🌀पोस्ट- 87,   ✅ सच्ची हिकायत
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〽️ जब मुहाजिरीन मक्का मोअज्जमा से हिजरत करके मदीनाए मुनव्वरा में आये तो यहाँ का पानी पसंद न आया जो खारी था।

मदीना मुनव्वरा मे एक शख्स की मिल्क में चश्मा था, जिसका नाम रौम था। वह शख्स अपने चश्मे का पानी किसी कीमत न देता था।

हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने उससे फरमाया कि तुम यह चश्मा मेरे हाथ जन्नत के चश्मे के बदले बेच दो और जन्नत का चश्मा मुझसे ले लो । उसने अर्ज किया: या रसुलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) मेरे और मेरे बाल बच्चो की रोजी इसी से है। मुझमे ताकत नही।

यह खबर हजरत उसमान गनी (रजी अल्लाहु अन्हु) को पहुंची तो आपने 35 हजार दिरहम नगद देकर उस शख्स को खरिद लिया।

फिर हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) की खिदमत मे हाजीर होकर अर्ज किया या रसुलल्लाह! जिस तरह
आप उस शख्स को जन्नत का चश्मा अता फरमा रहे थे अगर यह चश्मा उससे खरीद लुँ तो क्या हुजुर वह जन्नत का चश्मा मुझे देंगे??

आपने फरमाया हाँ दे दुँगा। अर्ज की तो मैने वह चश्मा खरिद लिया है और मुस्लमानो पर मैं उसे वक्फ करता हुँ।

📕»» तबरानी शरीफ अल-अम्न-वल-उला, सफा-166

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ मुहम्मद अरमान ग़ौस

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