लेकिन
आह, मैं किन लफ्जों में इन सरबस्ता राज़ को बेनकाब करूं कि इस ख़ामोश सतह
के नीचे एक निहायत ख़ौफ़नाक तूफान छुपा हुआ है तस्वीर के इस रुख़ की दिलकशी
उसी वक्त तक बाकी है जब तक कि दूसरा रुख निगाहों से ओझल है।यकीन करता हूं
कि पर्दा उठ जाने के बाद तौहीद परस्ती की सारी गरम जोशियों का एक आन में
भरम खुल जाएगा। कब्ल इसके कि मैं अस्ले हकीकत के चेहरे से नकाब उठाऊँ। आप
के धङकते हुए दिलपर हाथ रख कर एक सवाल पुछना चाहता हूं।
फ़र्ज़ कीजिए, अगर आपको यह बात मालूम हो जाए कि इल्मे ग़ैब से लेकर तसर्रुफ़ व इख़्तियार तक जिन-जिन बातों के एतकाद को देवबन्दी जमाअत के इन पेशवाओं ने रसूले मुजतबा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और दिगर अम्बिया व औलिया के हक़ में कुफ्र व शिर्क और मुनाफिए तौहीद करार दिया है उन्हीं सारी बातों को वह अपने घर के बुजुर्गों के हक़ में जाईज़ बल्कि वाके तस्लीम करते हैं तो आपके ज़हनी वारदात ( mental balance) की क्या कैफ़िय्यत होगी !
★ मआजल्लाह ★
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०- 19
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
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