577 हिजरी मुल्के शाम की बात है उस वक़्त वहां के बादशाह सुल्ताने आदिल हज़रत नूर उद्दीन जंगी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि थे, एक रात आप तहज्जुद की नमाज़ पढ़कर सो रहे थे अचानक एक ही रात में 3 बार ये ख्वाब देखा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम आपको 2 लोगों की सूरत दिखाकर फरमा रहे हैं कि ऐ नूर उद्दीन इन दोनों को मुझसे जुदा करो ये ख्वाब देखकर बादशाह बहुत बेचैन हुए और अपने आलिम वज़ीर जमाल उद्दीन मूसली से इसकी ताबीर पूछी तो वो फरमाते हैं कि ज़रूर मदीना तय्यबह में कोई बड़ा हादसा हुआ है या होने वाला है लिहाज़ा बिना देर किये हमें वहां पहुंचना चाहिये, बादशाह ने सिर्फ अपने खास 20 लोगों के साथ कसीर दौलत लेकर मदीना का सफर शुरू किया और 16 दिन के बाद मदीना पहुंचे, मस्जिदे नब्वी शरीफ में 2 रकात नफ्ल शुक्राना अदा की और अपने वज़ीर के ज़रिये ये ऐलान करवाया कि बादशाह यहां ज़ियारते नब्वी के लिए हाज़िर हुए हैं और तमाम लोगों को नज़राना पेश करना चाहते हैं इसलिए तमाम अहले मदीना से गुज़ारिश है कि वो आकर हदिया क़ुबूल करें, ये ऐलान सुनकर लोगों का हुजूम लग गया और सब आकर नज़राना लेते रहे और बादशाह सबको बगौर देखते रहे मगर वो 2 शक्लों वाले नहीं दिखे और तमाम लोग जा चुके थे, बादशाह ने वहां के सरदार से पूछा कि क्या अब भी कोई बचा रह गया है तो उन्होंने बताया कि यहां का रहने वाला तो कोई नहीं बचा हैं मगर 2 लोग जो कि बहुत ही मुत्तक़ी व परहेज़गार हैं हमेशा नमाज़ व अज़कार में ही लगे रहते हैं और खुद बहुत मालदार हैं कि अक्सर गरीबों की मदद करते रहते हैं वही दोनों नहीं आये हैं, बादशाह ने उन दोनों को भी तलब फरमाया जब वो दोनो आये तो बादशाह की आंखें खुली की खुली रह गई क्योंकि ये दोनों वही ख्वाब वाले शख्स थे ।

बादशाह उन दोनों को लेकर उनके कमरे तक पहुंचे जो कि रौज़-ए-अनवर से कुछ ही दूरी पर था जब अंदर जाकर देखा तो वहां दरहमो दीनार के ढेर लगे हुए थे, बादशाह ने पूछ-ताछ की मगर कोई सुराग ना मिला वो यही कहते रहे कि हमें आपके नज़राने की ज़रूरत ना थी इसलिए हाज़िर नहीं हुए, सिपाहियों ने पूरे घर का मुआयना कर लिया मगर कुछ हाथ ना लगा तब बादशाह ने ज़मीन से कालीन हटाने को कहा तो वहां एक सुरंग नज़र आयी अब बादशाह ने उन दोनों को कोड़े लगवाने शुरू कर दिए तो उन लोगों ने ये राज़ खोला कि हम रोम की ईसाई हैं और हमें यहां हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की लाश मुबारक को लाने के लिए भेजा गया था क्योंकि मुसलमानों की असली ताक़त उन्हीं से है तो हम उनके जस्दे मुबारक को ही यहां से हटा देते, हम रात भर सुरंग के ज़रिये मिटटी निकालते और सुबह वो मिटटी थैलों में भरकर जन्नतुल बक़ीअ में फेंक आते थे अब शायद एक या दो दिन का काम ही रह गया था कि हम बिलकुल रौज़-ए-अनवर तक पहुंच गए थे मगर आप आये और हमारी गिरफ्तारी हो गयी, बादशाह ने उन दोनों को क़त्ल करवा दिया और रौज़-ए-अनवर की गहरी बुनियाद खुदवाकर उसमें पिघला हुआ शीशा भरवा दिया कि आईंदा किसी नापाक के दिमाग में भी यहां नक़ब लगाने का ख्याल ना आये, और जब तक ये सारा काम होता रहा बादशाह सलामत वही खड़े रोते रहे और यही कहते रहे कि मैं अपनी किस्मत पर किस क़दर नाज़ करूं कि मेरे सरकार सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पूरी दुनिया में मुझे इस काम के लिए चुना और अपना दीदार कराया ।

📕 रूहानी हिकायत, जिल्द 2, सफह 11


दुनिया के तमाम धरम वाले ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि मुसलमानो का मरकज़ मदीना है और उनकी ताक़त हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ज़ाते मुक़द्दसा, इसीलिए कुछ जाहिल अक्सर मुसलमानों को कमज़ोर करने के लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ज़ाते बाबरकात पर हमला करते रहते हैं मगर वो ये नहीं जानते कि इन सब बातों से मुसलमान कमज़ोर नहीं होता बल्कि अपने नबी पर जानो माल क़ुर्बान करने का उसका जज़्बा और बुलंद हो जाता है, यहां एक ऐतराज़ को दफअ करता चलूं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तो मालिको मुख्तार हैं तो क्यों उन्होंने खुद अपने आप को ना बचा लिया तो इसका जवाब ये है कि बेशक वो मालिको मुख्तार हैं वो चाहें तो आन की आन में कायनात को पलट कर रख दें मगर वो खुद ऐसा करते तो किसी को पता ना चलता और वो दोनों मर खपकर कहीं पड़े रह जाते इसलिए किसी के ज़रिये उन लोगों को सज़ा दिलवाकर आईन्दा आने वाले लोगों को आगाह भी कर दिया और मुसलमानो की अज़मतो बुलन्दी का मरकज़ भी तय फरमा दिया ।


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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ नौशाद अहमद ज़ेब रज़वी (ज़ेब न्यूज़)

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