🕌 इल्म माफ़िल अरहाम का अजीब व ग़रीब वाकिआ ..... 🕋

ज़रा ख़ालियुज़्ज़ेहन होकर एक लमहा ( पल भर ) के लिए सोचिए कि मौलवी सईद अहमद साहब के वालिद के पीर क़ाज़ी अब्दुल ग़नी साहब ने मौसूफ़ की पैदाईश से चन्द साल क़ब्ल ही यह मालूम कर लिया था कि "फ़र्ज़न्द" तशरीफ़ ला रहे हैं,

जिसकी उन्होंने बशारत भी दे दी और बशारत के मुताबिक 7 रमज़ानुल मुबारक को मौलवी सईद अहमद इस सरायफ़ानी ( दुनिया) में तशरीफ़ भी ले आए।

सोचने की बात यह है कि अय्यामे हमल में अगर उन्होंने ख़बर दी होती तो कहा जा सकता था कि तिब्बी ( डाक्टरी ) ज़राए से उन्हें इस का ज़न्ने ग़ालिब हो गया होगा,

लेकिन कई सालों पेश्तर यह मालूम करलेने का ज़रिया सिवाए इसके और क्या हो सकता है कि उन्हें " इल्मे ग़ैब " था।

और फिर मौलवी क़ासिम साहब नानौतवी और मौलवी रशीद अहमद साहब गंगोही की " ग़ैबदानी " का क्या
कहना कि वह हज़रात तो ऐन वक्त वेलादत (पैदाईश) से दो घंटे पेशतर ही अपनी अपनी कब्रों से निकल कर सीधे मौलवी अहमद सईद साहब के वालिद के घर पहुंच गए

और उन्हें बेटे की आमद पर पेशगी मुबारकबादी और नाम तक तजवीज़ फ़रमा दिया और मौसूफ़ ने इस ख़्वाब को बिल्कुल एक अम्रे वाकिआ ( वास्तविक) की तरह यकीन कर लिया।।।।।।।।।

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-41

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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