🕌 आवाज़ दो इन्साफ़ को इन्साफ़ कहाँ है?अपनी तकज़ीब की एक शर्मनाक मिसाल.... 🕋


तौहीद परस्ती ज़रा ग़ौर से मुलाहेज़ा फ़रमाइये कि मौसूफ़ को मुसलमानों का छुपा हुआ शिर्क तो नज़र आ गया। लेकिन अपने घर का खुला हुआ शिर्क नज़र नहीं आता।

कितनी मासूमियत के साथ आप फ़रमाते हैं कि

"अगर मुसलमानों में यह लोग न होते तो मेरे लिए अगली उम्मतों के शिर्क को समझना मुश्किल होता "

मैं कहता हूं मुश्किल क्यों होता ? शिर्क को समझने के लिए घर ही में किस बात की कमी थी? खुदा का दिया सब कुछ था।

सच पूछिये तो इसी तरह की खुद फ़रेबियों का जादू तोङने के लिए मेरे ज़हन में ज़ेरे नज़र किताब की तर्तीब का ख़्याल पैदा हुआ कि अस्हाबे अक़ल व इन्साफ़ वाज़ेह तौर पर महसूस कर लें कि लोग दूसरों पर शिर्क का
इल्ज़ाम आएद करते हैं अपने नामए आमाल के आइने में वह खुद कितने बङे मुश्रिक हैं?

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-36

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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