🕌 अपने ही हाथों अपने मज़हब का ख़ून..... 🕋
सुब्हानल्लाह? ज़रा ग़लबए हक़ की शान तो देखिए कि वफ़ात याफ़ता बुजुर्गों की रुहों से इमदाद के मसले में कल तक जो सवाल हम उनसे करते थे आज वही सवाल वह अपने आप से कर रहे हैं
अब इस सवाल का जवाब तो उन्हीं लोगों के जिम्मे है जिन्होंने एक ख़ालिस इस्लामी अकीदे को कुफ्र व शिर्क का नाम देकर अस्ले हकीकत का चेहरा बिगाङ दिया है और जिसके कई सफ़हात पर फैले हुए नमूने आप "तस्वीर के पहले रुख़ में पढ़ आए हैं।
ताहम गीलानी साहेब के इस हाशिये से इतनी बात ज़रूर साफ़ हो गई कि जो लोग वफ़ात याफ़ता बुजुर्गों की रुहों से इमदाद के काएल हैं वही फिल हकीकत अहले सुन्नत वल जमाअत हैं अब इन्हें बिदअती कहकर नुकारना न सिर्फ यह कि अपने आप को झुठलाना है बल्कि अख़्लाकी रज़ाएल से अपनी ज़बान व क़लम की आलूदगी का
मुज़ाहेरा भी करना है।
हाशिये की इबारत का यह हिस्सा भी दीदए हैरत से पढ़ने के काबिल है इर्शाद फ़रमाये हैं.....।।।।।।।।।
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-31
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
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http://www.MjrMsg.blogspot.com/p/zalzala.html
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अब इस सवाल का जवाब तो उन्हीं लोगों के जिम्मे है जिन्होंने एक ख़ालिस इस्लामी अकीदे को कुफ्र व शिर्क का नाम देकर अस्ले हकीकत का चेहरा बिगाङ दिया है और जिसके कई सफ़हात पर फैले हुए नमूने आप "तस्वीर के पहले रुख़ में पढ़ आए हैं।
ताहम गीलानी साहेब के इस हाशिये से इतनी बात ज़रूर साफ़ हो गई कि जो लोग वफ़ात याफ़ता बुजुर्गों की रुहों से इमदाद के काएल हैं वही फिल हकीकत अहले सुन्नत वल जमाअत हैं अब इन्हें बिदअती कहकर नुकारना न सिर्फ यह कि अपने आप को झुठलाना है बल्कि अख़्लाकी रज़ाएल से अपनी ज़बान व क़लम की आलूदगी का
मुज़ाहेरा भी करना है।
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