अगर
किसी तरह की बदगुमानी को राह न दी जाए तो तस्वीर के पहले रुख़ में मसलए
इल्मे ग़ैब और कुदरत व तसर्रुफ़ पर देवबन्दी उल्मा की जो इबारत नकल की गई
है। उन्हे पङने के बाद एक खाली ज़हन आदमी कतअन यह महसूस किये बगैरन रह
सकेगा कि रसूले मुजतबा सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम और दिगर अम्बिया व औलिया के
हक़ में इल्मे ग़ैब और कुदरत व तसर्रुफ़ात का अकीदा यकीनन तौहीद के मनाफ़ी
और खुला हुआ कुफ्र व शिर्क है और लाज़िनम उसे उल्माए देवबन्द के साथ यह खुश
अकीदगी होगी कि वह मज़हबे तौहीद के सच्चे अलम्बरदार और कुफ्र व शिर्क के
मोतकेदात के ख़िलाफ़ वक्त के सबसे बङे मुजाहिद है।
★ मआजल्लाह ★
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०- 18, 19
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
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