◆ रिवायतें तो आपके बारे में बेशुमार हैं मगर आपकी विलादत और हालात पर
ज़्यादा मालूमात किताबों में दर्ज नहीं है । एक रिवायत के मुताबिक आपका नाम
बलिया इब्ने मल्कान कुन्नियत अबुल अब्बास और लक़ब खिज़्र है । हज़रत ज़ुलकरनैन
साम बिन नूह अलैहिस्सलाम की औलाद हैं और आप हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर
ईमान लायें यानि ताईद की । आपका लक़ब खिज़्र होने की वजह ये बताई जाती है कि
आप जहां बैठ जाते वहां सब्ज़ा उग जाता इसलिए आपको खिज़्र यानि सब्ज़ कहा जाने
लगा । आपके अंगूठे में हड्डी नहीं है और उनका अंगूठा मिस्ल बाकी उंगलियों
के बराबर है और मशहूर है कि एक मुसलमान से उसकी पूरी ज़िन्दगी में आप एक
मर्तबा मुसाफा ज़रूर करते हैं । आपने अपने बाद के तक़रीबन हर नबी व ज़्यादातर
औलिया से मुलाक़ात की है ।
📕 रिजालुल ग़ैब, सफह 134-141
★ आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि चार नबी अब भी ज़िंदा हैं हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ये दोनों हज़रात आसमान पर हैं और हज़रत इल्यास अलैहिस्सलाम खुश्की में भटक जाने वालों को राह दिखाने के काम में और हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम पानी में भटक जाने वालों को राह दिखाने की खिदमत से मुअल्लक़ हैं । हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से आपकी मुलाकात साबित है ।
📕 अलमलफूज़, हिस्सा 4, सफह 40
आपका नाम तो क़ुर्आन में ज़ाहिरन नहीं लिखा है मगर आपके मुताल्लिक़ इशारा ज़रूर है । सूरह कहफ आयत 65 के बाद आपके 2 सफर का तज़किरा है पहला तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से मुलाकात और दूसरा हज़रत ज़ुलकरनैन के साथ आबे हयात का सफर करना और उसे पीकर हमेशा की ज़िन्दगी पा लेना तो चलिये इसी सफर से शुरुआत करते हैं ।
अब तक 4 ऐसे बादशाह गुज़रे हैं जिन्होंने पूरी दुनिया पर हुक़ूमत की है दो मोमिन, हज़रत सिकंदर ज़ुलरनैकन और हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम और दो काफिर, नमरूद और बख्ते नस्र, और अनक़रीब पांचवे बादशाह हज़रत इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु होंगे जो पूरी दुनिया पर हुक़ूमत करेंगे । जिस सिकन्दर का किस्सा हम लोगों ने दुनियावी इतिहास की किताबों मे पढ़ा है वो सिकन्दर युनानी था जो कि काफिरो मुशरिक था मगर सिकन्दर ज़ुलरनैकन दूसरे हैं आप सालेह मोमिन थे ।
📕 अलइतक़ान, जिल्द 2, सफह 178
■ हज़रत सिकंदर ज़ुलकरनैन हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ज़माने के थे और आप हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर ईमान लाये और उनके साथ तवाफे काबा भी किया । चुंकि हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम भी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िरी देते थे, जहां ज़ुलकरनैन की हज़रते खिज़्र अलैहिस्सलाम से मुलाकात हुई और उनकी शख्सियत इल्मो अखलाक़ को देखकर हज़रते ज़ुलकरनैन ने उन्हें अपना खास और वज़ीर बना लिया । हज़रत सिकन्दर ज़ुलरनैकन ने किताबों में पढ़ा कि औलादे साम में से एक शख्स आबे हयात तक पहुंचेगा और उसे पा लेगा जिससे कि उसे मौत ना आयेगी । ये पढ़कर आपने एक अज़ीम लश्कर तैयार किया जो कि मग़रिबो शिमाल की जानिब रवाना हुआ । आपके साथ आपके वज़ीर हज़रते ख़िज़्र अलैहिस्सलाम भी चले। पानी का सफर खत्म होते होते वो एक ऐसी जगह पहुंचे जहां दलदल के सिवा कुछ ना था, कश्तियां भी ना चल सकती थी मगर अज़्म के मज़बूत हज़रत ज़ुलकरनैन ने उन कीचड़ों पर भी कश्तियां चलवा दी । वहां एक जगह उन्हें सूरज कीचड में डूबता हुआ मालूम हुआ वहां से निकलकर वो एक ऐसी वादी में पहुंचे जहां एक क़ौम आबाद थी मगर वहां के लोग तहज़ीब और तमद्दुन से बिल्कुल खाली थे, जो जानवरों का कच्चा गोश्त खाते उन्ही के खालों का कपड़ा पहनते, उनका ना तो कोई दीन था और ना मज़हब, आपने उन लोगों को दीने इस्लाम की दावत पेश की जिसे उन लोगों ने क़ुबूल फरमाया और फिर उन लोगों ने याजूज माजूज की शिकायत पेश की, कि पहाड़ के पीछे से एक क़ौम हमला करती है जो हमारा सब कुछ बर्बाद कर देती है । आप हमें उस ज़ालिम क़ौम से बचायें, तब हज़रत ज़ुलकरनैन ने दो पहाड़ों के दरमियान एक दीवार क़ायम फरमाई वो दीवार तक़रीबन 160 किलोमीटर लम्बी 150 फिट चौड़ी और 600 फिट ऊंची है, इसको सिद्दे सिकंदरी कहा जाता है इसको इस तरह बनाया गया कि पहले पानी की तह तक बुनियाद खोदी गई और तह में पत्थर, पिघलाये हुए तांबे में जमाये गये, फिर लोहे की तख्ती चारों तरफ लगाकर उसके अन्दर लकड़ी और कोयला भरा गया नीचे आग लगाकर ऊपर से पिघला हुआ तांबा उसके ज़र्रे ज़र्रे में पहुंचाया गया इस तरह हज़रत ज़ुलकरनैन सिद्दे सिकंदरी बनाकर आबे हयात की तलाश में
फिर निकल पड़ते हैं ( *ये वही दीवार है जिसे याजूज माजूज रोज़ तोड़ते हैं, याजूज माजूज की पूरी तफ्सील आसारे क़यामत की पोस्ट में आयेगी* ) और अब उनके लश्कर का रुख वादिये ज़ुलमात की तरफ हो गया वादिये ज़ुलमात को पार करके उस जगह पहुंचे जहां सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था । उन अंधेरों में ये काफिला कई दिनों तक भटकता रहा और सारा लश्कर तितर बितर हो गया । हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम को एक जगह प्यास लगी तो आप एक चश्मे पर पहुंचे वहीं गुस्ल किया वुज़ू किया खूब सैराब होकर पानी पिया यही चश्मा आबे हयात था । जिसे खिज़्र अलैहिस्सलाम ने तो पा लिया मगर किसी और के मुक़द्दर में ना था सब वहां से मायूस लौटे और आखिर में हज़रत ज़ुलकरनैन को शहरे बाबुल में क़ज़ा आई ।
📕 पारा 16, सूरह कहफ, आयत 83-99
📕 पारा 17, सूरह अम्बिया, आयत 96
📕 तफसीरे खज़ाएनुल इरफान, सफह 362
📕 रिजालुल ग़ैब, सफह 148--153
📕 क्या आप जानते हैं, सफह 188
📕 तफसीरे खाज़िन, जिल्द 4, सफह 204
📕 ज़लज़लातुस साअत, सफह 12
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ नौशाद अहमद ज़ेब रज़वी (ज़ेब न्यूज़)
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📕 रिजालुल ग़ैब, सफह 134-141
★ आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि चार नबी अब भी ज़िंदा हैं हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ये दोनों हज़रात आसमान पर हैं और हज़रत इल्यास अलैहिस्सलाम खुश्की में भटक जाने वालों को राह दिखाने के काम में और हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम पानी में भटक जाने वालों को राह दिखाने की खिदमत से मुअल्लक़ हैं । हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से आपकी मुलाकात साबित है ।
📕 अलमलफूज़, हिस्सा 4, सफह 40
आपका नाम तो क़ुर्आन में ज़ाहिरन नहीं लिखा है मगर आपके मुताल्लिक़ इशारा ज़रूर है । सूरह कहफ आयत 65 के बाद आपके 2 सफर का तज़किरा है पहला तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से मुलाकात और दूसरा हज़रत ज़ुलकरनैन के साथ आबे हयात का सफर करना और उसे पीकर हमेशा की ज़िन्दगी पा लेना तो चलिये इसी सफर से शुरुआत करते हैं ।
अब तक 4 ऐसे बादशाह गुज़रे हैं जिन्होंने पूरी दुनिया पर हुक़ूमत की है दो मोमिन, हज़रत सिकंदर ज़ुलरनैकन और हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम और दो काफिर, नमरूद और बख्ते नस्र, और अनक़रीब पांचवे बादशाह हज़रत इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु होंगे जो पूरी दुनिया पर हुक़ूमत करेंगे । जिस सिकन्दर का किस्सा हम लोगों ने दुनियावी इतिहास की किताबों मे पढ़ा है वो सिकन्दर युनानी था जो कि काफिरो मुशरिक था मगर सिकन्दर ज़ुलरनैकन दूसरे हैं आप सालेह मोमिन थे ।
📕 अलइतक़ान, जिल्द 2, सफह 178
■ हज़रत सिकंदर ज़ुलकरनैन हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ज़माने के थे और आप हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर ईमान लाये और उनके साथ तवाफे काबा भी किया । चुंकि हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम भी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िरी देते थे, जहां ज़ुलकरनैन की हज़रते खिज़्र अलैहिस्सलाम से मुलाकात हुई और उनकी शख्सियत इल्मो अखलाक़ को देखकर हज़रते ज़ुलकरनैन ने उन्हें अपना खास और वज़ीर बना लिया । हज़रत सिकन्दर ज़ुलरनैकन ने किताबों में पढ़ा कि औलादे साम में से एक शख्स आबे हयात तक पहुंचेगा और उसे पा लेगा जिससे कि उसे मौत ना आयेगी । ये पढ़कर आपने एक अज़ीम लश्कर तैयार किया जो कि मग़रिबो शिमाल की जानिब रवाना हुआ । आपके साथ आपके वज़ीर हज़रते ख़िज़्र अलैहिस्सलाम भी चले। पानी का सफर खत्म होते होते वो एक ऐसी जगह पहुंचे जहां दलदल के सिवा कुछ ना था, कश्तियां भी ना चल सकती थी मगर अज़्म के मज़बूत हज़रत ज़ुलकरनैन ने उन कीचड़ों पर भी कश्तियां चलवा दी । वहां एक जगह उन्हें सूरज कीचड में डूबता हुआ मालूम हुआ वहां से निकलकर वो एक ऐसी वादी में पहुंचे जहां एक क़ौम आबाद थी मगर वहां के लोग तहज़ीब और तमद्दुन से बिल्कुल खाली थे, जो जानवरों का कच्चा गोश्त खाते उन्ही के खालों का कपड़ा पहनते, उनका ना तो कोई दीन था और ना मज़हब, आपने उन लोगों को दीने इस्लाम की दावत पेश की जिसे उन लोगों ने क़ुबूल फरमाया और फिर उन लोगों ने याजूज माजूज की शिकायत पेश की, कि पहाड़ के पीछे से एक क़ौम हमला करती है जो हमारा सब कुछ बर्बाद कर देती है । आप हमें उस ज़ालिम क़ौम से बचायें, तब हज़रत ज़ुलकरनैन ने दो पहाड़ों के दरमियान एक दीवार क़ायम फरमाई वो दीवार तक़रीबन 160 किलोमीटर लम्बी 150 फिट चौड़ी और 600 फिट ऊंची है, इसको सिद्दे सिकंदरी कहा जाता है इसको इस तरह बनाया गया कि पहले पानी की तह तक बुनियाद खोदी गई और तह में पत्थर, पिघलाये हुए तांबे में जमाये गये, फिर लोहे की तख्ती चारों तरफ लगाकर उसके अन्दर लकड़ी और कोयला भरा गया नीचे आग लगाकर ऊपर से पिघला हुआ तांबा उसके ज़र्रे ज़र्रे में पहुंचाया गया इस तरह हज़रत ज़ुलकरनैन सिद्दे सिकंदरी बनाकर आबे हयात की तलाश में
फिर निकल पड़ते हैं ( *ये वही दीवार है जिसे याजूज माजूज रोज़ तोड़ते हैं, याजूज माजूज की पूरी तफ्सील आसारे क़यामत की पोस्ट में आयेगी* ) और अब उनके लश्कर का रुख वादिये ज़ुलमात की तरफ हो गया वादिये ज़ुलमात को पार करके उस जगह पहुंचे जहां सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था । उन अंधेरों में ये काफिला कई दिनों तक भटकता रहा और सारा लश्कर तितर बितर हो गया । हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम को एक जगह प्यास लगी तो आप एक चश्मे पर पहुंचे वहीं गुस्ल किया वुज़ू किया खूब सैराब होकर पानी पिया यही चश्मा आबे हयात था । जिसे खिज़्र अलैहिस्सलाम ने तो पा लिया मगर किसी और के मुक़द्दर में ना था सब वहां से मायूस लौटे और आखिर में हज़रत ज़ुलकरनैन को शहरे बाबुल में क़ज़ा आई ।
📕 पारा 16, सूरह कहफ, आयत 83-99
📕 पारा 17, सूरह अम्बिया, आयत 96
📕 तफसीरे खज़ाएनुल इरफान, सफह 362
📕 रिजालुल ग़ैब, सफह 148--153
📕 क्या आप जानते हैं, सफह 188
📕 तफसीरे खाज़िन, जिल्द 4, सफह 204
📕 ज़लज़लातुस साअत, सफह 12
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ नौशाद अहमद ज़ेब रज़वी (ज़ेब न्यूज़)
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