देवबन्दी जमाअत के दीनी पेशवा मौलवी रशीद अहमद साहेब गंगोही लिखते हैं ........
(15). इल्मे ग़ैब खास्साए हक़ तआला का है इस लफ़्ज़ को किसी तावील से दूसरे पर इतलाक करना इहामे शिर्क से खाली नहीं।
#(फ़तावाए रशीदिया, जिल्द :3, सफा: 43)
(16). जो शख्स रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को इल्मे ग़ैब जो खास्साए हक तआला है साबित करे उसके पीछे नमाज़ न दुरुस्त है *"लि अन्नहू कूफरन"* क्यों कि यह कुफ्र है।
#(फ़तावाए रशीदिया, जिल्द: 3, सफा: 125 )
(17). जब अम्बिया अलैहिस्सलाम को भी इल्मे ग़ैब नहीं होता तो, या रसूलुल्लाह कहना भी नाजाएज़ होगा।
#( फतावाए रशीदाया, सफा: 3)
★मआजल्लाह★
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-14
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
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