यूसुफ़ अलैहिस्सलाम और आईना

〽️हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम का एक दोस्त आपसे मुलाकात करने आया तो हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने उससे फ़रमाया- भई दोस्त-दोस्त के पास आता है तो उसके लिए कोई तोहफ़ा लाता है, बताओ तुम मेरे लिए क्या लाए हो?

दोस्त ने जवाब दिया- इस वक़्त दुनिया में आपसे बढ़कर कोई और हसीन व जमील चीज़ है ही नहीं जो मैं आपके लिए लाता। इसलिए मैं आपकी ख़िदमत में आप ही को लाया हूँ और यूसुफ़ के लिए तोहफ़ा भी यूसुफ़ लाया हूँ, ये कहकर एक आईना यूसुफ़ अलैहिस्स्लाम के सामने रख दिया और कहा लीजिए इसमें अपने हुस्न व जमाल का नज़ारा कीजिए, इससे बढ़कर और क्या तोहफा होगा!

( #मसनवी_शरीफ़ )


🌹सबक़ ~
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इंसान को चाहिए की वो अपना दिल मिस्ल आईना के साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ बना ले और कल जब ख़ुदा पूछे की मेरे

बेसिबाती दुनिया

〽️बनी इस्राईल के एक नौजवान आबिद के पास हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाया करते थे। ये बात उस वक़्त के बादशाह ने सुनी तो उस नौजवान आबिद को बुलाया और पूछा कि क्या बात सच है की तुम्हारे पास हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम आया करते हैं?

उसने जवाब दिया कि हाँ, बादशाह ने कहा- अब जब वो आयें तो उन्हें मेरे पास लेकर आना। अगर ना लाओगे तो मैं तुम्हें क़त्ल कर दूंगा।

चुनाँचे एक दिन हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम उस आबिद के पास तशरीफ़ लाए तो आबिद ने उनसे सारा वाक़्या अर्ज़ कर दिया। आपने फ़रमाया- चलो! उस बादशाह के पास चलते हैं।

चुनाँचे आप उस बादशाह के पास तशरीफ़ ले गए। बादशाह ने पूछा- क्या आप ही ख़िज़्र हैं? फ़रमाया-हाँ। बादशाह ने कहा तो हमें कोई बड़ी अजीब बात सुनाईये। फ़रमाया- मैंने दुनिया की बड़ी-बड़ी अजीब बातें देखी हैं मगर उनमें से एक सुनाता हूँ। लो सुनो-

मैं एक दफा एक बहुत बड़े खूबसूरत और आबाद शहर से गुज़रा मैंने उस शहर के एक बाशिन्दे से पूछा- ये शहर कब से बना है? तो उसने कहा- ये शहर बहुत पुराना शहर है। इसकी इब्तिदा का ना मुझे इल्म है और ना हमारे आबाओ अज्दाद को। ख़ुदा जाने कब से ये शहर यूं ही आबाद चला आ रहा है।

फ़िर मैं पाँस सौ साल के बाद इसी जगह से गुज़रा तो वहाँ शहर का नाम व निशान तक ना था। एक जंगल था और

तेरह सौ साल(1300) की उम्र का बादशाह

〽️हज़रत दानयाल अलैहिस्सलाम एक दिन जंगल में चले जाते थे। आपको एक गुंबद नज़र आया। आवाज़ आई की ऐ दानयाल! इधर आ। दानयाल अलैहिस्सलाम उस गुंबद के पास गए, मालूम हुआ की किसी मक़्बरे का गुंबद है। जब आप मक़्बरे के अन्दर तशरीफ़ ले गए तो देखा बड़ी उम्दा इमारत है और इमारत के बीच एक आलीशान तख़्त बिछा हुआ है। उस पर एक बड़ी लाश पड़ी है। फिर आवाज़ आई की दानयाल! तख़्त के ऊपर आओ। आप ऊपर तशरीफ़ ले गए तो एक लम्बी-चौड़ी तलवार मुर्दे के पहलू में रखी हुई नज़र आई। उस पर ये इबारत लिखी हुई नज़र आई की मैं क़ौमे आद से एक बादशाह हूँ। ख़ुदा ने तेरह(1300) सौ साल की मुझे उम्र अता फ़रमाई। बारह हज़ार मैंने शादियाँ कीं, आठ हज़ार बेटे हुए, ला-तअदाद ख़जाने मेरे पास थे। इस क़द्र नेअमतें लेकर भी मेरे नफ़्स ने ख़ुदा का शुक्र ना किया बल्की उल्टा कुफ़्र करना शुरू किया और ख़ुदाई दअवे करने लगा।

खुदा ने मेरी हिदायत के लिए एक पैग़म्बर को भेजा। हर चन्द उन्होंने मुझे समझाया, मगर मैंने कुछ ना सुना। अंजाम कार वो पैग़म्बर मुझे बद्दुआ दे कर चले गए। हक़ तआला ने मुझ पर और मेरे मुल्क पर क़हेत मुसल्लत कर दिया। जब मेरे मुल्क में कुछ पैदा ना हुआ, तब मैंने दूसरे मुल्कों में हुक्म भेजा की हर एक किस्म का ग़ल्लह और मेवा मेरे मुल्क में भेजा जाए।

बमौजिब मेरे हुक्म के हर किस्म का ग़ल्लह और मेवा मेरे मुल्क में आने लगा, जिस वक़्त वो ग़ल्लह या मेवा मेरे शहर की सरहद में दाखिल होता, फ़ौरन मिट्टी बन जाता और वो सारी मेहनत बेकार जाती और कोई दाना मुझे

सौतेली बेटी

〽️हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम के ज़माना में एक बादशाह था। जिसकी बीवी किसी क़द्र बूढ़िया थी। उस बूढ़िया की पहले ख़ाविंद से एक नौजवान लड़की थी। बुढ़िया को ये ख़ौफ़ हुआ की मैं तो बूढ़िया हो गई हूँ, ऐसा ना हो की ये बादशाह किसी ग़ैर औरत से शादी कर ले और मेरी सल्तनत जाती रहे इसलिए ये बेहतर है के अपनी जवान लड़की से उसका अक़्द कर दूं। इस ख़्याल से एक दिन शादी का इन्तिज़ाम करके हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम को बुला कर पूछा की मेरा ये इरादा है।

हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम ने फ़रमया की ये निकाह हराम है, जायज़ नहीं। ये फ़रमा कर आप वहाँ से तशरीफ़ ले आए। इस बद ख़याल दुनियादार बूढ़िया को बहुत गुस्सा आया और आपकी दुश्मन हो गई। रात दिन आपके क़त्ल करने का फ़िक्र करती थी।

एक दिन मौक़ा पाकर बादशाह को शराब पिला कर अपनी बेटी को बना कर संवार कर बादशाह के पास ख़लवत में भेज दिया। जब बादशाह अपनी सौतेली बेटी की तरफ़ रागिब हुआ तो बूढ़िया ने कहा की मैं इस काम को खूशी

सुलेमान अलैहिस्सलाम और मलक-उल-मौत

〽️हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम के दरबार आली में एक आदमी घबराया हुआ हाज़िर हुआ और अर्ज़ करने लगा- हुज़ूर हवा को हुक्म दीजिए की मुझे सरज़मीन हिन्द में पहुँचा दे।

हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- बात क्या हुई? यहाँ से क्यों जाना चाहते हो? वो कहने लगा- हुज़ूर! अभी-अभी मैंने मलक-उल-मौत को देखा है जो मुझे घूर-घूर कर देख रहा था, वो देखिये वो मुझे घूर रहा है। हुज़ूर! मेरी ख़ैर नहीं मुझे अभी हिन्द पहुँचा दीजिए।

हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने हवा को हुक्म दिया तो हवा फ़ौरन उसको हिन्द छोड़ आई। थोड़ी देर के बाद मलक-उल-मौत हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम के पास आया और अर्ज़ करने लगा- हुज़ूर! सुना आपने उस आदमी का किस्सा? ख़ुदा का मुझे हुक्म था की उस शख़्स की जान सर ज़मीन हिन्द में क़ब्ज़ करो। मैं हैरान था की उसकी जान हिन्द में क़ब्ज़ करने को फ़रमाया गया है और ये यहाँ आपके पास खड़ा है। मैं इसी हैरानी में उसे देख

माँ की ममता

〽️हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के ज़माने में दो औरतें थीं। दोनों की गोंद में दो बेटे थे। वो दोनों कहीं जा रही थीं की रास्ते में एक भेड़िया आया और एक का बच्चा उठा कर ले गया। वो औरत जिसका बच्चा भेड़िया उठा कर ले गया था। दूसरी औरत के बच्चे को छीन कर बोली के ये बच्चा मेरा है। भेड़िया तेरे बच्चे को उठा कर ले गया है। बच्चे की माँ ने कहा- बहन अल्लाह से डर, ये बच्चा तो मेरा है। भेड़िये ने तेरे बच्चे को उठाया है।

उन दोनों में जब झगड़ा बढ़ गया तो दोनों हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की अदालत में हाज़िर हुईं। हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने वो बच्चा बड़ी औरत को दिला दिया, हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को इस बात की ख़बर हुई तो आपने फ़रमाया- अब्बा जान! एक फ़ैसला मेरा भी है और वो ये है के छुरी मंगवाई जाए मैं उस बच्चे के दो टुकड़े करता हूँ और आधा बड़ी को और आधा छोटी को दे देता हूँ।

ये फ़ैसला सुनकर बड़ी तो ख़ामोश रही और छोटी बोली की हुज़ूर! आप बच्चा बड़ी को ही दे दें लेकिन खुदारा बच्चे

सुलेमान अलैहिस्सलाम का फ़ैसला

〽️हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की अदालत में दो शख़्स हाज़िर हुए, एक ने ये दावा किया कि उस दूसरे शख़्स की बकरियाँ रात को मेरे खेत में घुस गईं और उन्होंने मेरा सारा खेत खा लिया है। हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने ये फ़ैसला दिया के सब बकरियाँ खेत वाले को दे दी जाएँ, उन बकरियों की क़ीमत खेत के नुक़्सान के बराबर थी।

जब वो दोनों शख़्स वापस हुए तो हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम से रास्ते में मुलाक़ात हो गई। उन दोनों ने सुलेमान अलैहिस्सलाम को हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम का फ़ैसला सुनाया। हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- इस फ़ैसले से बेहतर एक और फ़ैसला भी है।

उस वक़्त हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की उम्र शरीफ़ ग्यारह बरस की थी। हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने जो सुलेमान अलैहिस्सलाम के वालिद थे, जब अपने साहबज़ादे की ये बात सुनी तो सुलेमान अलैहिस्सलाम को कर दरयाफ़्त फ़रमाया कि बेटा! वो कौन सा फ़ैसला है जो बेहतर है।

सुलेमान अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- वो ये है की बकरियों वाला उस खेत की काश्त करे और जब तक खेती इस

एक अज़ीमुश्शान हुकूमत

〽️हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने एक अज़ीमुश्शान हुकूमत अता फ़रमाई थी और आपके बस में हवा कर दी थी। आप हवा को जहाँ हुक्म फ़रमाते थे वो आप के तख़्त को उड़ा कर वहाँ पहुँचा देती थी। (1, #क़ुरआन करीम पारा-17, रूकू-6 ) और जिन्न व इंसान और परिन्दे सब आपके ताबो और लश्करी थे। (2, #क़ुरआन करीम पारा-19, रूकू-17) आप हैवानात की बोलियाँ भी जानते थे। (3, #क़ुरआन करीम पारा-19, रूकू-17)

हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम जब बैत-उल-मुक़द्दस की तामीर से फ़ारिग़ हुए तो आपने हरम शरीफ़ (मक्का मोअज़्ज़मा) पहुँचने का अज्म फ़रमाया।

चुनाँचे तैयारी शुरू हुई और आपने जिन्नों, इंसानों परिन्दों और दीगर जानवरों को साथ चलने का हुक्म दिया। हत्ता की एक बहुत बड़ा लश्कर तैयार हो गया। ये अज़ीम लश्कर तक़रीबन तीस मील में पूरा आया। हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने हुक्म दिया तो हवा ने तख़्त सुलेमान को मअ उस लश्कर अज़ीम के उठाया और फ़ौरन हरम शरीफ़ में पहुँचा दिया।

हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम हरम शरीफ में कुछ अर्सा ठहरे। उस अर्से में आप मक्का मोअज़्ज़मा में हर रोज़ पाँच हजार ऊँट, पाँच हज़ार गाय और बीस हजार बकरियाँ ज़िबह फ़रमाते थे और अपने लश्कर में हमारे हुज़ूर सय्यद-उल-अम्बिया सल-लल्लाहु अलैही व सल्लम की बशारत सुनाते रहे और यहीं से एक नबी अर्बी पैदा होंगे जिनके बाद फिर कोई और नबी पैदा ना होगा।

हज़रत सुलेमान अलेहिस्सलाम कुछ अर्से के बाद मक्का मोअज़्ज़मा में मनासिक अदा फ़रमाने के बाद एक सुबह को वहाँ से चल कर सनआ मुल्क यमन में पहुँचे। मक्का मोअज़्ज़मा से सनआ का एक महीने का सफ़र है और आप मक्का से सुबह को रवाना हुए और सनआ ज़वाल के वक्त पहुँच गए। आपने यहाँ भी कुछ अर्सा ठहरने का इरादा फ़रमाया। यहाँ पहुँच कर परिन्दा हुद-हुद एक रोज ऊपर उड़ा और बहुत ऊपर पहुँचा और सारी दुनिया के तूल व अर्ज़ को देखा। उसको एक सरसब्ज़ बाग़ नज़र आया, ये बाग़ मल्लिका बिलकिस का था। उसने देखा की उस बाग़

ठंडा चश्मा

〽️हज़रत अय्युब अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने हर तरह की नेअमतें अता फ़रमाई थीं। हुस्ने सूरत भी, कसरत औलाद भी और कसरत अमवाल भी। अल्लाह तआला ने आपको इब्तला में डाला और आपके फ़रजंद व औलाद मकान के गिरने से दबकर मर गए, तमाम जानवर जिनमें हज़ारहा ऊँट और हज़ारहा बकरियाँ थीं सब मर गए, तमाम खेतियाँ और बाग़ात बर्बाद हो गए, कुछ बाक़ी ना रहा और जब आपको उन चीज़ों के हलाक होने और ज़ाए हो जाने की खबर मिलती तो आप हम्द इलाही बजा लाते और फ़रमाते थे मेरा क्या है? जिसका था उसने ले लिया। जब तक मुझे दिया, मेरे पास रहा उसका शुक्र अदा नहीं हो सकता। मैं उसकी मर्जी पर राज़ी हूँ।

फिर आप बीमार हो गए बदन मुबारक पर आबले पड़ गए। जिस्म शरीफ़ सब ज़ख्मों से भर गया। सब लोगों ने छोड़ दिया, बजुज़ आपकी बीबी साहिबा के की वो आपकी ख़िदमत करती रही और ये हालत कितनी मुद्दत तक रही।

आख़िर एक रोज़ हज़रत अय्युब अलैहिस्सलाम ने अल्लाह से दुआ की तो अल्लाह तआला ने फ़रमाया- ऐ अय्युब! तू अपना पाँऊ ज़मीन पर मार, तेरे पैर मारने से एक ठंडा चश्मा निकल आएगा। उसका पानी पीना और उससे नहाना।

चुनाँचे हज़रत अय्युब अलैहिस्स्लाम ने अपना पाँऊ ज़मीन पर मारा तो एक ठंडा चश्मा निकल आया। जिससे आप

पत्थर की ऊँटनी

〽️क़ौम आद की हलाक़त के बाद क़ौम समूद पैदा हुई। ये लोग हिजाज़ व शाम के दरमियान इक़्ताअ में आबाद थे। उनकी उम्र बहुत बड़ी होतीं। पत्थर के मज़बूत मकान बनाते, वो टूट-फूट जाते मगर मकीन बस्तूर बाक़ी रहते।

जब उस क़ौम ने भी अल्लाह की नाफ़रमानी शुरू की तो अल्लाह ने उनकी हिदायत के लिए हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को मबऊस फ़रमाया। क़ौम ने इंकार करना शुरू किया। बअज़ ग़रीब-ग़रीब लोग आप पर ईमान ले आए। उन लोगों का साल के बाद एक ऐसा दिन आता था, जिसमें ये मेले के तौर पर ईद मनाया करते थे। उसमें दूर-दूर से आकर लोग शरीक होते।

ये मेले का दिन आया तो लोगों ने हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को भी इस मेले में बुलाया। हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम एक बहुत बड़े मजमें में तबलीगे हक़ की ख़ातिर तशरीफ़ ले गए। क़ौमे समूद के बड़े-बड़े लोगों ने वहाँ हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम से ये कहा कि अगर आपका ख़ुदा सच्चा है और आप उसके रसूल हैं तो हमें कोई मौजज़ा दिखलाईये। आपने फ़रमाया- बोलो! क्या देखना चाहते हो?

उनका सबसे बड़ा सरदार बोला- वो सामने जो पहाड़ी नज़र आ रही है, अपने रब से कहिये के उसमें से वो एक

तूफ़ान बाद

〽️क़ौमे आद एक बड़ी ज़बरदस्त कौन थी जो इलाक़ा यमन के एक रेगिस्तान अहक़ाफ़ में रहती थी। उन लोगों ने ज़मीन को फ़िस्क़ो फुजूर से भर दिया था और अपने ज़ोर व क़ुव्वत के ज़ोम में दुनिया की दूसरी क़ौमों को अपनी जफ़ा कारियों से पामाल कर डाला था। ये लोग बुत परस्त थे अल्लाह तआला ने उनकी हिदायत के लिए हज़रत हूद अलैहिस्सलाम को मबऊस फ़रमाया। आपने उनको दर्स तौहीद दिया और ज़ोर व सितम से रोका तो वो लोग आपके मुनकिर और मुख़ालिफ़ हो गए और कहने लगे आज हम से ज़्यादा ज़ोर आवर कौन है?

कुछ लोग हज़रत हूद अलैहिस्सलाम पर ईमान लाए मगर वो बहुत थोड़े थे। क़ौम ने जब हद से ज़्यादा बग़ावत व शिक़ावत का मुज़ाहेरह किया और अल्लाह के पैग़म्बर की मुख़ालफ़त की तो एक सियाह रंग का अब्र आया जो क़ौमे आद पर छा गया। वो लोग देखकर खूश हुए के पानी की ज़रूरत है उससे पानी खूब बरसेगा, मगर उसमें से एक हवा चली वो इस शिद्दत से चली के ऊँटों और आदमियों को उड़ा-उड़ा कर कहीं से कहीं ले जाती थी। ये देखकर वो लोग घरों में दाखिल हुए और दरवाज़े बन्द कर लिए मगर हवा की तेजी से ना बच सके। उसने दरवाज़े

जानवरों की बोलियाँ

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास एक शख़्स हाज़िर हुआ और कहने लगा हुज़ूर! मुझे जानवरों की बोलियाँ सिखा दीजिए, मुझे इस बात का बड़ा शौक़ है। आपने फ़रमाया के तुम्हारा ये शौक़ अच्छा नहीं तुम इस बात को रहने दो। उसने कहा- आपका इसमें क्या नुक़्सान है, हुज़ूर मेरा एक शौक़ है उसे पूरा कर ही दीजिए।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला से अर्ज़ की कि मौला ये बन्दा मुझ से इस बात का इसरार कर रहा है, इर्शाद फ़रमा की मैं क्या करूँ? हुक्म इलाही हुआ कि जब ये शख़्स बाज़ नहीं आता तो तुम उसे जानवरों की बोलियाँ सिखा दो।

चुनाँचे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे जानवरों की बोलियाँ सिखा दी। उस शख़्स ने एक मुर्ग़ और एक कुत्ता पाल रखा था। एक दिन खाना खाने के बाद उसकी खादिमा ने दसतरख़्वान जो झाड़ा तो रोटी का एक टुकड़ा गिरा। उसका कुत्ता और मुर्ग़ दोनों उसकी तरफ लपके और वो रोटी का टुकड़ा उस मुर्ग ने उठा लिया। कुत्ते ने उस मुर्ग़ से कहा- अरे ज़ालिम मैं भुखा था, ये टुकड़ा मुझे खा लेने देता। तेरी खूराक तो दाना दुनका है मगर तूने ये टुकड़ा भी ना छोड़ा। मुर्ग़ बोला- घबराओ नहीं कल हमारे मालिक का ये बैल मर जाएगा, तुम कल जितना चाहोगे उसका गोश्त खा लेना। उस शख़्स ने उनकी ये गुफ़्तगू सुन कर बैल को फ़ौरन बेच डाला वो बैल दूसरे दिन मर तो गया लेकिन नुक़्सान खरीदार का हुआ और ये शख़्स नुक़्सान से बच गया।

दूसरे दिन कुत्ते ने मुर्ग़ से कहा बड़े झूटे हो तुम ख़्वाह-म-ख्वाह मुझे आज की उम्मीद में रखा बताओ कहाँ है वो बैल

हज़रत मूसा व हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने एक मर्तबा बनी इस्राईल में बड़ा फ़सीह व बलीग वाज़ फ़रमाया और ये भी फ़रमाया कि इस वक़्त मैं बहुत बड़ा आलिम हूँ। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का ये फ़रमाना ख़ुदा को ना भाया और हज़रत मूसा से फ़रमाया- ऐ मूसा! तुम से ज़्यादा आलिम मेरा बन्दा ख़िज़्र है। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने हज़रत ख़िज़्र से मुलाक़ात का शौक़ ज़ाहिर किया और ख़ुदा से इजाज़त लेकर हज़रत ख़िज़्र को मिलने के लिए रवाना हो गए।

ख़ुदा ने मदद फ़रमाई और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ख़िज़्र अलैहिस्सलाम को पा लिया और उनसे कहा कि मैं आपके साथ रहना चाहता हूँ ताकी आपके इल्म से मैं भी कुछ मुसतफ़ीद हूँ। हज़रत ख़िज़्र ने जवाब दिया कि आप मेरे साथ रहकर कई ऐसी बातें देखेंगे की आप उन पर सब्र ना कर सकेंगे। हज़रत मूसा ने फ़रमाया- नहीं, मैं सब्र करूंगा आप मुझे अपने साथ रहने दीजिए। ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया तो फिर मैं चाहे कुछ करूं आप मेरी किसी बात में दखल ना दें। फ़रमाया- मंजूर है और आप साथ रहने लगे।

एक रोज़ दोनों चले और कश्ती पर सवार हुए, कश्ती वाले ने हज़रत ख़िज़्र को पहचान कर मुफ़्त बैठा लिया मगर हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने उसकी कश्ती को एक जानिब से तोड़ दिया और ऐबदार कर दिया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ये बात देखकर बोल उठे के जनाब ये आपने क्या किया? की एक ग़रीब शख़्स की जिसने बैठाया भी हमें मुफ़्त है, आपने कश्ती तोड़ दी।

हज़रत ख़िज़्र बोले- मूसा! मैं ना कहता था कि आप से सब्र ना हो सकेगा और मेरी बातों में आप दखल दिए बग़ैर ना रह सकेंगे। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया ये मुझ से भूल हो गई है, आईंदा मोहतात रहूंगा। फिर चले तो रस्ते में एक लड़का मिला। हज़रत ख़िज़्र ने उस लड़के को क़त्ल कर डाला हज़रत मूसा फिर बोल उठे कि ऐ ख़िज़्र!

क़ातिल का सुराग़

〽️बनी इस्राईल में एक मालदार शख़्स था। उसके चचा ज़ाद भाई ने बत्मऐ वारिस उसको क़त्ल करके शहर से बाहर फेंक दिया और सुबह को उसके खून का मुद्दई बन कर वावेला करने लगा।

लोगों ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया कि आप दुआ फ़रमाएँ के अल्लाह तआला असल बात को ज़ाहिर फ़रमाए। उस पर ख़ुदा का हुक्म ये हुआ कि एक गाय ज़िबह करो और उस गाय का एक टुकड़ा उस मक़्तूल पर मारो तो मक़्तूल ज़िन्दा होकर खुद ही बता देगा के उसका क़ातिल कौन है?

लोगों ने ये बात सुन कर हैरान होकर पूछा कि क्या मज़ाक़ तो नहीं? हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- मआज़ अल्लाह! क्या मैं कोई ऐसी फ़िज़ूल बात करूंगा। मैं बिल्कुल सही कह रहा हूँ। लोगों ने पूछा तो फिर फ़रमाईये गाय कैसी हो? हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- ख़ुदा फ़रमाता है कि ना बहुत बूढ़ी और न बिल्कुल नौ उम्र बल्कि उन दोनों के बीच में हो। लोगों ने कहा- ख़ुदा से ये भी पूछ दीजिए कि उसका रंग क्या हो? फ़रमाया- ख़ुदा फ़रमाता है कि ऐसी पीली गाय हो जिसकी रंगत डबडबाती और देखने वालों को खूश कर देने वाली हो। लोगों ने फिर कहा की गाए की हर हैसियत के मुतअल्लिक ज़रा तफ़सील से पूछ दीजिए, ऐसा ना हो के हम से कोई गलती हो जाए। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- खुदा फ़रमाता है कि ऐसी गाय हो जिस से कोई ख़िदमत ना ली गई हो ना हल जोती गई हो ना उससे खेती को पानी दिया गया हो और बेऐब हो जिसमें कोई दाग़ ना हो।

अब वो लोग इस किस्म की गाय की तलाश करने लगे मगर ऐसी गाय का मिलना मुश्किल था। हाँ एक गाय के मुतअल्लिक उन्हें पता चला के वो गाए उन सिफ़ात से मोसूफ है।

वो गाय एक यतीम बच्चे की गाय थी और उस का किस्सा ये था की बनी इस्राईल में एक सालेह आदमी था। जिसका

सामरी सुनार

〽️बनी इस्राईल में सामरी नाम का एक सुनार था। ये क़बीला सामरा की तरफ़ मनसूब था और ये क़बीला गाय की शक्ल के बुत का पूजारी था। सामरी जब बनी इस्राईल की क़ौम में आया तो उनके साथ बज़ाहिर ये भी मुसलमान हो गया, मगर दिल में “गाए की पूजा" की मोहब्बत रखता था।

चुनाँचे जब बनी इस्राईल दरिया से पार हुए और बनी इस्राईल ने एक बुत परस्त क़ौम को देखकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से अपने लिए भी एक बुत की तरह का ख़ुदा बनाने की दरख़्वास्त की और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम उस बात पर नाराज़ हुए तो सामरी मौके की तलाश में रहने लगा।

चुनाँचे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम तौरात लाने के लिए कोहे तूर पर तशरीफ़ ले गए तो मौक़ा पाकर सामरी ने बहुत सा ज़ेवर पिघला कर सोना जमा किया और उससे एक गाए का बुत तैयार किया और फिर उसने कुछ खाक उस गाए के बुत में डाली तो वो गाए के बछड़े की तरह बोलने लगा और उसमें जान पैदा हो गई। सामरी ने बनी इस्राईल में उस बछड़े की परसतिश शुरू करा दी और बनी इस्राईल उस बछड़े के पुजारी बन गए।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम जब कोहे तूर से वापस तशरीफ़ लाए। तो क़ौम का ये हाल देख कर बड़े गुस्से में आए और सामरी से दरयाफ़्त फ़रमाया कि ऐ सामरी! ये तूने क्या किया? सामरी ने बताया कि मैंने दरिया से पार होते वक़्त जिब्राईल को घोड़े पर सवार देखा था और मैंने देखा के जिब्राईल के घोड़े के कदम जिस जगह पर पड़ते हैं वहाँ सब्जा उग आता है। मैंने उस घोड़े के क़दम की जगह से कुछ खाक उठा ली और वो खाक मैंने बछड़े के बुत में डाल दी तो ये ज़िन्दा हो गया है और मुझे यही बात अच्छी लगी है। मैं जो कुछ किया है,अच्छा किया है।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमया- अच्छा तो जा, दूर हो जा। अब इस दुनिया में तेरी सज़ा ये है कि तू हर एक

बनी इस्राईल की गुमराही

〽️बनी इस्राईल ने हज़रत मूसा अलैहिस्लाम की मईयत में फ़िरऔन से निजात पा ली और दरिया को उबूर कर के जब पार हो गए तो उनका गुज़र एक बुत परस्त क़ौम पर हुआ, जो बुतों के आगे आसन मारे बैठे थे और उन बुतों को पूज रहे थे, ये बुत गाय की शक्ल के थे।

बनी इस्राईल हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से कहने लगे कि ऐ मूसा! जिस तरह उन लोगों लिए इतने ख़ुदा हैं, इसी तरह हमें भी आप एक ख़ुदा बना दें।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया जाहिलों! ये क्या बकने लगे हो? ये बुत परस्त तो बर्बादी व हलाकत के हाल में हैं और जो कुछ कर रहे हैं, बिल्कुल बातिल है। क्या मैं एक अल्लाह के सिवा कोई दूसरा ख़ुदा तुम्हारे लिए तलाश

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और एक बूढ़िया

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम दरिया पार करने के लिए जब किनारे दरिया तक पहुँचे तो सवारी के जानवरों के मुंह अल्लाह ने फैर दिए के खुदबखुद वापस पलट आए। मूसा अलैहिस्सलाम ने अर्ज की इलाही ये क्या हाल है?

इर्शाद हुआ तुम क़ब्र यूसुफ़ के पास हो, उनका जिस्म मुबारक अपने साथ ले लो।

मूसा अलैहिस्सलाम को क़ब्र का पता मालूम ना था। फ़रमाया- क्या तुम में कोई जानता है? शायद बनी इस्राईल की बूढ़िया को मालूम हो। उसके पास आदमी भेजा की तुझे यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की क़ब्र मालूम है?

उसने कहा- हाँ मालूम है। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया। तू मुझे बता दे। वो बोली ख़ुदा की क़सम मैं ना बताऊंगी। जब तक की जो कुछ मैं आप से माँगू, आप मुझे अता ना फरमाएँ।

मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- तेरी अर्ज़ क़बूल है, माँग क्या माँगती है? वो बूढ़िया बोली तो हुज़ूर से मैं ये माँगती हूँ के जन्नत में मैं आपके साथ हूँ, उस दर्जे में जिसमें आप होंगे।

मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- जन्नत माँग ले यानी तुझे यही काफी है, इतना बड़ा सवाल ना कर। बूढ़िया बोली-

नमक हराम ग़ुलाम

〽️एक मर्तबा जिब्राईल अलैहिस्सलाम फ़िरऔन के पास एक इसतफ़्तआ लाए जिसका मज़मून ये था कि बादशाह का क्या हुक्म है ऐसे गुलाम के हक़ में जिसने एक शख़्स के माल व नेअमत में परवरिश पाई, फिर उसकी नाशुक्री की और उसके हक़ में मुनकिर हो गया और अपने आप मौला होने का मुद्दई बन गया?

इस पर फ़िरऔन ने ये जवाब लिखा कि जो नमक हराम ग़ुलाम अपने आक़ा की नेअमतों का इंकार करे और उसके मुक़ाबिल आए, उसकी सज़ा ये है के उसको दरिया में डुबो दिया गया।

चुनाँचे फ़िरऔन जब खुद दरिया में डूबने लगा तो हज़रत जिब्राईल ने उसका वही फ़तवा उसके सामने कर दिया और उसको उसने पहचान लिया।

#(खज़ायन-उल-इर्फ़ान, सफ़ा-311)


🌹सबक़ ~
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इंसान अगर अपने ग़ुलाम की नाफ़रमानी पर गुस्से में आ जाता है और उसे सज़ा देता है तो फिर वो खुद भी अगर मालिके हक़ीक़ी का नाफ़रमान होगा तो सज़ा भुगतने के लिए तैयार रहे।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 95-96, हिकायत नंबर- 82
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फ़िरऔन की हलाकत

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फ़िरऔन और फ़िरऔनियों के ईमान न लाने से मायूस हो गए तो आपने उनकी हलाकत की दुआ की और कहा "ऐ रब हमारे! उनके माल बर्बाद कर दे और उनके दिल सख़्त कर दे के ईमान ना लायें। जब तक दर्दनाक अज़ाब ना देख लें।"

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की ये दुआ क़बूल हुई और ख़ुदा ने उन्हें हुक्म दिया के वो बनी इस्राईल को लेकर रातों-रात शहर से निकल जाएँ।

चुनाँचे मूसा अलैहिस्सलाम ने अपने क़ौम को निकल चलने का हुक्म सुनाया और बनी इस्राईल की औरतें फ़िरऔनी औरतों के पास गईं और उनसे कहने लगीं की हमें एक मेले में शरीक होना है, वहाँ पहन कर जाने के लिए हमें मुसतआर तौर पर अपने जेवरात दे दो।

चुनाँचे फ़िरऔनी औरतों ने अपने-अपने जेवरात उन बनी इस्राईल की औरतों को दे दिए और फिर सब बनी इस्राईल औरतों और बच्चों समेत हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के साथ रातों-रात निकल गए। उन सब मर्दों, औरतों, छोटों, बड़ों की तअदाद छः लाख थी।

फ़िरऔन को जब उस बात की ख़बर पहुँची तो वो भी रातों-रात ही पीछा करने के लिए तैयार हो गया और अपनी सारी क़ौम को लेकर बनी इस्राईल के पीछे निकल पड़ा। फ़िरऔनियों की तअदाद बनी इस्राईल की तअदाद से दोगूनी थी। सुबह होते ही फ़िरऔन के लश्कर ने बनी इस्राईल का पा लिया।

बनी इस्राईल ने देखा की पीछे फ़िरऔन मअ लश्कर के आ रहा है और आगे दरिया भी आ गया है तो उन्होंने मूसा

खून ही खून

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बद्-दुआ से फ़िरऔनियों पर जूओं और मेण्डकों का अज़ाब नाज़िल हुआ और फिर आपकी दुआ से वो अज़ाब दफ़ऐ हो गया, मगर फ़िरऔनी फिर भी ईमान ना लाए और कुफ़्र पर क़ायम रहे। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फिर बद्-दुआ फ़रमाई तो तमाम कुओं का पानी, नहरों का और चश्मों का पानी, दरयाए नील का पानी, गर्ज़ हर पानी उनके लिए ताज़ा खून बन गया और वो इस नई मुसीबत से बहुत ही परेशान हुए। जो पानी भी उठाते, उनके लिए खून बन जाता और क़ुद्रते ख़ुदा का करिशमा देखिये की बनी इस्राईल के लिए पानी, पानी ही था। मगर फ़िरऔनियों के लिए हर पानी खून बन गया था।

आखिर तंग आकर फ़िरऔनियों ने बनी इस्राईल के साथ मिल कर एक ही बर्तन से पानी लेने का इरादा किया तो जब बनी इस्राईल निकालते तो पानी निकलता और फ़िरऔनी निकालते तो उसी बर्तन से खून निकलता। यहाँ तक की फ़िरऔनी औरतें प्यास से तंग आकर बनी इस्राईल की औरतों के पास आईं और उनसे पानी माँगा तो वो पानी उनके बर्तन में आते ही खून हो गया तो फ़िरऔनी औरत कहने लगी की पानी अपने मुंह में लेकर मेरे मुंह में कुल्ली

जुएँ और मेण्ढक

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बद्-दुआ से फ़िरऔनियों पर टिड्डी दल का अज़ाब आ गया और वो फ़िरऔनियों की सब खेतियाँ, दरख़्त, फल और उनके घरों के दरवाज़े और छत तक खा गईं। फ़िरऔनियों ने आजिज़ आकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से ये अज़ाब टल जाने की इलतिजा की और हज़रत मूसा पर ईमान लाने का वादा किया। हज़रत मूसा ने दुआ की और आपकी दुआ से ये अज़ाब टल गया, मगर फ़िरऔनी अपने अहेद पर क़ायम ना रहे और ईमान ना लाए। उस पर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फिर बद्-दुआ फ़रमाई और फ़िरऔनियों पर जुओं का अज़ाब नाज़िल हो गया। ये जूएँ फ़िरऔनियों के कपड़ों में घुस कर उनके जिस्मों को काटतीं और उनके खाने में भर जाती थीं और घुन की शक्ल में उनके गेहूं की बोरियों में फैल कर उनके गेहूं को तबाह करने लगीं। अगर कोई दस बोरी गंदम की चकी पर ले जाता तो तीन सेर वापस लाता और फ़िरऔनियों के जिस्मों पर उस कसरत से चलने लगीं के उनके बाल, भवें, पलकें चाट के जिस्म पर चेचक की तरह दाग कर दिए और उन्हें सोना दुशवार कर दिया।

ये मुसीबत देख कर उन्होंने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से ये बला टल जाने की इलतिजा की और ईमान लाने का वादा किया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने दुआ की और ये भी बला टल गई। मगर वो काफ़िर अपने अहेद पर

टिड्डी दल

〽️फ़िरऔन की क़ौम ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को सताया तो मूसा अलैहिस्सलाम की बद्-दुआ से उन पर पानी का अज़ाब आ गया। जिस में वो बुरी तरह घिर गए और फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ही से इलतिजा करने लगे की इस अज़ाब के टल जाने की दुआ कीजिए। हम आप पर ईमान ले आएंगे।

हज़रत मूसा अलेहिस्सलाम ने दुआ फ़रमाई तो पानी का अज़ाब टल गया और वही पानी रहमत की शक़्ल में तब्दील होकर ज़मीन की सरसब्ज़ी व शादाबी का मौजिब बन गया, खेतियाँ खूब हुईं दरख़्त खूब फले इस तरह की सरसब्ज़ी पहले कभी ना देखी थी फ़िरऔनी कहने लगे कि पानी तो नओमत था, हमें मूसा पर ईमान लाने की क्या हाजत है।

चुनाँचे वो मग़रूर अपने अहेद से फिर गए तो मूसा अलैहिस्सलाम ने फिर उनके लिए बद्-दुआ की और एक महीना आफ़ियत से गुज़र जाने के बाद अल्लाह ने फिर उन पर टिड्डियाँ भेज दीं जो खेतियाँ और दरख़्तों के फल हत्ता की फ़िरऔनियों के दरवाज़े और छतें भी खा गईं और क़ुद्रते हक़ का करिश्मा देखिये कि टिड्डियाँ फ़िरऔनियों के घरों में घुस आईं मगर बनी इस्राईल के घरों में मतलक़ ना गईं।

तंग आकर उन मग़रूरों ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से फिर इस अज़ाब के भी टल जाने की इलतिजा की और

पानी का अज़ाब

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के असा मुबारक का अज़्दहा बन जाना देख कर फ़िरऔन के खुश नसीब जादूगर हजरत मूसा अलैहिस्सलाम पर ईमान ले आए, लेकिन फ़िरऔन और उसकी सरकश क़ौम अपने कुफ़्र से बाज़ ना आई।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ये सरकशी देख कर उनके हक़ में बद दुआ फरमा दी और अर्ज़ किया कि "इलाही! फ़िरऔन बहुत सरकश हो गया है और उसकी क़ौम भी अहेद शिकन और मग़रूर हो गई। उन्हें ऐसे अज़ाब में गिरफ़्तार कर जो उन के लिए सजा हो और मेरी क़ौम और बाद वालों के लिए इब्रत।"

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की ये दुआ क़बूल हो गयी और अल्लाह ने फ़िरऔनियों पर एक तूफ़ान भेजा, अब्र आया, अंधेरा छा गया और कसरत से बारिश होने लगी। फ़िरऔनियों के घर में पानी उनकी गर्दनों तक आ गया। उनमें जो बैठा डूब गया। ना हिल सकते थे ना कुछ काम कर सकते थे। सनीचर से सनीचर तक सात रोज़ तक ऐसी मुसीबत में मुबतला रहे और क़ुद्रत खुदावंदी का करिश्मा देखिये कि बावजूद ये के बनी इस्राईल के घर उन

जादूगरों की शिकस्त

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के असा का साँप बन जाना फ़िरऔन के लिए बड़ी मुश्किल का बाइस हुआ और वो बड़ा घबरा गया।

फ़िरऔन के दरबारी फ़िरऔन से कहने लगे के मूसा कहीं से जादू सीख आया है। अब तुम भी अपनी सारी ममलिकत से जादूगरों को जमा करो और उनको मूसा के मुक़ाबले में लाओ।

चुनाँचे फ़िरऔन ने अपने आदमी सारी ममलिकत में भेज दिए और वो हर मुक़ाम से जादूगरों को जमा करके लिए आए।

जब हज़ारों की तादाद में जादूगर जमा हो गए तो फ़िरऔन ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को उन जादूगरों से मुक़ाबला करने का चैलेंज दे दिया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने वो चैलेंज क़बूल कर लिया। फ़िरऔन ने पूछा- दिन कौन सा होगा? आपने फ़रमाया- तुम्हारे मेले का दिन मुक़र्रर करता हूँ। ये फ़िरऔनियों का एक ऐसा दिन था, जिस दिन वो ज़ीनतें कर-कर के दूर-दूर से जमा होते थे। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ये दिन इस लिए मुक़र्रर फरमाया कि ये रोज़ उनकी ग़ायत शौकत का दिन था। उस दिन को मुक़र्रर करना सब लोगों पर हक़ वाज़ेह कर देने के लिए था।

चुनाँचे जब वो दिन आया तो हज़ारों जादूगर मुक़ामे मुक़र्रर पर पहुँच गए और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम भी तशरीफ़ ले आए। हज़ारहा के इस इजतमे में उन जादूगरों ने अपनी अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ डाल दीं। जब डालीं तो वो सब की सब साँप बन गईं और दौड़ने लगीं। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने देखा के ज़मीन साँपों से भर

अज़्दहा का हमला

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम शरफ नबुव्वत से मुर्शरफ़ होकर जब फ़िरऔन के पास पहुँचे तो उससे फ़रमाया की ऐ फ़िरऔन! मैं अल्लाह का रसूल हूँ और हक़ व सदाक़त का अलम्बरदार हूँ। दअवऐ खुदाई को छोड़ और एक अल्लाह का परस्तार बन।

फ़िरऔन ने कहा अगर तुम अल्लाह के रसूल हो तो कोई निशानी दिखाओ।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया तो लो देखो। आपने असा मुबारक ज़मीन पर डाल दिया। जब आपने वो असा ज़मीन पर डाला तो वो एक बड़ा अज़्दहा बन गया। ज़र्द रंग मुंह खोले हुए ज़मीन से एक मील ऊँचा अपनी दुम पर खड़ा हो गया और एक जबड़ा उसने ज़मीन पर रखा और कस्र शाही की दीवार पर फिर उसने फ़िरऔन की तरफ़ रूख़ किया तो ऐसी भाग पड़ी के हज़ारों आदमी कुचल कर मर गए फ़िरऔन घर में जाकर चीखने लगा और कहने लगा- ऐ मूसा! तुम्हें उसकी कसम जिसने तुझे रसूल बनाया, उसको पकड़ लो।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसको उठा लिया तो वो मिस्ल साबिक़ असा था और फ़िरऔन की जान में जान आई।

#(क़ुरआन करीम, पारा-9, रूकू-3; ख़ज़ायन-उल-इरफ़ान, सफ़ा-236)


🌹सबक़ ~
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पैग़म्बर बड़ी शान व शौकत और अज़ीम ताकत का मालिक होता है और बड़े से बड़ा बादशाह भी उसका मुक़ाबला नहीं कर सकता।


📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 89, हिकायत नंबर- 75
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ख़ौफ़नाक साँप

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के हाथ में एक असा था। ऐ मूसा! ज़रा इस असा को ज़मीन पर तो डालो। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे ज़मीन पर डाला तो वो एक खौफनाक साँप बनकर लहराने लगा।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ये मंज़र देखकर पीठ मोड़ ली और पीछे मुड़कर ना देखा।

ख़ुदा ने फ़रमाया- ऐ मूसा! डरो नहीं। इसे पकड़ लो। ये फिर वही असा बन जाएगा।

चुनाँचे आपने उस साँप को पकड़ा तो वो फिर असा बन गया। अल्लाह तआला ने ये भी एक मओजज़ा अता फरमा कर मूसा अलैहिस्सलाम से फ़रमाया की अब फिरऔन की तरफ़ जाओ और उसे डराओ और उसको समझाओ की वो कुफ़्र व तुगयानी को छोड़ दे। और अगर वो मओजज़ा तलब करे तो ये असा डाल कर उसे दिखाओ

#(क़ुरआन करीम, पारा-16, रूकू-10, पारा-20, रूकू-7)


🌹सबक़ ~
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अंबिया अलैहिमुस्सलाम को अल्लाह तआला ने बड़े-बड़े मओजज़ात अता फ़रमाए हैं और वो ऐसे-ऐसे काम कर

दरख़्त से आवाज़

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम के पास दस बरस तक रहे और फिर हजरत शुऐब अलैहिस्सलाम ने अपनी साहबज़ादी का निकाह हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के साथ कर दिया।

इतने अर्से के बाद आप हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम से इजाज़त लेकर अपनी वालिदा से मिलने के लिए मिस्र की तरफ रवाना हुए। आपकी बीवी भी साथ थी। रास्ते में जब की आप रात के वक्त एक जंगल में पहुँचे तो रास्ता गुम हो गया। अंधेरी रात और सर्दी का मौसम था। उस वक़्त आपने जंगल में दूर एक चमकती हुई आग देखी और बीवी से फ़रमाया तुम यहाँ ठहरो मैंने वो दूर आग देखी है मैं वहाँ जाता हूँ, शायद वहाँ से कुछ खबर मिले और तुम्हारे तांपने के लिए कुछ आग भी ला सकूँ।

चुनाँचे आप अपनी बीवी को वहीं बैठा कर उस आग की तरफ़ चले और जब उसके पास पहुंचे तो वहाँ एक सरसब्ज़ शादाब दरख्त देखा जो ऊपर से नीचे तक निहायत रोशन था और जितना उसके क़रीब जाते हैं, वो दूर हो जाता है और ठहर जाते हैं तो वो क़रीब हो जाता है।

आप उस नूरानी दरख्त के अजीब हाल को देख रहे थे की उस दरख़्त से आवाज़ आई ऐ मूसा! “मैं सारे जहानों

मदयन का कुँआ

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने बड़े होकर जब हक़ का बयान और फ़िरऔन और फ़िरऔनियों की गुमराही का बयान शुरू किया तो बनी इस्राईल के लोग आपकी बात सुनते और आपका इत्तिबा करते। आप फ़िरऔनियों के दीन की मुख़ालफ़त फ़रमाते रफ़्ता-रफ़्ता इस बात का चर्चा हुआ और फ़िरऔनी जुस्तजू में हुए। फिर फ़िरऔन के बावर्ची का मूसा अलैहिस्सलाम के मुक्के से मारा जाना भी जब उन लोगों को मालूम हुआ तो फ़िरऔन ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के क़त्ल का हुक्म दिया और लोग हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की तलाश में निकले।

फ़िरऔनियों में से एक मर्दे नेक मूसा अलैहिस्सलाम का खैरख़्वाह भी था, वो दौड़ा हुआ आया और मूसा अलैहिस्सलाम को ख़बर दी और कहा- आप यहाँ से कहीं और तशरीफ़ ले जाईये।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम उसी हालत में निकल पड़े और मदयन की तरफ़ रूख किया। मदयन वो मुकाम है जहाँ हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम तशरीफ़ रखते थे, ये शहर फ़िरऔन के हदूद सलतनत से बाहर था। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसका रास्ता भी ना देखा था, ना कोई सवारी साथ थी ना कोई हमराही।

चुनाँचे अल्लाह ने एक फ़रिश्ता भेजा जो आपको मदयन तक ले गया। हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम उसी शहर में रहते थे। आपकी लड़कियाँ थीं और बकरियाँ आपका जरिया मआश था।

मदयन में एक कुँआ था, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पहले उसी कुएँ पर पहुँचे और आपने देखा की बहुत से लोग उस कुएँ से पानी खींचते हैं और अपने जानवरों को पिला लेते हैं और हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम की दोनों लड़कियाँ भी अपनी बकरियों को अलग रोक कर वहीं खड़ी हैं।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उन लड़कियों से पूछा के तुम अपनी बकरियों को पानी क्यों नहीं पिलातीं? उन्होंने

मूसा अलैहिस्सलाम का तमाचा

〽️हज़रत मूसा अलेहिस्सलाम के पास जब मलक-उल-मौत हाज़िर हुआ तो हज़रत मूसा अलेहिस्सलाम ने मलक-उल-मौत को एक ऐसा तमांचा मारा कि मलक-उल-मौत की आँख निकल आई।

मलक-उल-मौत फ़ौरन वापस पलटा और अल्लाह के हुज़ूर अर्ज करने लगा- इलाही आज तो तूने मुझे एक ऐसे अपने बन्दे की तरफ़ भेजा है जो मरना ही नहीं चाहता ये देख की उसने मुझे तमाचा मार कर मेरी आँख निकाल दी है।

ख़ुदा ने मलक-उल-मौत की वो आँख दुरस्त फरमा दी और फ़रमाया मेरे बन्दे मूसा के पास फिर जाओ और बैल साथ लेते जाओ और मूसा से कहना के अगर तुम चलना चाहते हो तो उस बैल की पुश्त पर हाथ फेरो जितने बाल तुम्हारे हाथ के नीचे आ जाएँगे उतने ही साल और जिन्दा रह लेना।

चुनाँचे मलक-उल-मौत बैल लेकर फिर हाज़िर हुआ और अर्ज़ करने लगा- हुज़ूर उसकी पुश्त पर हाथ फेरिये, जितने बाल आपके हाथ के नीचे आजाएंगे इतने साल आप और ज़िन्दा रह लें। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया और उसके बाद फिर तुम आ जाओगे? अर्ज़ किया- हाँ! तो फ़रमाया- फिर अभी ले चलो।

#(मिश्कात शरीफ़, सफ़ा-499)


🌹सबक़ ~
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अल्लाह के नबियों की ये शान है की चाहें तो मलक-उल-मौत को भी तमाचा मार दें और उसकी आँख निकाल दें और नबी वो होता है जो मरना चाहे तो मलक-उल-मौत क़रीब आता है और अगर ना मरना चाहे तो मलक-उल-मौत वापस चला जाता है। हालाँकी अवाम की मौत उस शैर के मिसदाक़ होती है की-

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले,
अपनी खुशी ना आए ना अपनी खुशी चले।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 85-86, हिकायत नंबर- 71
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मूसा अलैहिस्सलाम का मुक्का*

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम जब तीस बरस के हो गए तो एक दिन फ़िरऔन के महल से निकल कर शहर में दाख़िल हुए तो आपने दो आदमी आपस में लड़ते-झगड़ते देखा। एक तो फ़िरऔन का बावर्ची था और दूसरा हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम यानी बनी इस्राईल में से था।

फ़िरऔन का बावर्ची लकड़ियों का गठ्ठा उस दूसरे आदमी पर लाद कर उसे हुक्म दे रहा था कि वो फ़िरऔन के बावर्ची खाने तक वो लकड़ियाँ ले चले हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ये बात देखी तो फ़िरऔन के बावर्ची से फ़रमाया- उस गरीब आदमी पर ज़ुल्म ना कर लेकिन वो बाज़ ना आया और बद ज़बानी पर उतर आया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे एक मुक्का मारा तो उस एक ही मुक्के से उस फ़िरऔनी का दम निकल गया और वो वहीं ढ़ेर हो गया।

#(क़ुरआन करीम, पारा-20, रूकू-5; रूह-उल-बयान, सफ़ा-25, जिल्द-2)


🌹सबक़ ~
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अम्बियाक्राम अलैहिमुस्सलाम मज़लूमों के हामी बनकर तशरीफ़ लाए हैं और ये भी मालूम हुआ के नबी सीरत व सूरत और ज़ोर व ताक़त में भी सबसे बुलंद व बाला होता है और नबी का मुक्का एक इम्तियाज़ी मुक्का था की एक ही मुक्के से ज़ालिम का काम तमाम हो गया।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 85, हिकायत नंबर- 70
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फ़िरऔन की बेटी

〽️फ़िरऔन की एक बेटी थी। फलबहरी का मर्ज़ था। फ़िरऔन ने उसका बड़े-बड़े अत्तिबआ से इलाज कराया मगर वो अच्छी ना हुई। आखिर फ़िरऔन ने काहिनों से उसके मुतअल्लिक़ पूछा तो उन्होंने बताया की उसको शिफ़ा दरिया से मिलेगी।

चुनाँचे एक दिन फ़िरऔन और उसकी बीबी आसिया और फ़िरऔन की बेटी, दरिया के किनारे बैठे थे की हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का संदूक बहता हुआ आया। जब ये संदूक फ़िरऔन के सामने लाया गया और खोला तो मूसा अलैहिस्सलाम नज़र आए जो अपने अंगूठे को चूस रहे थे। फ़िरऔन की बीबी आसिया को, मूसा अलैहिस्सलाम बड़े प्यारे लगे और उसने उन्हें उठा लिया और फ़िरऔन की बेटी ने मूसा अलैहिस्सलाम को देखा तो उसे भी ये नूरानी बच्चा बड़ा प्यारा लगा और उसने आपके दहन मुबारक की थूक मुबारक लेकर अपने बदन पर मल ली। इस थूक

फ़िरऔन का ख़्वाब

〽️फ़िरऔन ने एक बार ख़्वाब में देखा की उसका तख़्त औंधा होकर गिर गया है। फ़िरऔन ने काहिनों से उसकी तअबीर पूछी तो उन्होंने बताया की एक ऐसा बच्चा पैदा होगा जो तेरी हकूमत के ज़वाल का बाइस होगा।

फ़िरऔन को उस बात की फ़िक्र हुई और उसने बच्चों को मरवाना शुरू कर दिया जो बच्चा किसी के यहाँ पैदा होता वो उसे मरवा देता था।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम जब पैदा हुए तो अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम की माँ के दिल में ये बात डाली की उसे दूध पिलाओ और जब कोई ख़तरा देखो तो उसे दरिया में डाल दो।

चुनाँचे चन्द रोज़ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की माँ ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को दूध पिलाया। इस अर्से में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ना रोते थे ना उनकी गोद में हरकत करते थे और ना आपकी बहन के सिवा किसी को आपकी विलादत का इल्म था। फिर जब तीन माह का अर्सा गुज़र गया तो मूसा अलैहिस्सलाम की माँ को कुछ ख़तरा महसूस हुआ तो खुदा ने दिल में ये बात डाल दी की अब तु मूसा को एक संदूक में बन्द करके दरिया में डाल दे और कोई फ़िक्र ना कर, हम उसे फिर तुम्हारी गोद में ले आएँगे।

चुनाँचे उम्मे मूसा अलैहिस्सलाम ने एक संदूक तैयार किया और उसमें रूई बिछाई और मूसा अलैहिस्सलाम को

बेटे की क़ुर्बानी

〽️हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने एक रात ख़्वाब में देखा कि कोई शख़्स ग़ैब से आवाज़ देता है और कहता है ऐ इब्राहीम! तुम्हें ख़ुदा का हुक्म है कि अपने बेटे को ख़ुदा की राह में ज़िबह कर दो। चूंकी नबियों का ख़्वाब सच्चा और अज़ क़बील वही होता है। इसलिए आप अपने मेहबूब बेटे हज़रत इसमाईल अलैहिस्सलाम को अल्लाह की राह में क़ुर्बान करने को तैयार हो गए।

चूंकी हज़रत इसमाईल अभी कम उम्र थे, इसलिए आपने उनसे सिर्फ इतना कहा कि बेटा रस्सी और एक छुरी लेकर मेरे साथ चलो। चुनाँचे अपने बेटे को लेकर आप एक जंगल में पहुँचे। हज़रत इसमाईल ने पूछा- अब्बा जान! आप ये छुरी और रस्सी लेकर क्यों चलते हैं? फ़रमाया आगे चलकर एक क़ुर्बानी ज़िबह करेंगे। फिर आगे चल कर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने साफ़-साफ़ बयान फ़रमा दिया और कहा! बेटा मैं तो अल्लाह की राह में तुझे ही ज़िबह करने यहाँ आया हूँ। मैंने ख़्वाब में देखा है की तुझे ज़िबह कर रहा हूँ। बेटा ये अल्लाह की मर्ज़ी है, बता तेरी मर्ज़ी क्या है?

हज़रत इसमाईल ने जवाब दिया- अब्बा जान! जब अल्लाह की यही मर्ज़ी है तो फिर मेरी मर्ज़ी का क्या सवाल? आपको जिस बात का हुक्म हुआ है, आप वो कीजिए। इंशाअल्लाह मैं सब्र करके दिखा दूंगा। बेटे का ये जुराअत आमेज़ जवाब सुनकर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम बड़े खुश हुए और अपने बेटे को अल्लाह की राह में ज़िबह

हुज़ूरﷺ पर वही के रुकने का हाल

इब्ने शहाब ने कहा की अबू सलमा बिन अब्दुर रहमान ने मुझे खबर दी की हज़रत जाबीर बिन अब्दुल्लाह अंसारी रदिअल्लाहु अन्हु वही के रुकने का हाल बयान कर रहे थे उन्होंने कहा, जिस वक़्त मैं (नबी) जा रहा था तो मैंने आसमान से एक आवाज़ सुनी, मैंने नज़र उठायी तो मैंने देखा की वोही फ़रिश्ता था, जो मेरे पास गार-ए-हिरा में आया था वो आसमान और ज़मीन के दरमियान कुरसी पर बैठा था, मैं उससे मार'ऊब हो कर लौट आया।

मैने कहा मुझे चादर ओढ़ा दो, फिर अल्लाह त'आला ने यह आयत नाज़िल फ़रमायी, ऐ कम्बल पोश पैगम्बर उठो और लोगों को डराओ, अपने रब की अज़मत बयान करो, अपने लिबास को साफ़ सुथरा रखो और बुतों से अलग रहो।

फ़िर बा कसरत वही का नुज़ूल हुवा और लगातार वही आने लगी।

अबदुल्लाह बिन युसूफ और अबू सौलेह ने (लैस से रिवायात में) यह्-या बिन बाकीर की मुतबे'अत की और हेलाल बिन रवाद ने (इब्ने शहाब) ज़ोहरी से रिवायात में अक़ील की मुतबे'अत की है, यूनूस और म'ओमार ने फावदा की जगह बावद्रा बयाँ किया (यानि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम का दिल कपकपा रहा था, की बजाये कहा है की, नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के कांधो के दरमियान गोश्त कपकपा रहा था)

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Huzoorﷺ Par Wahi Ke Rukne Ka Haal

Ibne Shahaab Ne Kaha Ki Abu Salma Bin Abdur Rehman Ne Mujhe Khabar Di Kee Hazrat Jabir Bin Abdullah Ansari Radiallahu Anhu Wahi Ke Rukne Ka Haal Bayan Kar Rahe The Unhone Kaha, Jis Waqt Main (Nabi) Jaa Raha Tha To Maine Aasman Se Ek Aawaz Suni, Maine Nazar Uthaayi To Maine Dekha Ki Wohi Farishta Tha, Jo Mere Paas Gaar-e-Hira Me Aaya Tha Wo Aasman Aur Zameen Ke Darmiyaan Kursi Par Baitha Tha, Main Usase Mar'oob Ho Kar Laut Aaya.

Maine Kaha Mujhe Chadar Udha Do, Phir Allah Ta'ala Ne Yah Ayat Naazil Farmayi, Aye Kambal Posh Paigambar Utho Aur Logo'n Ko Darao, Apne Rab Ki Azmat Bayaan Karo, Apne Libaas Ko Saaf Suthra Rakho Aur Buto'n Se Alag Raho.

Phir Ba Kasrat Wahi Ka Nuzool Huwa Aur Lagataar Wahi Aane Lagi.

Abdullah Bin Yusuf Aur Abu Sauleh Ne (Lais Se Riwayat Me) Yahya Bin Bakeer Ki Mutabe'at Ki Aur Helaal Bin Rawad Ne (Ibne Shahaab) Zohri Se Riwayat Me Aqeel Ki Mutabe'at Ki Hai, Yunus Aur M'omar Ne Fawada Ki Jagah Bawadra Bayaan Kiya (Ya'ani Nabi e Kareem Sallallahu Alaihiwasallam Ka Dil Kapkapa Raha Tha, Ki Bajaye Kaha Hai Kee, Nabi e Kareem Sallallahu Alaihiwasallam Ke Kaandho Ke Darmiyaan Gosht Kapkapa Raha Tha)

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हुज़ूरﷺ पर पहला वही आने का बयान

हज़रत उम्मुल मोमिनीन हज़रात आयेशा रदिअल्लाहु अन्हा से रिवायात है की उन्होंने फ़रमाया के सबसे पहली वही जो रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम पर उतरनी शुरू हुवी, वह अच्छे ख़्वाब थे जो बा-हालते नींद नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम देखते थे।

चुनांचे जब भी नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ख़्वाब देखते तो वह सुबह की रौशनी की तरह ज़ाहिर हो जाता। फिर तन्हाई से नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को मोहब्बत होने लगी और गार-ए-हिरा में तनहा रहने लगे और क़ब्ल इसके के घर वालों के पास आने का शौक़ हो, वहां तहनास किया करते, तहनास से मुराद कई रातें इबादत करना है और उसके लिये तोशा साथ ले जाते (यानी खाने-पीने का सामान ले जाते) फिर हज़रत ख़दीजा रदिअल्लाहु अन्हा के पास वापस आते और इसी तरह तोशा ले जाते यहां तक की जब नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम गार-ए-हिरा में थे वही का नुज़ूल हुआ।

चुनांचे नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के पास फ़रिश्ता आया और कहा पढ़िये, नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फ़रमाया की मैंने कहा मैं पढ़ने वाला नहीं हूँ, नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम बयान करते हैं की मुझे फ़रिश्ते ने पकड़ कर ज़ोर से दबाया यहां तक की मुझे तकलीफ महसूस हुयी, फिर मुझे छोड़ दिया और कहा पढ़िये ! मैंने कहा मैं पढ़ने वाला नहीं हूँ, फिर दूसरी बार मुझे पकड़ा और ज़ोर

Huzoorﷺ Par Pahla Wahi Aane Ka Bayaan

Hazrat Ummul Momineen Hazrat Ayesha Radiallahu Anha Se Riwayat Hai Kee Unhone Farmaya Ke Sabse Pahli Wahi Jo Rasoolallah Sallallahu Alaihiwasallam Par Utarni Shuru Huwi Woh Achche Khwaab The Jo Ba-haalate Neend Nabi e Kareem Sallallahu Alaihiwasallam Dekhte The.

Chunanche Jab Bhi Nabi e Kareem Sallallahu Alaihiwasallam Khwaab Dekhte To Woh Subah Ki Roshni Ki Tarah Zaahir Ho Jaata Phir Tanhayi Se Nabi e Kareem Sallallahu Alaihiwasallam Ko Mohabbat Hone Lagi Aur Gaar e Hira Me Tanha Rahne Lage Aur Qabl Iske Ke Ghar Walo'n Ke Paas Aane Ka Shauq Ho, Wahaa'n Tahannas Kiya Karte, Tahannas Se Muraad Kayi Raate'n Ibadat Karna Hai Aur Uske Liye Tosha Sath Le Jaate (Ya'ani Khane Peene Ka Saamaan Le Jaate). Phir Hazrat Khadija Radiallahu Anha Ke Paas Wapas Aate Aur Isi Tarah Tosha Le Jaate Yahaa'n Tak Kee Jab Nabi e Kareem Sallallahu Alaihiwasallam Gaar e Hira Me The Wahi Ka Nuzool Huwa.

Chunanche Nabi e Kareem Sallallahu Alaihiwasallam Ke Paas Farishta Aaya Aur Kaha Padhiye, Nabi e Kareem Sallallahu Alaihiwasallam Ne Farmaya Kee Maine Kaha Main Padhne Wala Nahi Hoo'n, Nabi e Kareem Sallallahu Alaihiwasallam Bayaan Karte Hain Kee Mujhe Farishte Ne Pakad Kar Zor

हुज़ूरﷺ पर वही किस तरह नाज़िल होती थी ?

सैय्यदा आयेशा रदिअल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं कि हारिस बिन हेशाम ने पुछा या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम आप पर वही किस तरह नाज़िल होती है?

रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फ़रमाया कभी तो घंटे की आवाज़ की मानिंद और वह मेरी तबियत पर बहुत गिरां होती है फिर जब वह पैग़ाम याद कर लेता हूँ तो यह कैफ़ियत ख़त्म हो जाती है और कभी फ़रिश्ता इंसान की सूरत में मेरे पास आता है और मुझसे हम-कलाम होता है और और जो वह कहता है उसे याद कर लेता हूँ।

सैय्यदा आयेशा रदिअल्लाहु अन्हा का कहना है कि मैंने कड़ाके की सर्दी में आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम पर वही नाज़िल होती देखी, जब वही मौक़ूफ़ हो जाती तो आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की पेशानी से पसीना बह निकलता।

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आमाल का दारो-मदार निय्यत पर

हज़रात उमर बिन खत्ताब रदिअल्लहु अन्हु से रिवायत है रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फ़रमाया आमाल का दारो-मदार निय्यत पर है। हर शख़्स को वोही मिलेगा जिसकी उसने निय्यत की। चुनांचे जिसने हिज़रत दुनिया कमाने या औरत से निकाह करने के लिए की तो उसकी हिजरत उसके लिये है जिस मक़सद के लिए हिजरत की।

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Huzoorﷺ Par Wahi Kis Tarah Naazil Hoti Thi ?

Sayyedah Ayesha Radiallahu Anha Farmati Hain Ke Haaris Bin Heshaam Ne Poocha Ya Rasoolallah Sallallahu Alaihiwasallam Aap Par Wahi Kis Tarah Naazil Hoti Hai?

Rasool e Kareem Sallallahu Alaihiwasallam Ne Farmaya Kabhi To Ghante Ki Aawaz Ki Maanind Aur Woh Meri Tabiyat Par Bahut Giraan Hoti Hai Phir Jab Woh Paigaam Yaad Karleta Hoo'n To Yeh Kaifiyat Khatm Ho Jaati Hai Aur Kabhi Farishta Insaan Ki Soorat Me Mere Paas Aata Hai Aur Mujhse Hum-Kalaam Hota Hai Aur Aur Jo Woh Kehta Hai Use Yaad Karleta Hoo'n.

Sayyeda Ayesha Radiallahu Anha Ka Kehna Hai Ke Maine Kadaake Ki Sardi Me Aap Sallallahu Alaihiwasallam Par Wahi Naazil Hoti Dekhi, Jab Wahi Mauquf Ho Jaati To Aap Sallallahu Alaihiwasallam Ki Peshani Se Paseena Beh Nikalta.

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A'amaal Ka Daaro Madaar Niyyat Par

Hazrat Umar Bin Khattab Radiallahu Anhu Se Riwayat Hai RasoolAllah Sallallahu Alaihiwasallam Ne Farmaya A'amaal Ka Daaro Madaar Niyyat Par Hai Har Shakhs Ko Wohi Milega Jiski Usne Niyyat Ki Chunanche Jisne Hijrat Duniya Kamane Ya Aurat Se Nikah Karne Keliye Ki To Uski Hijrat Uskeliye Hai Jis Maqsad Keliye Hijrat Ki.

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हज़रत मुस्लिम कूफा में

〽️हज़रत मुस्लिम के दो साहिब ज़ादे मुहम्मद और इब्राहीम जो बहुत कम उम्र थे और अपने बाप के बहुत प्यारे बेटे थे, इस सफर में अपने मेहरबान बाप के साथ हो लिये।

हज़रत मुस्लिम ने कूफा पहुंच कर मुख़्तार बिन उबैद के मकान पर कियाम फ़रमाया, शियआने अली हर तरफ से जूक़ दर जूक़ आकर बड़े जोशो-अक़ीदत और मुहब्बत के साथ आप से बैअत करने लगे, यहां तक कि एक हफ्ता के अन्दर बारह हज़ार कूफियों ने आप के दस्ते मुबारक पर हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु की बैअत की।

हज़रत मुस्लिम को जब हालात खुशगवार नज़र आए तो आप ने इमाम हुसैन को ख़त लिख दिया कि यहां के हालात साज़गार हैं और अहले कूफा अपने क़ौलो-क़रार पर क़ाइम हैं, आप जल्द तशरीफ लाइये।

सहाबिए रसूल हज़रत नोमान बिन बशीर, जो उस ज़माने में कूफा के गवर्नर थे जब वह हालात से बाख़बर हुए तो मिम्बर पर तशरीफ ले गए और हम्दो-सलात के बाद फ़रमाया कि ऐ लोगो! यह बैअत यज़ीद की मर्ज़ी के खिलाफ है, वह इस पर बहुत भड़केगा और फित्ना व फसाद बरपा होगा।

अब्दुल्लाह बिन मुस्लिम हज़रमी जो बनू उमैया के हवा-ख़्वाहों (ख़ैर ख़्वाहों) में से था, उठ खड़ा हुआ और कहा

कूफा को हज़रत मुस्लिम की रवानगी

〽️आख़िरी खत जो हानी बिन हानी सुबेई और सईद बिन अब्दुल्लाह हनफी के बदस्त (हाथों) हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को पहुँचा, उस के बाद आप ने कूफा वालों को लिखा कि तुम लोगों के बहुत से ख़ुतूत हम तक पहुंचे जिन के मज़ामीन से हम मुत्तला हुए, तुम लोगों के जज़्बात और अक़ीदत व मुहब्बत का लिहाज़ करते हुए बर वक्त हम अपने भाई चचा के बेटे मख़्सूस व मोअतमद मुस्लिम बिन अक़ील को कूफा भेज रहे हैं, अगर इन्हों ने लिखा कि कूफा के हालात साज़गार हैं तो इन्शा अल्लाहु तआला मैं भी तुम लोगों के पास बहुत जल्द चला आऊंगा। #(तबरीः2/178)

हज़रत सदरुल अफाज़िल मौलान सैयद मुहम्मद नईमुद्दीन साहब मुरादाबादी रहमतुल्लाहि अलैह तहरीर फ़रमाते हैं कि अगर्चे इमाम की शहादत की ख़बर मशहूर थी और कूफियों की बे वफाई का पहले भी तज्रिबा हो चुका था मगर जब यज़ीद बादशाह बन गया और उस की हुकूमत व सल्तनत दीन के लिये ख़तरा थी और इस लिये उस की बैअत ना रवा थी और वह तरह-तरह की तदबीरों और हीलों से चाहता था कि लोग उस की बैअत करें, इन हालात में कूफियों का ब-पासे मिल्लत (समाज का लिहाज़ करते हुए) यज़ीद की बैअत से दस्त कशी करना और हज़रत इमाम से तालिबे बैअत होना इमाम पर लाज़िम करता था कि उन की दरख़्वास्त कबूल

कूफियों के ख़ुतूत

〽️कूफा शहर की बुनियाद उस वक़्त पड़ी जबकि 14 हिजरी से 16 हिजरी तक क़ादसिया वग़ैरा में फुतूहात के बाद मुसलमानों की फौज ने इराक़ में सुकूनत इख़्तियार की और मदाइन की आबो-हवा उन के मुवाफिक् न हुई तो सहाबिए रसूल हज़रत सअद बिन वक़्क़ास रदिअल्लाहु तआला अन्हु के हुक्म से यह जगह तलाश की गई और मुसलमानों के लिये मकानात की तामीर हुई। फिर आप 17 हिजरी में अपनी फौज के साथ मदाइन से मुन्तकिल होकर यहां मुक़ीम हुए। इस तरह कूफा शहर वुजूद में आया।

हज़रत अली रदिअल्लाहु तआला अन्हु के ज़माना ही से कूफा आप के शियओं और महबूबों का मरकज़ था, वहां के लोग हज़रत अमीरे मुआविया के अहदे ख़िलाफत ही में हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु की ख़िदमत में तशरीफ आवुरी की अरज़ियां भेज चुके थे मगर आप ने साफ इनकार कर दिया था।

अब जबकि कूफा वालों को मालूम हुआ कि अमीरे मुआविया का इन्तेक़ाल हो गया और इमामे आली मक़ाम ने

मदीना मुनव्वरा से रिहलत (रवानगी)

〽️मदीना मुनव्वरा वह शहरे मुकद्दस है जो हुज़ूर अनवर सैयिद आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को सारे शहरों में सब से ज़्यादा महबूब है जैसा कि खुद हुज़ूर इरशाद फ़रमाते हैं: तर्जुमा नबी उसी जगह इन्तेक़ाल फ़रमाता है जो उसे सब जगहों से ज़्यादा महबूब हो। #(फज़ाइले मदीनाः11)

और रसूले काइनात सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का विसाल मदीना मुनव्वरा में हुआ। मालूम हुआ कि सारे शहरों में आप को सब से ज़्यादा प्यारा मदीना मुनव्वरा है। और जब हुज़ूर को वह सब से ज़्यादा प्यारा है तो हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को भी वही शहर सब से ज़्यादा प्यारा है। मगर हालात ने इस महबूब के छोड़ने पर आपको मजबूर कर दिया, सफर की तैयारी मुकम्मल हो गई, ऊंटों पर कजावे कसे गए और अहले बैते रिसालत का यह छोटा सा मुकद्दस काफिला मदीनतुर रसूल की जुदाई के सद्-मे से रोता हुआ घरों से निकल पड़ा और हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु अपने नाना जान के रौज़ए अनवर पर आख़िरी सलाम अर्ज़ करने के लिये हाज़िर हुए।

इमाम आली मक़ाम जब अपने नाना जान के आस्तानए मुक़द्दसा पर आख़िरी सलाम के लिये हाज़िर हुए होंगे,

यज़ीद की तख़्त नशीनी और तलबे बैअत

〽️हज़रत अमीरे मुआविया रदिअल्लाहु तआला अन्हु की वफात के बाद यज़ीद ने तख़्त नशीन होते ही अपनी बैअत के लिये हर तरफ खुतूत व हुक्म नामे रवाना किये।

मदीना मुनव्वरा के गवर्नर वलीद बिन उक्बा थे, उन को अपने बाप की वफात की इत्तिला की और लिखा कि हर खास व आम से मेरी बैअत लो और हुसैन बिन अली, अब्दुल्लाह बिन जुबैर और अब्दुल्लाह बिन उमर (रदिअल्लाहु तआला अन्हुम) से पहले बैअत लो, इन सब को एक लम्हा मोहलत न दो।

मदीना मुनव्वरा के लोगों को अभी तक हज़रत अमीरे मुआविया के इन्तेक़ाल की खबर न थी, यज़ीद के हुक्म नामे से वलीद बहुत घबराया इस लिये कि इन हज़रात से बैअत लेना आसान नहीं था, उस ने मश्वरा के लिये मरवान बिन हिकम को बुलाया। मरवान बिन हिकम वह शख़्स है कि जब उस की पैदाइश हुई और हुज़ूर अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में तहनीक (कोई चीज़ चबा कर नर्म करके खिलाने) के लिये लाया गया तो हुज़ूर ने फ़रमायाः - (रवाहुल हाकिम फी सहीहिही) यह गिरगिट का बेटा गिरगिट है। #(अन्नाहियाः 45)

और बुख़ारी, नसाई और इब्ने अबी हातिम अपनी तफ्सीर में रिवायत करते हैं कि हज़रत आइशा सिद्दीका

यज़ीद और हदीसे कुस्तुन्तुनिया

यज़ीद पलीद जिस ने मस्जिदे नबवी और बैतुल्लाह शरीफ की सख़्त बेहुर्मती की, जिस ने हज़ारों सहाबए किराम व ताबईने इज़ाम रदिअल्लाहु तआला अन्हुम का बेगुनाह क़त्ले आम किया, जिस ने मदीना तैयिबा की पाक दामन ख़्वातीन को अपने लश्कर पर हलाल किया और जिस ने जिगर गोशए रसूल हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को तीन दिन बेआबो-दाना रख कर प्यासा ज़िबह किया। ऐसे बद बख़्त और मरदूद यज़ीद को पैदाइशी जन्नती और बख़्शा-बख़्शाया हुआ साबित करने के लिये आज कल कुछ लोग ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं, ऐसे लोग चाहे अपने को सुन्नी कहें या देवबन्दी लेकिन हक़ीक़त में वह अहले बैते रिसालत के दुश्मन, ख़ारजी और यज़ीदी हैं। उस बद बख़्त की हिमायत में वह लोग बुख़ारी शरीफ की एक हदीस पेश करते हैं जो हदीसे कुस्तुन्तुनिया के नाम से याद की जाती है, इन बातिल परस्त यज़ीदियों का मक़्सद यह है कि जब यज़ीद की बख़्शिश और उस का जन्नती होना हदीस शरीफ से साबित है तो इमाम हुसैन का ऐसे शख़्स की बैअत न करना और उस के ख़िलाफ अलमे जिहाद बुलंद करना बग़ावत है और सारे फित्ना व फसाद की ज़िम्मेदारी इन्हीं पर है। नऊजु बिल्लाहि मिन् ज़ालिक।

यज़ीदी गिरोह जो हदीस पेश करता है वह यह है: तर्जुमा नबीए अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि मेरी उम्मत का पहला लश्कर जो क़ैसर के शहर (कुस्तुन्तुतिया) पर हमला करेगा वह बख़्शा हुआ है। #(बुख़ारी शरीफः 1/410)

और कैसर के शहर कुस्तुन्तिनिया पर पहला हमला करने वाला यज़ीद है लिहाजा वह बख़्शा-बख़्शाया हुआ

यज़ीद और अहादीसे करीमा व अक़्वाले अइम्मा

〽️ रूयानी अपनी मुस्नद में सहाबिए रसूल हज़रत अबू दरदा रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं- उन्होंने फ़रमाया कि मैं ने रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को यह इरशाद फरमाते हुए सुनाः मेरी सुन्नत का पहला बदलने वाला एक शख़्स बनी उमैया का होगा जिस का नाम यज़ीद होगा। #(तारीखुल खुलफा: 142)

और अबू यशूला अपनी मुस्नद में (बसनदे ज़ईफ) हज़रत अबू उबैदा रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि मेरी उम्मत हमेशा अदल व इंसाफ पर काइम रहेगी यहां तक कि पहला रख्ना अंदाज़ (रुकावट बनने वाला) बनी उमैया का एक शख़्स होगा जिस का नाम यज़ीद होगा। #(तारीखुल खुलफाः 142)

और अल्लामा सबान तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम अहमद बिन हंबल रदिअल्लाहु तआला अन्हु यज़ीद के कुफ़्र के काइल हैं और तुझे उन का फ़रमान काफी है, उन का तक़्वा और इल्म इस अम्र का मुतक़ाज़ी (यह चाहता) है कि उन्होंने यह बात इस लिये कही होगी कि उनके नज़दीक ऐसे उमूरे सरीहा का यज़ीद से सादिर होना साबित

यज़ीद पलीद

यज़ीद हज़रत मुआविया रदिअल्लाहु तआला अन्हु का बेटा जिस की कुन्नियत अबू ख़ालिद है, उमैया ख़ानदान का वह बदबख़्त इंसान है जिस की पेशानी पर नवासए रसूल, जिगर गोशए बतूल हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के क़त्ल का सियाह दाग है, जिस पर हर ज़माने में लोग मलामत करते रहे और रहती दुनिया तक ऐसे ही मलामत करते रहेंगे।

यह बद बातिन और नंगे ख़ानदान 25 हिजरी में पैदा हुआ, इस की मां का नाम मैसून बिन्त नजदल कलंबी है। यज़ीद बहुत मोटा, बद नुमा, बद खुल्क़, फासिक व फाजिर, शराबी, बदकार, ज़ालिम और बेअदब व गुस्ताख था। उस की बद कारियां और बेहूदगियां इन्तिहा को पहुंच गई थीं।

हज़रत अब्दुल्लाह रदिअल्लाहु तआला अन्हु जो हज़रत हंज़ला ग़सीलुल् मलाइका के साहिब जादे हैं वह फ़रमाते हैं: यज़ीद पर हम ने उस वक्त हमले की तैयारी की जब हम लोगों को अंदेशा हो गया कि उसकी बद कारियों के सबब हम पर आसमान से पत्थरों की बारिश होगी। इस लिये कि फिस्क़ व फुजूर का यह आलम था कि लोग

सय्यदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन (रदिअल्लाहु अन्हु), एक ऐतराज़ और उसका जवाब

〽️बाज़ गुस्ताख़ जो ऐतराज़ करते हैं कि जब रसूलुल्लाह अपने नवासे को क़त्ल से नहीं बचा सके तो दूसरे को किसी मुसीबत से क्या बचा सकते हैं ? तो इसका जवाब यह है कि अल्लाह के महबूब प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने अपने नवासे हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को शहीद होने से बचाने की कोशिश ही नहीं फ़रमाई, इस लिये कि आप ने उनके लिये क़त्ल से महफूज रहने की दुआ ही नहीं की और जब आप ने उन को शहीद होने से बचाने की कोशिश ही नहीं फ़रमाई तो फिर यह कहना ही सिरे से गलत है कि वह अपने नवासे को क़त्ल से नहीं बचा सके। जैसे कि हमारा कोई आदमी दरिया में डूब रहा हो और हमारे पास डूबने से बचाने के लिये कश्ती वगैरा तमाम सामान मुहैया हों मगर हम बचाने की कोशिश न करें, तो यह कहना गलत है कि हम बचा न सके। हां अगर हम बचाने की कोशिश करते और न बचा पाते तो अल्बत्ता यह कहना सहीह होता कि हम नहीं बचा सके तो अल्लाह के महबूब सैयिदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम अपने नवासे को बचाने की क़ुद्रत रखने के बावजूद उन को बचाने की कोशिश नहीं फ़रमाई, लिहाजा यह कहना गलत कि उन को नहीं बचा सके। ख़ुदाए तआला समझ अता फ़रमाए।

और बाज़ गुस्ताख जो यह कहते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु जो सैयिदुल अंबिया के नवासे और सहाबी हैं, जिन के दर्ज़ा को बड़े से बड़ा वली और गौस व क़ुतब नहीं पहुंच सकता, जब वह अपनी और अपने अज़ीज़ व अक़ारिब की जान नहीं बचा सके तो दूसरा कोई गौस व क़ुतब किसी की क्या मदद कर

सय्यदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन (रदिअल्लाहु अन्हु) की शहादत की शोहरत

〽️सैय्यिदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु की पैदाइश के साथ ही आप की शहादत की शोहरत भी आम हो गई। हज़रत अली, हज़रत फातिमा ज़हरा और दीगर सहाबए किराम व अहले बैत के जां निसार रदिअल्लाहु तआला अन्हुम सभी लोग आप के ज़मानए शीर ख़्वारगी (दूध पीने के ज़माना) ही में जान गए कि यह फर्ज़न्दे अर्जुमन्द जुल्म व सितम के हाथों शहीद किया जाएगा और इन का खून निहायत बेदर्दी के साथ ज़मीने करबला में बहाया जाएगा जैसा कि उन अहादीसे करीमा से साबित है जो आप की शहादत के बारे में वारिद हैं: हज़रत उम्मुल फज़ल बिन्त हारिस रदिअल्लाहु तआला अन्हा यानी हज़रत अब्बास रदिअल्लाहु तआला अन्हु की ज़ौजा फ़रमाती हैं कि मैं ने एक रोज़ नबीए अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को आप की गोद में दिया, फिर मैं क्या देखती हूं कि हुज़ूर की मुबारक आंखों से लगातार आंसू बह रहे हैं, मैं ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! मेरे मां-बाप आप पर कुर्बान हों यह क्या हाल है? फ़रमाया मेरे पास जिब्रील अलैहिस्सलाम आए और उन्हों ने यह खबर पहुंचाई कि मेरी उम्मत मेरे इस फर्ज़न्द को शहीद करेगी। हज़रत उम्मुल फज़ल फ़रमाती हैं कि मैं ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! क्या इस फर्ज़न्द को शहीद कर देगी? हुज़ूर ने फ़रमाया हां, फिर जिब्रील मेरे पास उस की शहादतगाह की मिट्टी भी लाए। #(मिश्कात:572)

और इब्ने सअद व तबरानी हज़रत आइशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत करते हैं उन्होंने कहा

सय्यदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन (रदिअल्लाहु अन्हु) के फज़ाइल

〽️हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के फज़ाइल में बहुत सी हदीसे वारिद हैं। आप हज़रात पहले उन हदीसों को समाअत फ़रमाएं जो सिर्फ आप के मनाक़ीब में हैं। फिर जो हदीसे कि दोनों शाहज़ादों के फज़ाइल को शामिल हैं वह बाद में पेश की जायेंगी। तिर्मिज़ी शरीफ की हदीस है हज़रत याला बिन, मुर्रा रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर पुर नूर सैयिदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः हुसैन मुझ से हैं और मैं हुसैन से हूं। यानी हुसैन को हुज़ूर से और हुज़ूर को हुसैन से इन्तिहाई कुर्ब है गोया कि दोनों एक हैं तो हुसैन का ज़िक्र हुज़ूर का ज़िक्र है, हुसैन से दोस्ती हुज़ूर से दोस्ती है, हुसैन से दुश्मनी हुज़ूर से दुश्मनी है और हुसैन से लड़ाई करना हुज़ूर से लड़ाई करना है (सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम व रदिअल्लाहु तआला अन्हु) और सरकारे अक़्दस इरशाद फ़रमाते हैं: जिस ने हुसैन से मुहब्बत की उस ने अल्लाह तआला से मुहब्बत की। #(मिश्कातः571)

इस लिये कि हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु से मुहब्बत करना हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से मुहब्बत करना है और हुज़ूर से मुहब्बत करना

सय्यदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन (रदिअल्लाहु अन्हु) की विलादत (पैदाइश)

〽️एक मर्तबा हम और आप सब लोग मिल कर सारी काइनात के आक़ा व मौला जनाब अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के दरबारे दुररे बार में बुलंद आवाज़ से दुरूद शरीफ का नज़राना और हदिया पेश करें-
सल्लल्लाहु अलन् नबिय्यील उम्मियी व आलिही सल्लल्लाह तआला अलैहि व सल्लम, सलातंव् व सलामन् अलैक या रसूलल्लाह।

हम्दो-सलात के बाद क़ुरआने मुकद्दस की आयते करीमा के जिस टुकड़े की तिलावत का शर्फ हम ने हासिल किया है। यानीः क़द जा-अकुम मिनल्लाहि नूर (Qad Ja'akum Minallahi Noor)

उसका तर्जमा यह है: अल्लाह तआला की जानिब से तुम्हारे पास नूर आ गया।

इस आयते करीमा में हमारे नबीए अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को नूर फरमाया गया है और नूर वह है जो खुद रौशन और चमकदार हो और दूसरों को रौशन व चमकदार बनाए। देखिये आफ्ताब नूर है जो रौशन व ताबनाक है और जिस पर वह अपना अक्स डालता है उसे भी रौशन व ताबनाक बना देता है। मगर वह सिर्फ जाहिर को चमकाता है और हमारे आक़ा व मौला प्यारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ऐसे नूर हैं जो ज़ाहिर व बातिन दोनों को चमकाते हैं, तो जो लोग कि इस नूर से चमके वह खूब चमक। फिर उन में जो नूर की गोद में खेल कर बड़े हुए यानी नवासए रसूल सय्यदुश्-शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला

शहीदों की जिंदगी

〽️शहीद जो अल्लाह की राह में कत्ल किये जाते हैं वह जिंदा हैं, पारए दोम, रुकूअ-3 की आयते करीमा में खुदावन्दे क़ुद्दुस ने शहीदों को मुर्दा कहने से रोक दिया और फ़रमाया कि वह जिंदा हैं लेकिन तुम शऊर नहीं रखते हो और नहीं समझते हो कि वह कैसे जिंदा हैं।

मगर इंसान जबकि देखता है कि शहीद के हाथ पांव कट गए, उस की गर्दन जुदा हो गई, वह बेहिस व हरकत हो गया और सांस की आमद व रफ्त भी बन्द हो गई फिर उस को ज़मीन के नीचे दफन कर दिया गया, वारिसों ने उस के माल को आपस में तक़्सीम कर लिया और बीवी ने इद्दत गुज़ार कर दूसरा निकाह भी कर लिया तो हो सकता था कि ज़ाहिरी हाल देख कर वह गुमान करता शहीद मुर्दा हैं अल्बत्ता जब अल्लाह तआला ने मना फरमा दिया है तो उसे मुर्दा नहीं कहा जाएगा तो खुदाए अज्ज़ व. जल्ल ने पारए चहारुम, रुकूअ-8 की आयते मुबारका में शहीदों को मुर्दा गुमान करने से भी रोक दिया और ताकीद के साथ फ़रमाया कि ऐसे लोगों को मुर्दा हरगिज़ गुमान मत करना बल्कि वह ज़िन्दा हैं और बारगाहे इलाही से रोज़ी दिये जाते हैं।

क़ुरआने करीम की इन आयाते मुबारका से वाज़ेह तौर पर साबित हुआ कि शुहदाए किराम ज़िंदा हैं, उन को मुर्दा

बेमिस्ल शहादत

〽️इस्लाम की नशर व इशाअत और उस की बक़ा के लिये बेशुमार मुसलमान अब तक शहीद किये गए मगर इन तमाम लोगों में सैय्युिदश-शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु की शहादत बेमिस्ल है कि आप जैसी मुसीबतें किसी दूसरे शहीद ने नहीं उठाई। आप तीन दिन के भूके-प्यासे शहीद किये गए, इस हाल में कि आप के तमाम रुफक़ा, अज़ीज़ व अक़ारिब व अहल व अयाल भी सब भूके प्यासे थे और छोटे बच्चे पानी के लिये तड़प रहे थे। यह आप के लिये और ज़्यादा मुसीबत की बात थी, इस लिये कि इंसान अपनी भूक व प्यास तो बर्दाश्त कर लेता है लेकिन अहल व अयाल और खास कर छोटे बच्चों की भूक व प्यास उसे पागल बना देती है और जब पानी का वुजूद नहीं होता तो प्यास की तक्लीफ कम होती है लेकिन जब कि पानी की बोहतात हो जिसे आम लोग हर तरह से इस्तेमाल कर रहे हों यहां तक कि जानवर भी उस से सैराब हो रहे हों मगर कोई शख़्स जो तीन दिन का भूका प्यासा हो उसे न पीने दिया जाए तो उस के लिये ज़्यादा तक्लीफ की बात है और मैदाने करबला में यही नक़शा था कि आदमी और जानवर सभी लोग दरियाए फुरात से सैराब हो रहे थे, मगर इमामे आली मकाम और उनके तमाम रुफक़ा पर पानी बन्द कर दिया गया था यहां तक कि आप अपने बीमारों और छोटे बच्चों को भी एक कतरा नहीं पिला सकते थे।
उस की क़ुद्रत जानवर तक आब से सैराब हों।
प्यास की शिद्दत में तड़पे बे ज़बाने अहले बैत।।

और फिर ग़ैर ऐसा करे तो तक़्लीफ का ऐहसास कम होगा और यहां हाल यह है कि खाना-पानी रोकने वाले अपने

शहादत की लज़्ज़त

〽️दुनिया की बेशुमार नेअमतों से इंसान लुत्फ व लज़्ज़त हासिल करता है, किसी नेअमत को खाता है, किसी को पीता है, किसी को सूंघता है, किसी को देखता है, किसी को सुनता है और इन के अलावा मुख़्तलिफ तरीक़ों से तमाम नेअमतों को इस्तेमाल करता है और उन से महज़ूज़ होता है लेकिन मर्दे मोमिन को शहादत की जो लज़्ज़त हासिल होती है उस के सामने दुनिया की सारी लज़्ज़तें हेच हैं।

यहां तक कि शहीद जन्नत की तमाम नेअमतों से फाइदा उठाएगा और उन से लुत्फ अंदोज़ होगा मगर जब उस को अल्लाह व रसूल की मुहब्बत में सर कटाने का मज़ा याद आएगा तो जन्नत की भी सारी नेअमतों का मज़ा भूल जाएगा और तमन्ना करेगा कि ऐ काश! मैं दुनिया में वापस किया जाऊं और बार-बार शहीद किया जाऊं।

हदीस शरीफ में है सरकारे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि जन्नत में दाख़िल होने के बाद फिर कोई जन्नती वहां की राहतों और नेअमतों को छोड़ कर दुनिया में आना पसंद न करेगा कि जो चीज़ें हमें ज़मीन में हासिल थीं वह फिर मिल जाएं।

मगर शहीद आरजू करेगा कि वह फ़िर दुनिया की तरफ वापस. होकर अल्लाह की राह में दस मर्तबा क़त्ल किया

मिस्र की औरतें

〽️मिस्र के शरीफ घर की औरतों ने जब जुलैख़ा को हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की मुहब्बत पर मलामत की और ताना दिया तो जुलैख़ा ने उन औरतों को बुलाया, उन के लिये दस्तर ख़्वान बिछवाया जिस पर तरह-तरह के खाने और मेवे चुने गए फिर जुलैख़ा ने हर औरत को फल वगैरा काटने के लिये एक-एक छुरी दी और हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया आप इन औरतों के सामने आ जाएं।

जब आप तशरीफ लाए और औरतों ने उनके जमाले जहां-आरा को देखा तो उन के हुस्न ने औरतों पर इतना असर किया कि बजाए लीमू के उन्हों ने अपने-अपने हाथों को काट लिया और खून बहने लगा मगर उन लोगों को हाथों के कटने का एहसास नहीं हुआ, इसी लिये उन्हों ने यह नहीं कहा कि हाए! हम तो अपने हाथ काट लिये बल्कि यह कहा कि यह इंसान नहीं हैं फिरिश्ता हैं।
 
#(सूरए यूसुफ, पाराः12, रुकूअः14)

और जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के हुस्न का औरतों पर ऐसा असर हुआ कि उन को हाथ कटने की तक्लीफ

शहीद और ऐहसासे ज़ख़्म

〽️मैदाने जंग में शहीद हर तरह से ज़ख़्मी होता है कभी हाथ कटता है, कभी पांव घायल होता है, कभी उस के सीने में नेज़ा दाखिल किया जाता है, ख़ून का फव्वारा जारी होता है, कभी गर्दन कट के अलग हो जाती है और शहीद ख़ून में नहा कर ज़मीन पर गिर जाता है जिस से बज़ाहिर यह मालूम होता है कि उस को सख़्त तक्लीफ व अज़िय्यत होती है लेकिन हक़ीक़त यह है कि उस को बहुत मामूली सी तकलीफ होती है और उसे उन ज़ख्मों का पूरा ऐहसास नहीं होता।

मुख़्बिरे सादिक़ सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम इरशाद फ़रमाते हैं: शहीद क़त्ल की सिर्फ इतनी ही
तक्लीफ महसूस करता है जितनी कि तुम चुटकी भरने या चींवटी के काटने की तक्लीफ महसूस करते हो।
 
#(तिर्मिज़ी, मिश्कातः33)

मुम्किन है कोई कहे कि यह कैसे हो सकता है कि शहीद के हाथ पांव काट दिये गए और उसकी गर्दन भी जुदा कर दी गई मगर उसको सिर्फ इतनी तक्लीफ हुई जितनी चींवटी काटने या चुटकी भरने से होती है।

तो इस शुब्हा का जवाब यह है कि शहीद से यह शहीदे हक़ मुराद है जिस के दिल में अल्लाह और उस के रसूल की

शुहदा के फज़ाइल

〽️खुदाए अज़्ज़ व जल्ल शुहदा_ए_किराम की फज़ीलत बयान करते हुए क़ुरआने मजीद में इरशाद फरमाता है:

व ला तक़ुलू लि मै युक़ुतलु फी सबीलिल्लाही अम्वात बल अहया औं व लाकिल्ला तश्ऊरून

जो ख़ुदा की राह में क़ल्त किये जाएं उन्हें मुर्दा मत कहना बल्कि वह ज़िंदा हैं लेकिन तुम्हें ख़बर नहीं।
#(क़ुरआन करीम, पारा-2, रुकू-3)

और इरशाद फरमाता हैः
व ला तह्सबन्न्ल्ल ज़िन क़ुतिलू फ़ी सबीलिल्लाहि अम्वातन बल् अह्या औं इन्द रब्बीहिम् युर्ज़क़ून

जो लोग अल्लाह की राह में क़त्ल किये गए उन्हें मुर्दा हरगिज़ न ख़्याल करना बल्कि वह अपने रब के पास ज़िंदा हैं, रोज़ी दिये जाते हैं।
#(क़ुरआन करीम, पारा-4, रुकू-8)
हज़रत इब्ने मस्ऊद रदिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं ने इस आयते करीमा का माना रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से दर्याफ़्त किया तो आप ने इरशाद फरमाया कि शहीदों की रूहें सब्ज़ परिन्दों के जिस्म में हैं, उन के रहने के लिये अर्श इलाही के नीचे किन्दीलें लटकाई गई हैं। जन्नत में जहां उन का जी चाहता है वह सैर करते हैं और उसके मेवे खाते हैं।
#(मुस्लिम, मिश्कातः330)

और सरकारे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम शुहदा_ए_इस्लाम की अज़मत बयान करते हुए इरशाद फरमाते हैं कि शहीद के लिये ख़ुदा_ए_तआला के नज़दीक छः खूबियां हैं:

1). खून का पहला क़तरा गिरते ही उसे बख़्श दिया जाता है और रूह निकलने ही के वक़्त उस को जन्नत में उस का ठिकाना दिखा दिया जाता है।

2). क़ब्र के अज़ाब से महफूज़ रहता है।

3). उसे जहन्नम के अज़ाब का खौफ नहीं रहता।

4). उस के सर पर इज़्ज़त व वक़ार का ताज रखा जाएगा कि जिस का वेश बहा याकूत दुनिया और दुनिया की

शहीद की किस्में

शहीद की तीन किस्में हैं:

1- शहीदे हकीक़ी
2- शहीदे फिक़्ही और
3- शहीदे हुक्मी

जो अल्लाह की राह में क़त्ल किया जाए वह शहीदे हकीक़ी है और शहीदे फिक़्ही उसे कहते हैं कि आकिल बालिग़ मुसलमान जिसपर ग़ुस्ल फर्ज़ न हो वह तलवार व बंदूक वगैरा आलए जारिहा से ज़ुल्मन क़त्ल किया जाए और क़त्ल के सबब माल न वाजिब हुआ हो और न ज़ख़्मी होने के बाद कोई फायदा दुनिया से हासिल किया हो और न ज़िन्दों के अहकाम में से कोई हुकम उस पर साबित हुआ हो यानी अगर पागल, ना बालिग़ या हैज़ व निफास वाली औरतें और जुनुब शहीद किये जाएं तो वह शहीदे फिक़्ही नहीं और अगर क़त्ल से माल वाजिब हुआ हो जैसे कि लाठी से मारा गया या क़त्ले ख़ता कि मार रहा था शिकार को और लग गया किसी मुसलमान को, या ज़ख्मी होने के बाद खाया पिया, इलाज किया, नमाज़ का पूरा वक़्त होश में गुज़रा और वह नमाज़ पर क़ादिर था या किसी बात की वसिय्यत की तो वह शहीदे फिक़्ही नहीं। मगर शहीदे फिक़्ही न होने का यह माना नहीं कि वह शहीद होने का सवाब भी नहीं पाएगा बल्कि इस का मतलब सिर्फ इतना है कि उसे गुस्ल दिया जाएगा और शहीदे फिक़्ही नमाज़े जनाज़ा तो पढ़ी जाएगी मगर उसे गुस्ल नहीं दिया जाएगा वैसे ही खून के साथ दफन कर दिया जाएग और जो चीजें कि अज़ किस्म कफन नहीं होंगे उन्हें उतार लिया जाएगा जैसे ज़िरह, टोपी और हथियार वगैरा और कफन मस्नून में अगर कमी होगी तो उसे पूरा किया जाएगा, पाजामा नहीं उतारा जाएगा और सारे कपड़े उतार कर नए कपड़े नहीं दिये जाएंगे कि मक्-रूह है।

शहीदे हुक्मी यह है कि जो ज़ुल्मन नहीं क़त्त किया गया मगर कियामत के दिन वह शहीदों के गिरोह में उठाया जाएगा।

हदीस शरीफ में है कि सरकारे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि ख़ुदाए तआला की राह में शहीद किये जाने के अलावा सात शहादतें और हैं, जो ताऊन में मरे शहीद है, जो डूब कर मर जाए शहीद

जिब्राईल की मुशक़्क़त

〽️हुज़ूर सल्लअल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने एक मर्तबा जिब्राईल से पूछा- ऐ जिब्राईल! कभी तुझे आसमान से मुशक़्क़त के साथ बड़ी जल्दी और फ़ौरन भी ज़मीन पर उतरना पड़ा है?

जिब्राईल ने जवाब दिया- हाँ या रसूलल्लाहﷺ! चार मर्तबा ऐसा हुआ है के मुझे फ़ीअलफ़ोर बड़ी सरअत के साथ ज़मीन पर उतरना पड़ा।

हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया- वो चार मर्तबा किस-किस मौके पर?

जिब्राईल ने अर्ज़ किया-

1). एक तो जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम को आग में डाला गया तो मैं उस वक़्त अर्शे इलाही के नीचे था। मुझे हुक्म इलाही हुआ की जिब्राईल! ख़लील के आग में पहुँचने से पहले-पहले फ़ौरन मेरे ख़लील के पास पहुँचो। चुनाँचे मैं बड़ी सरअत के साथ फ़ौरन ही हज़रत ख़लील अलैहिस्सलाम के पास पहुंचा।

2). दूसरी बार जब हज़रत इसमाईल अलैहिस्सलाम की गर्दने अतहर पर छुरी रख दी गई तो मुझे हुक्म हुआ की छुरी चलने से पहले ही ज़मीन पर पहुँचो और छुरी को उल्टा दूं। चुनाँचे मैं छुरी के चलने से पहले ही ज़मीन पर पहुँच गया और छुरी को चलने ना दिया।

3). तीसरी मर्तबा जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को भाईयों ने कुँए में गिराया तो मुझे हुक्म हुआ की मैं यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के कुँए की तह तक पहुँचने से पहले-पहले ज़मीन पर पहुँचूं और कुंए से एक पत्थर निकाल कर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को उस पत्थर पर बाआराम बैठा दूं। चुनाँचे मैंने ऐसा ही किया।

4). और चौथी मर्तबा या रसूलल्लाहﷺ जबकी काफ़िरों ने हुज़ूर का दनदाने मुबारक शहीद किया तो मुझे हुक्म इलाही हुआ ﷺ मैं फौरन जमीन पहुँचूं और हुज़ूरﷺ के दनदाने मुबारक का खून मुबारक ज़मीन पर ना गिरने दूं और ज़मीन पर गिरने से पहले ही मैं वो खून मुबारक अपने हाथों पर ले लूं। या रसूलल्लाहﷺ! खुदा ने मुझे फ़रमाया था, जिब्राईल! अगर मेरे मेहबूब का ये खून ज़मीन पर गिर गया तो क़यामत तक ज़मीन में से ना कोई

ख़लील व जिब्राईल

〽️हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को नमरूद ने जब आग में फैंकना चाहा तो जिब्राईल अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और अर्ज़ किया- हुज़ूर! अल्लाह से कहिये वो आपको इस आतिशकदा से बचा ले।

आपने फरमाया- अपने जिस्म के लिए इतनी बुलंद व बाला पाक हस्ती से ये मामूली सा सवाल करूं?

जिब्राईल ने अर्ज़ किया तो अपने दिल के बचाने के लिए उससे कहिये फ़रमाया ये दिल उसी के लिए है वो अपनी चीज़ से जो चाहे सलूक करे।

जिब्राईल ने अर्ज किया- हुज़ूर! इतनी बड़ी तेज़ आग से आप क्यों नहीं डरते? फ़रमाया- ऐ जिब्राईल! ये आग किस ने जलाई? जिब्राईल ने जवाब दिया-नमरूद ने। फ़रमाया और नमरूद के दिल में ये बात किस ने डाली? जिब्राईल ने जवाब दिया- रब्बे जलील ने। ख़लील ने फरमाया

आतिश कदाऐ नमरूद

〽️ नमरूद मलऊन ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से जब मुनाज़रह में शिकस्त खाई तो और तो कुछ ना कर सका, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का जानी दुश्मन बन गया और आपको क़ैद कर लिया और फिर एक बहुत बड़ी चार दीवारी तैयार की और उसमें महीने भर तक बकोशिश किस्म-किस्म की लकड़ियाँ जमा कीं और एक अज़ीम आग जलाई।

जिसकी तपिश से हवा में उड़ने वाले परिन्दे जल जाते थे और एक मुनजनीक़ (गोफ़न ) तैयार करके खड़ी की और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को बाँध कर उसमें रखकर आग में फेंका।

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की ज़बान पर उस वक़्त ये कलमा जारी था- "हसबीयल्लाहू व नीअमल वकील"

इधर नमरूद ने आपको आग में फेंका और इधर अल्लाह ने आग को हुक्म फ़रमाया की ऐ आग! ख़बरदार! हमारे ख़लील को मत जलाना, तू हमारे इब्राहीम पर ठंडी हो जा और सलामती का घर बन जा।

चुनाँचे वो आग हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के लिए बाग व बहार बन गई और नमरूद की सारी कोशिश

ख़लील व नमरूद का मुनाज़रह

〽️हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जब नमरूद को ख़ुदा परस्ती की दअवत दी तो नमरूद और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम में हस्बे जेल मुनाज़रह हुआ।

नमरूदः तुम्हारा रब कौन है? जिसकी पर परसतिश की तुम मुझे दअवत देते हो?

हज़रत ख़लील अलैहिस्सलामः मेरा रब वो है जो ज़िन्दा भी कर देता है और मार भी डालता है।

नमरूदः ये बात तो मेरे अन्दर भी मौजूद है, लो अभी देखो मैं तुझे ज़िन्दा भी करके दिखाता हूँ और मार कर भी। ये कहकर नमरूद ने दो शख़्सों को बुलाया। उनमें से एक शख़्स को क़त्ल कर दिया और एक को छोड़ दिया और कहने लगा, देख लो एक को मैंने मार डाला और एक को गिरफ्तार करके छोड़ दिया, गोया उसे ज़िन्दा कर दिया। नमरूद की ये अहमक़ाना बात देख कर हज़रत ख़लील अलैहिस्सलाम ने एक दूसरी मुनाज़राना गुफ़्तगू फ़रमाई और फ़रमाया-

ख़लील अलैहिस्सलाम: मेरा रब सूरज को मशरिक़ की तरफ़ से लाता है तुझ में अगर ताक़त है तो तू मग़रिब

तीशाऐ ख़लील

〽️हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम जब पैदा हुए तो नमरूद का दौर था और बुत परस्ती का बड़ा ज़ोर था। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम एक दिन उन बुत परस्तों से फरमाने लगे की ये तुम्हारी क्या हरकत है की उन मूर्तियों के आगे झुके रहते हो। ये तो परसतिश के लायक नहीं, परसतिश के लायक़ तो सिर्फ़ एक अल्लाह है।

वो लोग बोले- हमारे तो बाप दादा भी इन्हीं मूर्तियों की पूजा करते चले आए हैं मगर आज तुम एक ऐसे आदमी पैदा हो गए हो जो उनकी पूजा से रोकने लगे हो।

आपने फ़रमाया- तुम और तुम्हारे बाप दादा सब गुमराह हैं। हक़ बात यही है जो मैं कहता हूँ की तुम्हारा और ज़मीन व आसमान सबका रब वो है जिसने उन सब को पैदा फ़रमाया और सुन लो! मैं ख़ुदा की कसम खा कर कहता हूँ कि तुम्हारे इन बुतों को मैं समझ लूंगा।

चुनाँचे एक दिन जब की बुत परस्त अपने सालाना मेले पर बाहर जंगल में गए हुए थे। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम उनके बुतख़ाने में तशरीफ़ ले गए और अपने तीशे से सारे बुत तोड़-फोड़ डाले और जो बड़ा बुत था, उसे ना तोड़ा और अपना तीशा उसके कंधे पर रख दिया, उस ख़याल से की बुत परस्त जब यहाँ आएँ तो अपने बुतों का ये हाल देख कर शायद उस बड़े बुत से पूछे की उन छोटे बुतों को ये कौन तोड़ गया है? और ये तीशा तेरे कंधे पर क्यों रखा है? और उन्हें उनका अज्ज़ ज़ाहिर हो और होश में आएँ की ऐसे आजिज़ खुदा नहीं हो सकते।

चुनाँचे जब वो लोग मेले से वापस आए और अपने बुतख़ाने में पहुँचे तो अपने मअबूदों का ये हाल देखकर की कोई इधर टूटा हुआ पड़ा है, किसी का हाथ नहीं तो किसी की नाक सलामत नहीं। किसी की गर्दन नहीं तो किसी

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम और चार परिन्दे

〽️हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने एक रोज़ समुंद्र के किनारे एक आदमी मरा हुआ देखा। आपने देखा के समुद्र की मछलियाँ उसकी लाश को खा रही हैं और थोड़ी देर के बाद फिर परिन्दे आकर उसकी लाश को खाने लगे फिर आपने देखा के जंगल के कुछ दरिन्दे आए और वो भी उसकी लाश को खाने लगे।

आपने ये मंजर देखा तो आपको शौक़ हुआ की आप मुलाहेज़ा फ़रमाएँ की मुर्दे किस तरह ज़िन्दा किए जाएँगे।

चुनाँचे आपने ख़ुदा से अर्ज़ किया- इलाही! मुझे यकीन है की तू मुर्दों को जिन्दा फरमाएगा और उनके अज्ज़ाऐ दरयाई जानवरों, परिन्दों और दरिन्दों के पेटों से जमा फरमाएगा। लेकिन मैं ये अजीब मंज़र देखने की आरज़ू रखता हूँ।

खुदा ने फ़रमाया- अच्छा ऐ खलील! तुम चार परिन्दे लेकर उन्हें अपने साथ हिला लो ताकी अच्छी तरह उनकी शनाख़्त हो जाए। फिर उन्हें ज़िबह करके उनके अज्ज़ाऐ बाहम मिला जुला कर उनका एक-एक हिस्सा, एक-एक पहाड़ पर रख दो और फिर उनको बुलाओ और देखो वो किस तरह ज़िन्दा होकर तुम्हारे पास दौड़ते हुए आते हैं।

चुनाँचे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मोर, कबूतर, मुर्ग़ और कव्वा, ये चार परिन्दे लिए और उन्हें ज़िबह किया और उनके पर उखाड़े, और उन सब का कीमा करके और आपस में मिला जुला कर उस मजमूऐ के कई हिस्से किए और एक-एक हिस्सा एक-एक पहाड़ पर रख दिया और सर सब के अपने पास महफूज़ रखे और फिर आपने उनसे फ़रमाया- “चले आओ" आपके फ़रमाते ही वो अज्ज़ा उड़े और हर-हर जानवर के अज्ज़ा अलेहदा-अलेहदा होकर अपनी तरतीब से जमा हुए और परिन्दों की शक्लें बनकर अपने पाँऊ से दौड़ते हुए हाज़िर हुए और अपने-अपने सरों से मिलकर बईनही पहले की तरह मुकम्मल होकर उड़ गए।

#(कुरआन करीम, पारा-3, रूकू-3, ख़ज़ायन-उल-इऱफान, सफा-66)


🌹सबक़ ~
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ख़ुदा तआला बड़ी क़ुदरत व ताक़त का मालिक है। कोई डूब कर मर जाए और उसे मछलियाँ खा जाएं या जल

हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम और ख़ुदा की क़ुदरत के करिश्मे

〽️बनी इस्राईल जब ख़ुदा की नाफरमानी में हद से ज्यादा बढ़ गए तो ख़ुदा ने उन पर एक ज़ालिम बादशाह बख़्त नस्र को मुसल्लत कर दिया। जिसने बनी इस्राईल को क़त्ल किया, गिरफ्तार किया और तबाह किया और बैत-उल-मुक़द्दस को बर्बाद व वीरान कर डाला।

हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम एक दिन शहर में तशरीफ़ लाए तो आपने शहर की वीरानी व बर्बादी को देखा, तमाम शहर में फिरे, किसी शख्स को वहाँ ना पाया। शहर की तमाम इमारतों को मुनहदिम देखा। ये मंज़र देख कर आपने बराह तआज्जुब फ़रमाया। अन्नीया यूहियी हाज़ीहिल्लाहू बअदा मौतिहा यअन ऐ अल्लाह! इस शहर की मौत के बाद उसे फिर कैसे ज़िंदा फ़रमाएगा?

आप एक दराज़ गोश पर सवार थे और आपके पास एक बर्तन ख़जूर और एक पियाला अंगूर के रास का था। आपने अपने दराज़गोश को एक दरख्त से बाँधा और उस दरख़्त के नीचे आप सो गए। जब सो गए तो खुदा में उसी हालत में आपकी रूह क़ब्ज़ कर ली और गधा भी मर गया।

इस वाक़ये के सत्तर साल बाद अल्लाह तआला ने शाहाने फ़ारस में से एक बादशाह को मुसल्लत किया और वो अपनी फ़ौजें लेकर बैत-उल-मुक़द्दस पहुँचा और उसको पहले से भी बेहतर तरीके पर आबाद किया और बनी इस्राईल में से जो लोग बाक़ी रहे थे, खुदा तआला उन्हें फिर यहाँ लाया और वो बैत-उल-मुक़द्दस और उसके नवाह में आबाद हुए और उनकी तअदाद बढ़ती रही। उस ज़माना में अल्लाह तआला ने हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम को दुनिया की आँखों से पौशीदा रखा और कोई आपको देख ना सका। जब आपकी वफ़ात को सौ साल गुज़र गए तो अल्लाह ने दोबारह आपको ज़िन्दा किया। पहले आँखों में जान आई। अभी तमाम जिस्म मुर्दा था। वो आपके देखते-देखते ज़िन्दा किया गया। जिस वक़्त आप सोए थे, वो सुबह का वक़्त था और सौ साल के बाद जब आप दोबारह ज़िन्दा किए गए तो ये शाम का वक्त था। खुदा ने पूछा। ऐ उज़ैर! तुम यहाँ कितने ठहरे? आपने अंदाज़े से अर्ज़ किया कि एक दिन या कुछ कम। आपका ख़याल ये हुआ के ये उसी दिन की शाम है जिसकी सुबह को सोए थे।

खुदा ने फ़रमाया- बल्की तुम तो सौ बरस ठहरे हो, अपने खाने और पानी यानी खजूर और अंगूर के रस को देखिये के वैसा ही है इसमें बू तक नहीं आई और अपने गधे को भी ज़रा देखिए। आपने देखा तो वो मरा हुआ और