🌀पोस्ट- 84, ✅ सच्ची हिकायत ✅
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〽️ स्कंदरिया की एक औरत उम्मे फातिमा मदीना मुनव्वरा में हाजीर हुइ तो उनका पैर जख्मी हो गया। हत्ता की वह चलने से रह गयी। लोग मक्का मोअज्जमा जाने लगे मगर वह वहीं रह गयी।
एक दिन वह किसी तरह रौजए अनवर पर हाजीर हुई। रौजए अनवर की तवाफ करने लगी। तवाफ करते जाती और कहती जाती। या हबीब या रसुलल्लाह! लोग चले गये और मैं रह गयी। हुजुर! या तो मुझे भी वापस भेजीये या फिर अपने पास बुला लिजीये।
यह कह रही थी की तीन अरबी नौजवान मस्जिद में दाखील हुए और कहने लगे की कौन मक्का मोअज्जमा जाना चाहता है।
फातिमा ने जल्दी से कहा : मैं जाना चाहती हुँ। उनमे से एक बोला तो उठो। फातिमा बोली : "मै उठ नही सकती। उसने कहा पैर फैलाओ। तो फातिमा ने अपना सुजा हुआ पैर फैलाया।"
उसका जब सुजा हुआ पैर देखा तो तीनो बोले :- हां! यही वह है, फिर तीनो आगे बढ़े और उम्मे फातिमा को
उठाकर सवारी पर बैठा दिया और मक्का मोअज्जमा पहुंचा दिया।
दर्याफ्त करने पर उनमे से एक नौजवान ने बताया की मुझे हुजुर ख्वाब में हुक्म फरमाया था की उस औरत को मक्का पहुंचा दो। उम्मे फातिमा कहती हैं की मैं बड़े आराम से मक्का पहुंची।
📕»» शवाहिदुल हक सफा-164
🌹सबक ~
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हमारे हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) आज भी हर फरयादी की फरयाद सुनते हैं हर मुश्किल हल फरमा देते हैं। बशर्ते की फरयादी दिल और सच्चे अकीदत से या हबीबी या रसुलल्लाह कहने का भी आदी हो।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ मुहम्मद अरमान ग़ौस
🔴और भी हिंदी हिक़ायत पोस्ट पढ़ने के लिए क्लिक करिये ⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/sacchi-hikaayat.html
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एक दिन वह किसी तरह रौजए अनवर पर हाजीर हुई। रौजए अनवर की तवाफ करने लगी। तवाफ करते जाती और कहती जाती। या हबीब या रसुलल्लाह! लोग चले गये और मैं रह गयी। हुजुर! या तो मुझे भी वापस भेजीये या फिर अपने पास बुला लिजीये।
यह कह रही थी की तीन अरबी नौजवान मस्जिद में दाखील हुए और कहने लगे की कौन मक्का मोअज्जमा जाना चाहता है।
फातिमा ने जल्दी से कहा : मैं जाना चाहती हुँ। उनमे से एक बोला तो उठो। फातिमा बोली : "मै उठ नही सकती। उसने कहा पैर फैलाओ। तो फातिमा ने अपना सुजा हुआ पैर फैलाया।"
उसका जब सुजा हुआ पैर देखा तो तीनो बोले :- हां! यही वह है, फिर तीनो आगे बढ़े और उम्मे फातिमा को
उठाकर सवारी पर बैठा दिया और मक्का मोअज्जमा पहुंचा दिया।
दर्याफ्त करने पर उनमे से एक नौजवान ने बताया की मुझे हुजुर ख्वाब में हुक्म फरमाया था की उस औरत को मक्का पहुंचा दो। उम्मे फातिमा कहती हैं की मैं बड़े आराम से मक्का पहुंची।
📕»» शवाहिदुल हक सफा-164
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हमारे हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) आज भी हर फरयादी की फरयाद सुनते हैं हर मुश्किल हल फरमा देते हैं। बशर्ते की फरयादी दिल और सच्चे अकीदत से या हबीबी या रसुलल्लाह कहने का भी आदी हो।
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