ग़ैबदानी का ऐतक़ाद,

दिलों के ख़तरात पर इत्तिला,

सैकङों मील की दूरी से मख़फियाँ का इल्म कि माँ के पेट में क्या है,

बारिश कब होगी,

कल आइन्दा क्या पेश आएगा,

कौन कब मरेगा,

किसकी वफ़ात कहाँ होगी,

दीवार के पीछे क्या है,

अपने इरादा व तसर्रुफ़ात से मारना,

शिफ़ा बख्शना,

बारिश रोक देना, बारिश बरसाना,

इमदाद व दस्तगीरी के लिए आने वाहिद ( at-a time ) में अपनी क़ब्रों से निकल कर दूर-दूर पहुंच जाना,

तसव्वुर करते ही सामने मौजूद हो जाना,

सारे जहाँ को एक नज़र में देख लेना,

मुसीबत के वक्त ग़ायब को अपनी मदद के लिए पुकारना,

गुज़िश्ता और आइन्दा की ख़बरें देना ,

यह समझना कि हर वक्त हमारे दिल के अहवाल की ख़बर रखतें हैं,

यह समझना कि तसव्वुर करते ही बाख़बर हो जाते हैं वग़ैरा -वग़ैरा

यह वही सारी बाते हैं जिन्हें उल्माए देवबन्द की मजकूरुस्सदर ( उफरोक्त ) किताबों में सिर्फ खुदा का हक़ तसलीम किया गया है और ग़ैरे खुदा यहाँ तक कि रसूले मुजतबा सल्लल्लाहु तआलाअलैहिस्सलाम के हक़ में भी इस तरह के एतक़ादात को कुफ्र व शिर्क क़रार
दिया गया है।

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-20

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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