देवबन्दी जमाअत के दीनी पेशवा मौलवी अशरफ़ अली साहब थानवी लिखते हैं .......
(18). किसी बुजुर्ग या पीर के साथ ये अकीदा रखना कि हमारे सब हाल की उसको हर वक्त ख़बर रहती है। (कुफ्र व शिर्क है)
#(बहिश्ती ज़ेवर, जिल्द: 1, सफा: 27)
(19). किसी को दूर से पुकारना और यह समझना कि उसको ख़बर हो गई (कुफ्र व शिर्क है।)
#(बहिश्ती ज़ेवर, जिल्द: 1, सफा: 36 )
(20). बहुत से अम् र में आपका (यानी हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का) ख़ास एहतिमाम से तवज्जह फरमाना और फिक्र व परेशानी में वाके होना और बावजूद इसके फिर मख़्फ़ी रहना साबित है। किस्सए इफ्क में आपकी तफ़तीश व इन्किशफात वा बलगे वोजूह सहाए में मज़कूर है मगर सिर्फ तवज्जह से इन्किशाफ़ नहीं हुआ।
#( हिफ़्जुल ईमान, सफा: 7)
(21). या शेख़ अबदुल क़ादिर या शैख़ सुलेमान का वज़ीफ़ा पढ़ना जैसा अवाम का अकीदा है।
इनके मुर्तकिब होने से बिल्कुल इस्लाम से ख़ारिज हो जाता है (मुश्रिक बन जाता है) ।
#(फ़तावाए इमदादिया, जिल्द: 4, सफा: 56)
★मआजल्लाह★
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०- 14, 15
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
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