🌀 पोस्ट- 35  |  ✅ सच्ची हिकायत
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〽️ एक दिन सिद्दिके अकबर (रजी अल्लाहु अन्हु) हजरत मौला अली की तरफ देखकर मुस्कुराए। मौला अली (रजी अल्लाहु अन्हु) ने दर्याफ्त किया: मुझे देखकर आप मुस्कुराए क्यों??

सिद्दिके अकबर (रजी अल्लाहु अन्हु) ने फरमाया ऐ अली! मुबारक हो मुझसे हुजूर ﷺ ने फरमाया कि जब तक अली किसी को पुल-सिरात से गुजरने की छुट्टी न देगा तब तक वह पुल-सिरात से गुजर ना सकेगा। इस पर हजरत अली (रजी अल्लाहु अन्हु) भी मुस्कुरा पड़े और फरमाया : ऐ खलीफतुल मुस्लिमीन! आपको भी मुबारक हो। मुझसे हुजूर ﷺ ने फरमाया : की ऐ अली! तुम उस शख्स को पुल-सिरात की राहदारी (परवाना) हरगीज न देना जिसके दिल मे अबु-बक्र की अदावत हो बल्कि उसी को देना जो अबु बक्र का मुहीब (मुहब्बत करने वाला) हो।

📜 नुजहतुल मजालिस, जिल्द-2, सफा-306


🌹 सबक ~
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हजरत अली (रजी अल्लाहु अन्हु) की मुहब्बत व गुलामी से कुछ फायदा जब ही हासील हो सकता है, जबकी
सिद्दिके अकबर (रजी अल्लाहु अन्हु) की मुहब्बत दिल मे हो वरना बराए नाम मुहब्बते अली किसी काम की नही।

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ मुहम्मद अरमान ग़ौस

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