एक और हैरत अंगेज़ वाकेआ......

जान भी ग़रीब की ख़तरे में आगई और नौकरी वोकरी का किस्सा तो ख़त्म शुदा ही मालूम होने लगा चूंकि इल्मी मवाद भी उसका मामूली था ख़ौफ़ज़दा हुए कि खुदा जाने यह वाएज़ मौलाना साहेब किस पाए के आलिम है?

म॔तिन व फ़लसफ़ा बघारेंगे और मैं ग़रीब अपना सीधा साधा मुल्ला हूं उन से बाज़ी ले भी जा सकता हूं या नहीं? ताहम चारए कार इसके सिवा और क्या था कि मुनाज़रे का वादा डरते डरते कर लिया।

तारीख़ और महल व मुकाम सब का मसला तय हो गया। वाएज़ मौलाना साहेब बङा जबरदस्त अमामा तवील व अरीज़ सर पर लपेटे हुए किताबों के पुश्तारे के साथ मजलिस में अपने हवारियों के साथ जल्वा फ़रमा हुए।

इधर यह ग़रीब देवबन्दी इमाम मनहानी व ज़ईफ़ मिस्कीन शक्ल व मिस्कीन आवाज़ ख़ौफ़ज़दा
लरज़ा व तरसा भी अल्लाह अल्लाह करते हुए सामने आया।।।।।।।।।।

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-27

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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