🌀 पोस्ट- 8 | ✅ सच्ची हिकायत ✅
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〽️ एक मर्दे सालेह को एक काफिर बादशाह ने गिरफ्तार कर लिया, वह फरमाते हैं की उस बादशाह का एक बहुत बड़ा जहाज दरिया मे फंस गया था जो बड़ी कोशीश के बावजूद दरिया से निकल न सका।
आखीर एक दिन जिस कदर कैदी थे उनको बुलाया गया। ताकी वह सब मिलकर उस जहाज को निकाले । चुनाँचे उन कैदीयो ने जिनकी तादाद तीन हजार थी, मिलकर कोशीश की।
फिर भी वह जहाज निकल न सका। फिर ऊन कैदीयो ने बादशाह से कहा की जिस कदर मुस्लमान कैदी हो उनको कहिये वह यह जहाज को निकाल सकेंगे। लेकीन शर्त यह है की वह जो भी नारा लगाये उन्हे रोका न जाए। बादशाह ने यह बात तस्लिम कर ली। सब मुस्लमान कैदीयो को रिहा करके कहा की तुम अपनी मर्जी के मुताबीक जो नारा लगाना चाहो लगाओ और जहाज को निकालो ।
वह मर्दे सालेह फरमाते हैं कि हम सब मुस्लमान कैदीयो की तादाद चार सौ थी। हमने मिलकर नारा-ए-रिसालत लगाया और एक अवाज मे या रसुलल्लाह ﷺ कहा और जहाज को एक धक्का लगाया तो वह जहाज अपनी
जगह से हिल गया। फिर हमने नारा लगाते हुए उसे रूकने नही दिया यहां तक उसे बाहर निकाल दिया।
📜 शवाहिदुल हक, सफा-163
🌹 सबक ~
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नारा-ए-रिसालत मुस्लमानो का महबुब नारा है। मुस्लमानो ने इसे हमेशा अपनाए रखा। इस नामे पाक से बड़े बड़े मुश्किल काम हल हो जाते है। फिर जो शख्स इस नारे की मुखालफत करे किस कदर बेखबर है।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ मुहम्मद अरमान ग़ौस
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