सोचने की बात यह है कि मौलवी क़ासिम साहेब नानौतवी की रुह के लिए यह खुदाई एख़्तियारात बिला चूं व चरा मौलवी रफीउद्दीन साहेब ने भी तस्लीम कर लिया।
मौलवी महमूदुल हसन साहेब भी इस पर आँख बन्द करके ईमान ले आए और थानवी साहेब का क्या कहना कि उन्हों ने तो जिस्मे इन्सानी का ख़ालिक़ ( जन्मदाता ही उसे ठहरा दिया और अब क़ारी तैय्यब साहेब उसकी तशहीर फ़रमा रहे हैं)

इन हालात में एक सहीहुद्दीमाग़ आदमी यह सोचे बग़ैर नहीं रह सकता कि रुह के तसर्रुफ़ात व एख़्तियारात और ग़ैबी इल्म व इदराक ने जो कुव्वतें सरवरे काएनात सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और उनके मुक़र्रेबीन के हक़ में तस्लीम करना यह हज़रात कुफ्र व शिर्क समझते हैं वही "अपने मौलाना " के हक़ में क्यों कर इस्लाम व ईमान बन गया है?

क्या यह सूरते हाल इस हकीकत को वाज़ेह नहीं करती कि इन हज़रात के यहाँ कुफ्र व शिर्क की यह तमाम बहसें सिर्फ इस लिए हैं अम्बिया व औलिया की हुर्मतों के ख़िलाफ़ ज॔ग करने के लिए इन्हें हथियार के तौर पर
इस्तेमाल किया जाए।

वर्ना ख़ालिस अकीदए तौहीद का जज़बा इस के पसे म॔ज़र में कार फ़रमा होता तो शिर्क के सवाल पर अपने और बेगाने के दरमियान क़तअन कोई तफ़रीक़ रवा न रखी जाती।

● मआज़ल्लाह ●

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-25

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

🔴इस पोस्ट के दीगर पार्ट के लिए क्लिक करिये ⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/zalzala.html