🕌 अपने ही हाथों अपने मज़हब का ख़ून.... 🕋

इन्कार की बात क्या पूछते हैं कि आप के यहाँ तो इस एक मोर्चे पर निस्फ़ सदी से ज॔ग लङी जा रही है मारकए कारज़ार ( युद्द के मैदान ) में हक़ाइक़ की तङपती हुई लाशों आप नहीं देख पाते तो अपने ही क़लम की तलवार से लहू की टपकती हुई बूंदें मुलाहेज़ा फ़रमा लीजिए।

हाशिये की इबारत जिस हिस्से पर तमाम हुई है उसमें एतिराफ़ हक़ का मुतालिबा इस क़दर बेकाबू हो गया है कि तहरीर के नुकूश से आवाज़ आ रही है। अहले हक़ को बग़ैर किसी लश्कर कशी के अपने मस्लक की यह फ़तहे मुबीन मुबारक हो।

इर्शाद फ़रमाते हैं -
" पस बुजुर्गों की अर्वाह से मदद लेने के हम मुंकिर नहीं हैं ।"
#हाशिया सवानेह क़ासिमी, जिल्द- 1, सफा- 332

अल्लाहु अकबर ! देख रहे हैं आप? किस्सा आराई को वाकिआ बनाने के
लिए यहाँ कितनी बेदर्दी के साथ मौलाना ने अपने मज़हब का ख़ून किया है। जो अक़ीदा निस्फ़ सदी से पूरी जमाअत के ऐवाने फिक्र का संगे बुनियाद रहा है उसे ढ़ा देने में मौसूफ़ को ज़रा भी तअम्मुल नहीं हुआ।

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०- 32

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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