देवबन्दी जमाअत के दीनी पेशवा मौलवी ख़लील अहमद साहब अम्बेठवी लिखते हैं ~
(34). मलकुल मौत से अफ़ज़ल होने की वजह से यह लाज़िम नहीं आता कि आप का इल्म उन उमूर ( यानी रुए ज़मीन) के बारे में मलकुल मौत के बराबर भी हो चे जाए कि ज़्यादा ।
#( बराहीने क़ातेआ, सफा: 52 )
(35). शैख़ अब्दुल हक़ रिवायत करते हैं कि मुझको ( यानी रसूले खुदा को ) दीवार के पीछे का इल्म नहीं है।
#(बराहीने क़ातिआ, सफा: 51)
(36). बहारे राइक़ आलमगीरी दुर्रे मुख़्तार वग़ैरा में है कि अगर कोई निकाह करे ब शहादते हक़ तआला व फख़रे आलम अलैहिस्सलाम के तो काफिर हो जाता है ब सबस ऐतक़ाद इल्मे ग़ैब के फख़रे आलम की बनिस्बत।
#(बराहीने क़ातिआ, सफा: 42)
★ मआजल्लाह ★
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०- 17
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
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(34). मलकुल मौत से अफ़ज़ल होने की वजह से यह लाज़िम नहीं आता कि आप का इल्म उन उमूर ( यानी रुए ज़मीन) के बारे में मलकुल मौत के बराबर भी हो चे जाए कि ज़्यादा ।
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