🌀पोस्ट- 82,   ✅ सच्ची हिकायत
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〽️ जंगे तबुक के मौके पर हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) मुस्लमानो को अल्लाह की राह में खर्च करने की तरगीब दे रहे थे की हजरत उसमान (रजी अल्लाहु अन्हु) उठे और अर्ज किया या रसुलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) साज व समान समेत एक सौ ऊंट देता हुँ।

हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फिर तरगीब दी तो हजरत उसमान ने अर्ज किया या रसुलल्लाह! साज व समान के साथ दो सौ ऊंट देता हुँ। हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फिर तरगीब दी तो हजरत उसमान ने फिर अर्ज किया हुजुर साज व समान के साथ तीन सौ ऊंट मै देता हुँ। फिर उन तीन सौ ऊंटो के अलावा हजरत उसमान ने एक हजार दिनार भी हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) के सामने पेश कर दिये।

हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने हजरत उसमान की यह सखावत देखी तो हजरत उसमान के पेश किये
गये दिनारो मे अपना हाथ मुबारक डालकर फरमाया उसमान के इस नेक अमल के बाद अब उसे कोई बात नुक्सान न देगी।

📕»» मिश्कात शरिफ, सफा-553


🌹सबक ~
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हजरत उसमान (रजी अल्लाहु अन्हु) बहुत बड़े गनी थे फिर सखावत के धनी भी थे। खुदा और रसुल के इरशाद पर अपना सब कुछ लुटा देने वाले थे।

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ मुहम्मद अरमान ग़ौस

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