🕌 आवाज़ दो इन्साफ़ को इन्साफ़ कहाँ है ? अपनी तकज़ीब की एक शर्मनाक मिसाल: 🕋
बात दरमियान में आ गई है तो वफ़ात याफ़ता बुजुर्गों की रुहों के मसले में देवबन्दी जमाअत के मशहूर मुनाज़िर मौलाना मंजूर साहब नोमानी का एक इदारिया ( editorial) पढ़िये जिसे उन्हों ने माहनामा अलफुर्कान लखनऊ में सपुर्दे क़लम किया है ताकि इस मसले में देवबन्दी जमाअत का असल ज़ेहन आप पर वाज़ेह हो जाए।
मौसूफ़ लिखते हैं-
जिन बन्दों को अल्लाह ने कोई ऐसी क़ाबलियत देदी है जिस से दूसरों को भी कोई नफ़ा या इमदाद पहुंचा सकते हैं जैसे हकीम, डाक्टर, वकील वगैरा तो उनके मुतअल्लिक हर एक यह समझता है कि उन में कोई ग़ैबी ताक़त नहीं और उनके अपने कब्ज़े में कुछ भी नहीं है और यह भी हमारे ही तरह अल्लाह के मोहताज़ बन्दे हैं बस इतनी सी बात है कि अल्लाह ने उन्हें इस आलमे अस्बाब में इस क़ाबिल बना दिया है कि हम उन से फ़लाँ काम में मदद ले सकते हैं।
इस बिना पर उन से काम लेने और एआनत हासिल करने में शिर्क का कोई सवाल नहीं पैदा होता।
शिर्क जब होता जब किसी हस्ती को अल्लाह के काएम किए हुए इस ज़ाहेरी सिलसिलए अस्बाब से अलग ग़ैबी
तौर पर अपने इरादा व एख़्तियार से कार फ़रमा और मुतसर्रिफ़ समझा जाए और इस ऐतक़ाद की बिना पर इस से अपनी हाजतों में मदद माँगी जाए।
#अल्फुर्कान। जमादिल ऊला, 1372, सफा:25
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-34
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
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https://MjrMsg.blogspot.com/p/zalzala.html
बात दरमियान में आ गई है तो वफ़ात याफ़ता बुजुर्गों की रुहों के मसले में देवबन्दी जमाअत के मशहूर मुनाज़िर मौलाना मंजूर साहब नोमानी का एक इदारिया ( editorial) पढ़िये जिसे उन्हों ने माहनामा अलफुर्कान लखनऊ में सपुर्दे क़लम किया है ताकि इस मसले में देवबन्दी जमाअत का असल ज़ेहन आप पर वाज़ेह हो जाए।
मौसूफ़ लिखते हैं-
जिन बन्दों को अल्लाह ने कोई ऐसी क़ाबलियत देदी है जिस से दूसरों को भी कोई नफ़ा या इमदाद पहुंचा सकते हैं जैसे हकीम, डाक्टर, वकील वगैरा तो उनके मुतअल्लिक हर एक यह समझता है कि उन में कोई ग़ैबी ताक़त नहीं और उनके अपने कब्ज़े में कुछ भी नहीं है और यह भी हमारे ही तरह अल्लाह के मोहताज़ बन्दे हैं बस इतनी सी बात है कि अल्लाह ने उन्हें इस आलमे अस्बाब में इस क़ाबिल बना दिया है कि हम उन से फ़लाँ काम में मदद ले सकते हैं।
इस बिना पर उन से काम लेने और एआनत हासिल करने में शिर्क का कोई सवाल नहीं पैदा होता।
शिर्क जब होता जब किसी हस्ती को अल्लाह के काएम किए हुए इस ज़ाहेरी सिलसिलए अस्बाब से अलग ग़ैबी
तौर पर अपने इरादा व एख़्तियार से कार फ़रमा और मुतसर्रिफ़ समझा जाए और इस ऐतक़ाद की बिना पर इस से अपनी हाजतों में मदद माँगी जाए।
#अल्फुर्कान। जमादिल ऊला, 1372, सफा:25
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-34
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