देवबन्दी जमाअत के दीनी पेशवा मौलवी अब्दुल शकूर साहब काकोरवी लिखते हैं .........

(22). फिक्ह हनफी की मोतबर किताबों में भी सिवाए खुदा के किसी को ग़ैबदाँ जानना और कहना नाजाएज़ लिखा है, बल्कि इस अकिदे को कुफ्र करार दिया है।
#(तोहफ़ए लासानी, सफा: 34 )

(23). हनफिया ने अपनी फिक्ह की किताबों में उस शख़्स को काफिर लिखा है जो यह अकीदा रखे कि नबी ग़ैब जानते थे।
#( तोहफ़ए लासानी, सफा: 38)

(24). रसूले खुदा सल्ल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ज़ात वाला में सिफ़ते इल्मे ग़ैब हम नहीं मानते और जो माने उसको मना करते हैं।
#(नुसरते आसमानी, सफा: 27)

(25). हम यह नहीं कहते कि हुजूर ग़ैब जानते थे या ग़ैबदाँ थे बल्कि यह कहते हैं कि हुजूर को ग़ैब की बातों पर इत्तिला दी गई। फुकहाए हन्फिया कुफ्र का इतलाक उसी ग़ैब दान पर करते हैं न कि इत्तिला याबी पर।
#(फ़तेह हक़्क़ानी, सफा: 25)


★मआजल्लाह★

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-15

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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