🕌 एक और इब्रत नाक कहानी..... 🕋
बुत परस्ती के फ़वाएद की तफ़सील तो थानवी साहेब ही बता सकते हैं कि सब से पहले वही इस तजूर्बे से फ़ैज़याब हुए।
लेकिन ग़ैरत से डूब मरने की बात तो यह है कि एक मुंकिरे इस्लाम दुश्मन और एक कलमा गो दोस्त की निगाहों का फ़र्क ज़रा मुलाहेज़ा फ़रमाईये।
दुश्मन की नज़र में सरकारे ख़्वाजा किश्वर हिन्द के सुल्तान की तरह जगमगाते रहे हैं जब कि दोस्त की निगाह उन्हें पत्थर के सनम से ज़्यादा हैसियत नहीं देती।
इस मुकाम पर मुझे सिर्फ़ इतनी बात कहनी है कि ईमान की आँखों का चिराग़ अगर गुल नहीं हो गया है तो एक तरफ़ उन देवबन्दी मशाहीर के ज़हन भें नानौतवी साहेब का वह सलापा देखिये। कितना कार फ़रमा, कितना
कार साज़, कितना बाइख़्तियार और किबरियाई कुदरतों ( खुदाई ताक़तों) से कितना मुसल्लह नज़र आता है कि दस्तगीरी और चारा साज़ी ( मदद करने ) के लिए वह नियाज़ मंदों को अपने मर्क़द तक भी आने की ज़हमत नहीं देते।
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-37, 38
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
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https://MjrMsg.blogspot.com/p/zalzala.html
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लेकिन ग़ैरत से डूब मरने की बात तो यह है कि एक मुंकिरे इस्लाम दुश्मन और एक कलमा गो दोस्त की निगाहों का फ़र्क ज़रा मुलाहेज़ा फ़रमाईये।
दुश्मन की नज़र में सरकारे ख़्वाजा किश्वर हिन्द के सुल्तान की तरह जगमगाते रहे हैं जब कि दोस्त की निगाह उन्हें पत्थर के सनम से ज़्यादा हैसियत नहीं देती।
इस मुकाम पर मुझे सिर्फ़ इतनी बात कहनी है कि ईमान की आँखों का चिराग़ अगर गुल नहीं हो गया है तो एक तरफ़ उन देवबन्दी मशाहीर के ज़हन भें नानौतवी साहेब का वह सलापा देखिये। कितना कार फ़रमा, कितना
कार साज़, कितना बाइख़्तियार और किबरियाई कुदरतों ( खुदाई ताक़तों) से कितना मुसल्लह नज़र आता है कि दस्तगीरी और चारा साज़ी ( मदद करने ) के लिए वह नियाज़ मंदों को अपने मर्क़द तक भी आने की ज़हमत नहीं देते।
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