◼️ आपका सिलसिलाये नस्ब इस तरह है -उस्मान
बिन अफ्फान बिन अबुल आस बिन उमैय्या बिन अब्दे शम्श बिन अब्दे मुनाफ,
अब्दे मुनाफ पर आपका नस्ब हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से जा मिलता
है, और आपकी वालिदा का नाम उर्वी बिन्त करीज़ बिन रबिया बिन हबीब बिन अब्दे
शम्श है ये हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की फूफी ज़ाद बहन थी ।
◻️ आपकी विलादत आम्मुल फील यानि हाथी वाले वाक़िये के 6 साल बाद हुई ।
◼️ आप हज़रत अबु बक्र व हज़रत अली व हज़रत ज़ैद बिन हारिसा के बाद ईमान लाये और आप चौथे मुसलमान थे ।
◻️ आपका पहला निकाह हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बेटी हज़रते रुकय्या रज़ियल्लाहु तआला अन्हा के साथ हिजरत से क़ब्ल हुआ।
आप हर जंग में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ ही रहे मगर जंगे बद्र में शरीक ना हो सके क्योंकि उस वक़्त हज़रते रुकय्या की तबियत बहुत ज़्यादा अलील थी और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन्हें उनकी देखभाल करने के लिए रोक दिया था, पर इसी बीमारी में ही 3 हिजरी में आपका इंतेक़ाल हो गया जिस वक़्त क़ासिद बद्र के फतह की खुश खबरी लेकर आया उस वक़्त आप हज़रते रुकय्या को दफ़्न फरमा रहे थे, चुंकि माले गनीमत में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने बाक़ी गाज़ियों की तरह आपका भी हिस्सा लगाया इसलिए आपको भी ग़ज़्वये बद्र में शुमार किया जाता है,
उसके बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपनी दूसरी बेटी हज़रते उम्मे कुलसूम रज़ियल्लाहु तआला अन्हा का निकाह आपसे कर दिया, हज़रते रुकय्या से एक औलाद हज़रत अब्दुल्लाह पैदा हुए मगर वो भी 6 साल की उम्र में ही इंतेकाल फरमा गए और हज़रते उम्मे कुलसुम से आपको कोई औलाद न हुई और शअबान 9 हिज्री में हज़रते उम्मे कुलसूम भी वफात पा गईं ।
◼️ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तक कोई ऐसा शख्स नहीं हुआ जिसके निकाह में किसी नबी की 2 बेटियां आयी हो सिवाये हज़रते उस्मान ग़नी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के इसीलिए आपका लक़ब ज़ुन्नुरैन हुआ, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अगर मेरी 40 बेटियां होती और वो सब एक के बाद एक इंतेक़ाल करती जाती तो मैं एक के बाद
एक उन्हें उस्मान के निकाह में देता जाता ।
◻️ आप बहुत ही शर्मीले और हयादार थे और आपके फज़ायल में ये बात क़ाबिले ज़िक्र है कि जब भी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मिलने जाते तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अपने कपड़े वगैरह दुरुस्त कर लिया करते थे और फरमाते कि मैं उस शख्स से क्यों ना हया करूं जिससे फरिश्ते भी हया करते हैं ।
◼️ आप तीसरे खलीफा हुए और खिलाफत की मुद्दत कुछ कमो बेश 12 साल रही इस दौरान इस्लामी सल्तनत अरब से निकलकर हिंदुस्तान, अफगानिस्तान, रूस, लीबिया, रोम और भी बहुत से मुल्कों तक पहुंच गई ।
◻️ क़ुर्आन को जमा करने का शर्फ आपको ही हासिल हुआ और आप ही वो पहले शख्स हैं जिन्होंने 1 किरात में क़ुर्आन खत्म की ।
◼️ आपसे 146 हदीसें मरवी हैं ।
◻️ आप 18 ज़िल हिज्जा बरौज़ जुमा 35 हिज्री को शहीद हुए, आपके क़ातिल का नाम अस्वद तजीबी था, आपकी नमाज़े जनाज़ा हज़रते ज़ुबैर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने पढ़ाई और आपको जन्नतुल बक़ीअ में दफ्न किया गया । ( आपकी शहादत का वाक़िया काफी लम्बा है आईन्दा कभी बयान करूंगा इन शा अल्लाह तआला )
📕 तारीखुल खुल्फा, सफह 231-252
💫 करामत - हज़रत उस्मान ग़नी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के पास एक शख्स हाज़िर हुआ जो रास्ते में एक औरत को बद नज़री से देखकर आया था, जब वो आपके सामने आया तो आप जलाल में फरमाते हैं कि तुम लोग इस हालत में मेरे सामने आते हो कि तुम्हारी आंखों ने ज़िना किया होता है तो वो कहने लगा कि क्या आप पर भी वही आती है जो आपको इल्म हो गया, तो आप फरमाते हैं कि बेशक मेरे पास वही नहीं आती मगर अल्लाह का नूर मेरे क़ल्ब में मौजूद है जिससे मैं लोगों का हाल और दिलों के खयालात मालूम कर लेता हूं ।
📕 करामाते सहाबा, सफह 59
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ नौशाद अहमद ज़ेब रज़वी (ज़ेब न्यूज़)
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◻️ आपकी विलादत आम्मुल फील यानि हाथी वाले वाक़िये के 6 साल बाद हुई ।
◼️ आप हज़रत अबु बक्र व हज़रत अली व हज़रत ज़ैद बिन हारिसा के बाद ईमान लाये और आप चौथे मुसलमान थे ।
◻️ आपका पहला निकाह हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बेटी हज़रते रुकय्या रज़ियल्लाहु तआला अन्हा के साथ हिजरत से क़ब्ल हुआ।
आप हर जंग में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ ही रहे मगर जंगे बद्र में शरीक ना हो सके क्योंकि उस वक़्त हज़रते रुकय्या की तबियत बहुत ज़्यादा अलील थी और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन्हें उनकी देखभाल करने के लिए रोक दिया था, पर इसी बीमारी में ही 3 हिजरी में आपका इंतेक़ाल हो गया जिस वक़्त क़ासिद बद्र के फतह की खुश खबरी लेकर आया उस वक़्त आप हज़रते रुकय्या को दफ़्न फरमा रहे थे, चुंकि माले गनीमत में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने बाक़ी गाज़ियों की तरह आपका भी हिस्सा लगाया इसलिए आपको भी ग़ज़्वये बद्र में शुमार किया जाता है,
उसके बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपनी दूसरी बेटी हज़रते उम्मे कुलसूम रज़ियल्लाहु तआला अन्हा का निकाह आपसे कर दिया, हज़रते रुकय्या से एक औलाद हज़रत अब्दुल्लाह पैदा हुए मगर वो भी 6 साल की उम्र में ही इंतेकाल फरमा गए और हज़रते उम्मे कुलसुम से आपको कोई औलाद न हुई और शअबान 9 हिज्री में हज़रते उम्मे कुलसूम भी वफात पा गईं ।
◼️ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तक कोई ऐसा शख्स नहीं हुआ जिसके निकाह में किसी नबी की 2 बेटियां आयी हो सिवाये हज़रते उस्मान ग़नी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के इसीलिए आपका लक़ब ज़ुन्नुरैन हुआ, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अगर मेरी 40 बेटियां होती और वो सब एक के बाद एक इंतेक़ाल करती जाती तो मैं एक के बाद
एक उन्हें उस्मान के निकाह में देता जाता ।
◻️ आप बहुत ही शर्मीले और हयादार थे और आपके फज़ायल में ये बात क़ाबिले ज़िक्र है कि जब भी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मिलने जाते तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अपने कपड़े वगैरह दुरुस्त कर लिया करते थे और फरमाते कि मैं उस शख्स से क्यों ना हया करूं जिससे फरिश्ते भी हया करते हैं ।
◼️ आप तीसरे खलीफा हुए और खिलाफत की मुद्दत कुछ कमो बेश 12 साल रही इस दौरान इस्लामी सल्तनत अरब से निकलकर हिंदुस्तान, अफगानिस्तान, रूस, लीबिया, रोम और भी बहुत से मुल्कों तक पहुंच गई ।
◻️ क़ुर्आन को जमा करने का शर्फ आपको ही हासिल हुआ और आप ही वो पहले शख्स हैं जिन्होंने 1 किरात में क़ुर्आन खत्म की ।
◼️ आपसे 146 हदीसें मरवी हैं ।
◻️ आप 18 ज़िल हिज्जा बरौज़ जुमा 35 हिज्री को शहीद हुए, आपके क़ातिल का नाम अस्वद तजीबी था, आपकी नमाज़े जनाज़ा हज़रते ज़ुबैर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने पढ़ाई और आपको जन्नतुल बक़ीअ में दफ्न किया गया । ( आपकी शहादत का वाक़िया काफी लम्बा है आईन्दा कभी बयान करूंगा इन शा अल्लाह तआला )
📕 तारीखुल खुल्फा, सफह 231-252
💫 करामत - हज़रत उस्मान ग़नी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के पास एक शख्स हाज़िर हुआ जो रास्ते में एक औरत को बद नज़री से देखकर आया था, जब वो आपके सामने आया तो आप जलाल में फरमाते हैं कि तुम लोग इस हालत में मेरे सामने आते हो कि तुम्हारी आंखों ने ज़िना किया होता है तो वो कहने लगा कि क्या आप पर भी वही आती है जो आपको इल्म हो गया, तो आप फरमाते हैं कि बेशक मेरे पास वही नहीं आती मगर अल्लाह का नूर मेरे क़ल्ब में मौजूद है जिससे मैं लोगों का हाल और दिलों के खयालात मालूम कर लेता हूं ।
📕 करामाते सहाबा, सफह 59
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ नौशाद अहमद ज़ेब रज़वी (ज़ेब न्यूज़)
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