■ फिर तीनों एक बस्ती में पहुंचे जहां किसी ने भी इनकी मेहमान नवाज़ी नहीं की दिन भर भूखे प्यासे पूरे गांव में चक्कर काटते रहे, थक हारकर शाम को बस्ती से चलने लगे जब गांव के बाहर पहुंचे तो हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम ने देखा कि एक दीवार गिरी जाती है आप फौरन वहां पहुंचे और पूरी मेहनत से गिरती हुई दीवार की मरम्मत की उसे सीधी की और कोई उजरत भी नहीं ली, इस पर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फिर से बोले कि जिस बस्ती वालों ने हमारे लिए कुछ भी नहीं किया आपने युंही बग़ैर उजरत के उनकी दीवार सही कर दी कम से कम उजरत तो ले लेते, अब हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि तुम्हारा उज़्र पूरा हो चुका अब तुम हमारे साथ नहीं रह सकते मगर जाते जाते उन तीनों के बातिनी हालात भी सुनते जाओ ।
पहली वो जो कश्ती मैंने तोड़ी थी, तो वहां का बादशाह बहुत ही ज़ालिम है सभी कश्ती वालों की नई कश्तियां छीन कर अपने खज़ाने में जमा कर लेता है, अगर मैं उस गरीब की कश्ती ना तोड़ता तो उसकी कश्ती भी उससे छिन जाती और उस पर रिज़्क़ की क़िल्लत आ जाती लिहाज़ा जो एहसान उसने हम पर किया था बग़ैर उजरत के दरिया को पार कराने का उसी एहसान का ये बदला था कि कश्ती तो फिर से दुरुस्त कर ही लेगा ।

दूसरा वो नाबालिग़ बच्चा जिसे मैंने क़त्ल किया उसके मां-बाप मोमिन थे और उसको बड़ा होकर काफिर होना था तो औलाद की मुहब्बत में उसके मां-बाप का ईमान खतरे में पड़ जाता लिहाज़ा उनका ईमान बचाने के लिए मैंने उसे क़त्ल किया और बचपन में चुंकि वो खुद अब तक वो खुद भी काफिर नहीं था लिहाज़ा उस पर भी एहसान किया।

और तीसरी ये दीवार जो मैंने दुरुस्त की तो ये घर दो यतीम बच्चों का है इस दीवार के नीचे उन बच्चों के बाप ने जो कि नेक आदमी था उसने इनके लिए कुछ रुपया पैसा छोड़ा है अगर ये दीवार गिर जाती तो वो खज़ाना खुल जाता और बस्ती वाले सब लूटकर ले जाते अब जब बच्चे बड़े हो जायेंगे और अपना घर मरम्मत करायेंगे तो उनका खज़ाना उनको मिल जायेगा, फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम वहां से वापस लौट आये ।

📕 पारा 15,सूरह कहफ,आयत 60-82
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 331


वैसे तो ये पूरा वाक़िया ही क़ुर्आन में दर्ज है मगर इसके आखिरी के जुमलों पर कुछ तवज्जोह दिलाना चाहता हूं, रब तआला फरमाता है ~

कंज़ुल ईमान - और उनका बाप नेक आदमी था ।

📕 पारा 16, सूरह कहफ, आयत 82


तफसीर - उन दोनो बच्चों का नाम अदरम और सुरैन था और उनके बाप का नाम कासिख था और ये शख्स
नेक परहेज़गार था, रिवायत में आता है कि अल्लाह तआला अपने बन्दे की नेकी के सबब उसकी औलाद को और उसकी औलाद की औलाद को और उसके कुनबे वालों को और उसके मुहल्ले वालों को अपनी हिफाज़त में रखता है ।

📕 खज़ाएनुल इरफान, सफह 361
📕 रूहुल बयान, पारा 16, सफह 477


एक तरफ तो क़ुर्आन और हदीस में ये लिखा है कि बाप की नेकियां औलाद के काम आती हैं मगर वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों का हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बारे में ये कहना है कि "हुज़ूर तो अपनी बेटी के भी काम नहीं आ सकते तो वो अपने उम्मतियों को किस तरह बचायेंगे माज़ अल्लाह" तो उन कमज़र्फों से सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि ये बात तुम अपने और अपने बाप दादा के लिए कह सकते हो कि मेरे आक़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तुम्हारे और तुम्हारे बाप दादा के काम नहीं आयेंगे, और काम नहीं आयेंगे से मुराद ये नहीं कि वो काम नहीं आयेंगे बल्कि ये कि तुम्हारी औकात उनसे मदद लेने की नहीं रहेगी लिहाज़ा वो तुम्हारे किसी काम नहीं आयेंगे, मगर हम तो उनके ग़ुलाम हैं उनके उम्मती हैं उनके बन्दे हैं हमारा तो हर काम उन्ही से बनता है और उन्हीं से बनेगा यहां भी और वहां भी इन शा अल्लाह तआला लिहाज़ा वो हमारे काम आयेंगे आयेंगे आयेंगे, बाकी की तफसील "शफाअत" की पोस्ट में मुलाहज़ा करें ।

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ नौशाद अहमद ज़ेब रज़वी (ज़ेब न्यूज़)

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