एक और हैरत अंगेज़ वाकेआत........
मुलाहेज़ा फ़रमाईये किस्सा आराई से कतअ नज़र इस एक वाकेआ के अन्दर मौलवी क़ासिम साहेब नानौतवी के हक़ में कितने मुश्रेकाना अकाएद का बर्मला एतराफ़ कर लिया गया है।
अव्वलन यह कि निहायत फ़राख दिली के साथ उनके अन्दर ग़ैबदानी की वह कुव्वत भी मान ली गई है जिस के ज़रिए उन्हें आलमे बर्ज़ख़ ही में मालूम हो गया कि एक देवबन्दी इमाम फ़लाँमुकाम पर मैदाने मुनाज़रा में यक्का व तनहा बेबसी की हालत में दमतोङ रहा है चल कर उसकी मदद की जाए।
दूसरे यह कि उनके हक़ में यह कुव्वते तसर्रुफ़ भी तस्लीम कर ली गई है कि वह अपने जिस्मे ज़ाहरी के
साथ अपनी लहद से निकल कर जहाँ चाहें बे रोक टोक जा सकते हैं।
तीसरी यह कि मरने के बाद जिन्दों की मदद करने का एख़्तियार चाहे देवबन्दी हज़रात के तई अम्बिया व औलिया के लिए भी साबित न हो लेकिन "अपने मौलाना" के लिए ज़रूर साबित है।
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-29
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
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https://MjrMsg.blogspot.com/p/zalzala.html
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अव्वलन यह कि निहायत फ़राख दिली के साथ उनके अन्दर ग़ैबदानी की वह कुव्वत भी मान ली गई है जिस के ज़रिए उन्हें आलमे बर्ज़ख़ ही में मालूम हो गया कि एक देवबन्दी इमाम फ़लाँमुकाम पर मैदाने मुनाज़रा में यक्का व तनहा बेबसी की हालत में दमतोङ रहा है चल कर उसकी मदद की जाए।
दूसरे यह कि उनके हक़ में यह कुव्वते तसर्रुफ़ भी तस्लीम कर ली गई है कि वह अपने जिस्मे ज़ाहरी के
साथ अपनी लहद से निकल कर जहाँ चाहें बे रोक टोक जा सकते हैं।
तीसरी यह कि मरने के बाद जिन्दों की मदद करने का एख़्तियार चाहे देवबन्दी हज़रात के तई अम्बिया व औलिया के लिए भी साबित न हो लेकिन "अपने मौलाना" के लिए ज़रूर साबित है।
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