🕌 एक और इब्रत नाक कहानी..... 🕋

जहाँ ज़रा सी आँच महसूस हुई खुद ही आलमे बर्ज़ख़ ( कब्रस्तान ) से दौङे चले आते हैं और अपनी कार साज़ी का जल्वा दिखाकर वापिस लौट जाते हैं और आते भी हैं तो अपने इसी पैकर मानूस ( जानी पहचानी शक्ल) में कि देखने वाले उन्हें माथे की आँखों से दिखें और पहचान लें।

लेकिन वाए रे दिल हिर्मा नसीब की नाबकारी, कि दूसरी तरफ़ इसी ज़ेहन में ख़्वाजए हिन्द का जो तसव्वुर उभरता है इसमें उनके रुहानी एकतेदार के एतराफ़ के लिए कतअन कोई गुंजाइश नहीं है। जिस्मे ज़ाहेरी की महसूस शौकतों तलअतों और इत्रेबेज़ निकहतों के साथ किसी ग़म नसीब ( मुसीबत के मारे) तक पहुंचने की बात तो बहुत बङी है कि यह हज़रात तो उनके मुतअल्लिक इतनी बात भी तसलीम करने के रवादार नहीं हैं कि
उनके काकुल व रुख़ को जल्वागाह ( आस्ताने) में पहुंचकर भी फ़ैज़याब हो सकता है।

और जसारते नारवा की इन्तेहा तो यह है कि इन हज़रात के यहाँ अताए रसूल ( हज़रते ख़्वाजा) की तुर्बत (माज़र शरीफ़ ) और बुत खाने के दरमियान कतअन कोई ज़ाहेरी फ़र्क़ नहीं है नफ़ा रसानी और फ़ैज़बख़्शी के सिलसिले में दोनों जगह महरूमी का एक ही दाग है।।।।।।।।

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-38

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

🔴इस पोस्ट के दीगर पार्ट के लिए क्लिक करिये ⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/zalzala.html