🕌 एक और ईमान शिकन रिवायत 🕋
इल्में माफ़िल अरहाम की बात चल पङी है तो लगे हाथों अक़ीदए तौहीद का एक और खून मुलाहेज़ा फ़रमाइए।
यही मौलवी क़ासिम साहब नानौतवी अपनी जमाअत के एक 'शैख़'का तज़किरा करते हुए ब्यान करते हैं कि:-
शाह अब्दुर्रहीम साहब विलायती के एक मुरीद थे जिनका नाम अब्दुल्लाह खाँ था और क़ौम के राज्पूत थे और यह हज़रत के ख़ास मुरीदों में थे उनकी हालत यह थी कि अगर किसी के घर हमल होता और तावीज़ लेने आता तो आप फ़रमा दिया करते थे कि तेरे घर में लङकी होगी या लङका और जो आप बतला देते थे वही होता था।
#अरवाहे सलासा, सफा- 163
यहाँ तो हुस्ने इत्तेफ़ाक़ का भी मामला नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि ख़्वाब की बात हो बल्कि पूरी सराहत है इस बात की उनके अन्दर माफ़िल अरहाम के इल्म व इन्केशाफ़ की एक ऐसी कव्वत ही बेदार हो गई थी कि वह हर
वक्त एक शफ़्फ़ाफ़ आइने की तरह पेट के अन्दर की चीज़ देख लिया करते थे।
बिल्कुल इसी तरह की कव्वत जैसे हमारी आँखों में देखने और कानों में सुन्ने की है न जिबरईल का इन्तज़ार और न इल्हाम की एहतियाज।
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-43, 44
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
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https://MjrMsg.blogspot.com/p/zalzala.html
इल्में माफ़िल अरहाम की बात चल पङी है तो लगे हाथों अक़ीदए तौहीद का एक और खून मुलाहेज़ा फ़रमाइए।
यही मौलवी क़ासिम साहब नानौतवी अपनी जमाअत के एक 'शैख़'का तज़किरा करते हुए ब्यान करते हैं कि:-
शाह अब्दुर्रहीम साहब विलायती के एक मुरीद थे जिनका नाम अब्दुल्लाह खाँ था और क़ौम के राज्पूत थे और यह हज़रत के ख़ास मुरीदों में थे उनकी हालत यह थी कि अगर किसी के घर हमल होता और तावीज़ लेने आता तो आप फ़रमा दिया करते थे कि तेरे घर में लङकी होगी या लङका और जो आप बतला देते थे वही होता था।
#अरवाहे सलासा, सफा- 163
यहाँ तो हुस्ने इत्तेफ़ाक़ का भी मामला नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि ख़्वाब की बात हो बल्कि पूरी सराहत है इस बात की उनके अन्दर माफ़िल अरहाम के इल्म व इन्केशाफ़ की एक ऐसी कव्वत ही बेदार हो गई थी कि वह हर
वक्त एक शफ़्फ़ाफ़ आइने की तरह पेट के अन्दर की चीज़ देख लिया करते थे।
बिल्कुल इसी तरह की कव्वत जैसे हमारी आँखों में देखने और कानों में सुन्ने की है न जिबरईल का इन्तज़ार और न इल्हाम की एहतियाज।
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