🕌 एक और ईमान शिकन रिवायत..... 🕋

यह है अकीदा वह है वाकिआ और दोनों एक दूसरे को झुठला रहे हैं अगर दोनों सही है तो मानना पङेगा कि अब्दुल्लाह खाँ राजपूत खुदाई मंसब पर है

अगर उन्हें खुदा नहीं फ़र्ज़ कर सकते तो कहिए कि वाकिआ ग़लत है और अगर वाकिआ सही है तो तस्लीम कीजिए कि तकवियतुल ईमान का फ़रमान ग़लत है।

तावील व जवाब का जो रुख़ भी इख़्तियार कीजिए मज़हबी दयानत ( इन्साफ़) का एक ख़ून ज़रूरी है।

अब आप ही इन्साफ़ कीजिए कि यह सूरते हाल क्या इस यकीन को तकवियत नहीं पहुंचाती कि इन हज़रात के यहाँ कुफ्ऱ व शिर्क की बहसें सिर्फ़ इसलिए हैं कि अम्बिया व औलिया की हुर्मतों को घायल करने के लिए उन्हें
हथियार के तौर पर इसतेमाल किया जाए।

वर्ना ख़ालिस अकीदए तौहीद का जज़बा इसके पसे मंज़र में कार फ़रमा होता तो शिर्क के सवाल पर अपने और बेगाने की तफ़रीक़ रवा न रखी जाती।

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-44, 45

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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