अबु बक्र! हमने तो "ला इला ह इल्लल्लाह" लिखवाने को कहा था, मगर तुम हमारा नाम भी और अपना नाम भी लिखवा लाये।
अर्ज किया: हुजूर मेरा दिल न माना था की खुदा के नाम साथ आपका नाम ना हो। यह आपका नाम तो मैने ही लिखवाया, मगर मेरा नाम यह तो यहां तक आते आते ही लिखा गया है वरना मैने हरगीज नही लिखवाया।
इतने मे जिब्रइल अमीन हाजीर हुए और अर्ज किया: या रसुलल्लाह! ﷺ खुदा ने फरमाया है की सिद्दिक
इस काम पर राजी न हुए की आपका नाम हमारे नाम से जुदा करे सिद्दिक ने आपका नाम हमारे नाम के साथ लिखवाया। हमने सिद्दिक का नाम आपके नाम के साथ लिखा दिया।
📜 तफसीरे कबीर, जिल्द-1, सफा-91
🌹 सबक ~
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सिद्दिके अकबर (रजी अल्लाहु अन्हु) हुजुर ﷺ के सच्चे रफीक है। हर जगह हुजूर के साथ है। अल्लाह तआला खुद इस रिफाकत का शाहीद है।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ मुहम्मद अरमान ग़ौस
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