🕌 एतक़ाद व अमल के दर्मियान शर्मनाक तसादुम.... 🕋

यह है अकीदा कि मुर्दा व जिन्दा नबी और वली किसी के अन्दर भी मुराद पूरी करने हाजत बर लाने। बला टालने। मुश्किलमें दस्तगीरी करने और बुरे वक्त में पहुंचने की कोई ताकत व कुदरत नहीं है न ज़ाती न अताई।

और वह है अमल कि नानौतवी साहेब वफ़ात के बाद हाजत भी बर लाए, बला भी टाल दी और बुरे वक्त में इस शान से पहुंचे कि सारे जहाँ में ड॔का बज गया।

एक ही बात जो हर जगह शिर्क थी सब के लिए शिर्क थी अचानक इस्लाम बन गई, ईमान बन गई, अम्रे वाकिआ ( वास्तविक्ता) बन गई और फिर दिलों का एक ही अकीदा जब तक इस का तअल्लुक नबी और वली से था तो सारा कुरआन उसके ख़िलाफ़ सारी अहादीस उस से मज़ाहिम और सारा इस्लाम उसकी बीख़ कुनी ( उखाङ फ़ेकने) में तस्लीम कर लिया गया। लेकिन सिर्फ तअल्लुक बदल गया और नबी व वली की जगह अपने मौलाना की बात आगई तो आप देख रहे हैं कि अब
सारा कुरआन उसकी हिमायत में सारी अहादीस उसकी ताईद में और सारा इस्लाम उसकी पुश्त पनाही में है।

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-33, 34

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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