लेकिन कमाले हैरत के साथ यह ख़बर वहशत असर सुनिए कि यह ख़ुदाई का मंसब यही खुला हुआ कुफ्र व शिर्क और यही तौहीद के मनाफ़ी एतक़ादात उल्माए देवबन्द ने अपने घर के बुजुर्गों के हक़ में बेचुं व चरा तस्लीम कर लिए है।

यह किताब छ: भागों पर मुश्तमिल ( सम्मिलित) है और अलग-अलग हर बाब में देवबन्दी जमाअत के बुजुर्गों के वह वाकिआत व हालात जमा किये गए हैं जिन्हें पढ़ने के बाद आप के दिमाग़ का तार झन झना उठेगा और इन हज़रात की तौहीद परस्ती का सारा भरम खुल जाएगा ।।

हम न कहते कि ऐ दाग़ तू जुलफ़ों को न छेङ ।

अब वह बर्हम है तो है तुझ को क़ल्क या हम को ।


📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०- 21

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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