एक और हैरत अंगेज़ वाकेआ ........

मेरे क़दमों पर सर डालते हुए रो रहे हैं पगङी बिखरी हुई है और कहते जाते हैं मैं नहीं जानता था कि आप इतने बङे आलिम है लिल्लाह माफ़ कीजिए।

आप जो कुछ फ़रमा रहे हैं यही सही और दुरुस्त है मैं ही ग़लती पर था।

यह मंज़र ही ऐसा था कि मजमा दम बखुद था क्या सोचकर आया था और क्या देख रहा था। देवबन्दी इमाम साहेब ने कहा कि अचानक नमूदार होने वाली शख़सिय्यत मेरी नज़र से इसके बाद ओझल हो गई और
कुछ नहीं मालूम था कि वह कौन थे और यह किस्सा क्या था।

#सवानेह क़ासिमी, जिल्द~ 1, सफा~ 330-331

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-28

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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